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Sunday, 31 October 2021

शायद किसी दिन

 शायद किसी दिन

किसी आदेशानुसार नहीं 

बल्कि

इच्छानुसार करूंगा

एक ज़रूरी काम 


जिसकी कोई सूचना नहीं

उसी की आरजू में

उसके जिक्र से भरी 

एक नर्म और हरी कविता लिखूंगा 


उस दुर्लभ एकांत में

चुप्पियों का राग होगा 

उजालों के कतरे से

अंधेरा वहां सहमा होगा 

हँसने और रोने का 

कितना सारा क़िस्सा होगा !


वहां जीवन की पसरी हुई गंध

मोहक और मादक होगी

वहां उस दिन

उस कविता में

शायद तुम्हारा नाम भी हो 

यदि ऐसा न हुआ तो भी 

वह कविता

तुम्हारे नाम होगी ।


       डा. मनीष कुमार मिश्रा

       के एम अग्रवाल महाविद्यालय

        कल्याण पश्चिम

        महाराष्ट्र

        manishmuntazir@gmail.com