शायद किसी दिन
किसी आदेशानुसार नहीं
बल्कि
इच्छानुसार करूंगा
एक ज़रूरी काम
जिसकी कोई सूचना नहीं
उसी की आरजू में
उसके जिक्र से भरी
एक नर्म और हरी कविता लिखूंगा
उस दुर्लभ एकांत में
चुप्पियों का राग होगा
उजालों के कतरे से
अंधेरा वहां सहमा होगा
हँसने और रोने का
कितना सारा क़िस्सा होगा !
वहां जीवन की पसरी हुई गंध
मोहक और मादक होगी
वहां उस दिन
उस कविता में
शायद तुम्हारा नाम भी हो
यदि ऐसा न हुआ तो भी
वह कविता
तुम्हारे नाम होगी ।
डा. मनीष कुमार मिश्रा
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र
manishmuntazir@gmail.com