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Saturday, 3 July 2010

मेरी आखों को नम बनाये रखा /

बुलाये रखा , उलझाये रखा ,

मेरे दिल के जख्मों को सलीके से ताज़ा बनाये रखा ;

मुस्कराया भी मुझको हँसाया भी ,

पर मेरे भावों को तुने पराया रखा ,मुझको सताए रखा ;

मरहम लगता हर बार तू एक नए अंदाज से ,

पर रिसते घावों में कांटा चुभाये रखा ;

फूलों की खुसबू को मेरे पास बनाये रखा ;

बड़ी खूबसूरती से तुने मुझे अपनी जिंदगी के किनारे लगाये रखा ;

मेरे ओठों पे अपना नाम बनाये रखा ;

मेरी आखों को नम बनाये रखा /

Sunday, 30 May 2010

प्यार मेरा मुझे देख के चौंका , बड़ी अदा से फिर उसने पूंछा ;

प्यार मेरा मुझे देख के चौंका , बड़ी अदा से फिर उसने पूंछा ;
कौन है तू क्या तेरा परिचय , क्या इच्छा है तेरी रहबर ;
मुंह से निकला मै परछाई हूँ तेरी ,तेरे दिल की प्यास ;
न मानेगा इसको तू पर मै हूँ तेरा अहसास /

Tuesday, 4 May 2010

विरल विरल सा मन है मेरा,

विरल विरल सा मन है मेरा,

ना गम ना खुशियों का फेरा ,

विरल विरल सा मन है मेरा,

विरक्त हूँ भावों से कुछ कुछ ,

विभक्त हूँ अभावों से कुछ कुछ ,

पर मन में संताप नहीं है ,

और हरियाली का भास नहीं है ;

बोझिल है हैं विचार भी मेरे ,

खाली खाली से हैं व्यवहार भी मेरे ,

विरल विरल सा मन है मेरा,

ना गम ना खुशियों का फेरा ,
विरल विरल सा मन है मेरा,

Saturday, 20 March 2010

मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ,

मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ,

जिन्दा है मानों बिना प्राण ,

मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ;

बड़ा जीवट है ,खूं में उसके ,

स्वाभिमान है मन में उसके ;

मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ;

सांसों का भावों से रिश्ता ,

तिरस्कार से धन का नाता ;

वो मुफलिसी और उसका रास्ता ;

किस्से तो दुनिया बुनती है ,

उसको सिर्फ उलाहना ही मिलती है ;

रक्तिम आखें हाथों में छाले ,

ढलती काया पैरों को ढाले ;

संघर्ष से वो कब भागा है ;

स्वार्थ नहीं उसने साधा है ;

साधारण लोग किसे दिखते हैं ;

सब पैसे और ताकत को गुनते हैं ;

मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ,
जिन्दा है मानों बिना प्राण
/

Friday, 12 March 2010

विचलित इच्छाएं है ,

विचलित इच्छाएं है ,
समर्पित वासनाएं हैं ;
मन थमता नहीं सिर्फ आशाओं पे ,
संभालती समस्याएँ हैं ;
जीवन में अब चाव नहीं है ,
तकलीफों से छावं नहीं है ,
अपने आंसूं पे रोना कैसा ,
दिल के जख्मो में रिसाव नहीं है /
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मोह का बंधन लगता प्यारा ,
माया ने हम सबको पाला ,
कब तक अंगुली पकड़ चलेगा राही,
अब तो पकड़ ले परमार्थ की डाली /
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Friday, 5 February 2010

खांसता बुडापा कांपता शरीर ,

खांसता बुडापा कांपता शरीर ,
इस जर्जर तन में उर्जा अंतहीन ,
लालशाओं में बहुधा जवानी कौंधती ,
अनायास ही माया रगों में रौन्धती ,
वर्षों का अनुभव उम्र को तकती ,
पोते की आवाज सहजता आती ,
बेटा उलझा बीबी के ताने बाने में ,
अपने ही अरमानो में ,
बहु सुशील पर उसे,
सिर्फ अपने बच्चे की जिम्मेदारी कबूल है ,
पत्नी खो चुका वर्षों पहले ,
वो चन्द अच्छे शब्दों औ आत्मीयता की मजबूर है ,
जीवन की ललक खो गयी ,
पोते के अंगुली पकड़ते ही हिम्मत बाजुओं में भर आई ,

Tuesday, 29 December 2009

पथिक है बैठा राह तके है /

पथिक है बैठा राह तके है ,

हमसाया मिल जाये ,

जो सपनों को सींचे है ,

रुके पगों को क्या हासिल हो ,

जो हमराही मिल जाये ,

चलते रहना नियति हो जिसकी ,

क्यूँ राहों पे रुके है ;

पथिक है बैठा राह तके है ,

बड़ते कदमों संग दुनिया भागे ,

चलता प्रियतम दुनिया मांगे ,

क्यूँ वो इसको भूले है ;

पथिक है बैठा राह तके है ,

मंजिल पहले थमना कैसा ,

धारा संग भी बहना कैसा ,

मंजिल एक पड़ाव है ,

कुछ पल का ठहराव है ,

नयी चुनौती नयी मंजिले ,

नयी सड़क का बुलावा है ,

जो संग चला वो हम साया ,

जो साथ रहा वो ही है यारा ,

पथिक है बैठा राह तके है /

डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित

 डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित  दिनांक 16 जनवरी 2025 को ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज ...