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Thursday 6 May 2010

अमरकांत का प्रकीर्ण साहित्य

अमरकांत का प्रकीर्ण साहित्य :-
      अमरकांत ने गंभीर कहानियों एवम् उपन्यासों के अतिरिक्त कुछ बाल साहित्य तथा प्रौढ नवसाक्षर लोगों के लिए भी कुछ छोटी-छोटी पुस्तकें लिखी हैं। उन्हीं में से कुछ का हम यहाँ संक्षेप में परिचय प्राप्त करेंगे।
1) झगरू लाल का फैसला :-
      'कृतिकार` प्रकाशन द्वारा 1997 में प्रकाशित 23 पृष्ठों की यह पुस्तक बढ़ती जनसंख्या की समस्या को लेकर लिखी गयी है। यह पुस्तक कराड़ों साधारण लोगों के बीच परिवार कल्याण की योजनाओं को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से लिखी गयी है।
      इसमें झगरू और मगरूलाल नामक दो भाईयों की कहानी है जो पिता की मृत्यु के उपरांत अलग हो जाते हैं। झगरू अपना परिवार बढ़ाता जाता है जिसके कारण आर्थिक संकटों में फसा रहता है। मगरू और उसकी पत्नी परिवार नियोजन के उपयों को अपनाते हैं और दो से अधिक बच्चे नहीं होने देते। इस कारण वे झगरू की अपेक्षा अधिक अच्छा जीवन यापन करते हैं।
      पुस्तक का संदेश यही है कि हमें अपने परिवार को छोटा रखना चाहिए तथा लड़के लड़की के बीच कोई भेद नहीं मानना चाहिए।
2) सुग्गी चाची का गाँव :-
      'कृतिकार प्रकाशन` द्वारा यह लघु उपन्यास 1998 में प्रकाशित हुआ। 23 पृष्ठों का यह लघु उपन्यास अशिक्षा और अंधविश्वासों के विरूद्ध चलाए गए संघर्ष व आंदोलन की कथा है। ग्रामीण पाठकों के लिए मुख्य रूप से लिखा गया यह लघु उपन्यास अतिशय संक्षिप्त एवम् सरल भाषा में हैं। 
      इस लघु उपन्यास के केन्द्र में सुग्गी चाची हैं जो एक छोटे से गाँव में रहती हैं। पर उस गाँव में सुविधाओं का अभाव है। सुग्गी चाची गाँव में स्कूल और अस्पताल खुलवाने के लिए प्रयत्न करती हैं। पहले लोग उनका साथ नहीं देते पर धीरे-धीरे लोग सुग्गी चाची के बात समझते हैं और उनके प्रयास में उनका साथ देते हैं।
3) खूँटा में दाल है :-
      'कृतिकार प्रकाशन` द्वारा सन् 1991 में प्रकाशित यह 32 पृष्ठों का एक लघु बाल उपन्यास है। इसमें एक छोटी सी चिड़िया के संघर्ष की कहानी को बड़े ही रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
      इस पुस्तक में 'धीरा` नाम की एक चिड़िया की कहानी है। जो दाल का एक दाना खूँटे मंे रखकर खाना चाहती थी कि खूँटा व दाल हड़प लेता है। धीरा ने बढ़ई से खूँटे की शिकायत की, बढ़ई की शिकायत राजा से और राजा की शिकायत रानी से की। रानी ने भी उसकी बात नहीं मानी। फिर धीरा ने रानी की शिकायत साँप से और साँप की शिकायत लाठी से की।
      इस पर भी धीरा का काम नहीं बना। पर उसने हिम्मत नहीं हारी। लाठी की शिकायत आग से, आग की समुद्र से और समुद्र की शिकायत उसने हाथी से की। इस पर भी जब काम न बना तो उसने हाथी की शिकायत जाल और जाल की शिकायत चूहे से की। चूहे ने धीरा के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए उसकी मदद की।
      इस तरह अंत में चिड़िया को उसकी दाल मिल जाती है। इस लघु बाल उपन्यास का संदेश यही है कि हमें हिम्मत न हाते हुए अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए।
4) एक स्त्री का सफर :-
      'कृतिकार प्रकाशन` द्वारा ही सन 1996 में प्रकाशित 22 पृष्ठों की यह पुस्तक अशिक्षा, अंधविश्वास और चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में होने वाले भयंकर रोगों के प्रति हमें सजग बनाते हुए भविष्य के प्रति हमें आशान्वित भी करती हैं।
      इस पुस्तक में सरोस्ती नामक एक विकलाँग स्त्री की कहानी है। बचपन में वह पोलियो का शिकार हो गयी थी। उसे अपनी विकलाँगता के कारण कई बार अपमानित भी होना पड़ा था। पर उसने पढ़ने का निर्णय लिया और पढ़कर शिक्षिका बन गई। उसने अपना सारा जीवन औरतों की शिक्षा एवम् विकास में लगाने का प्रण किया था।
      इस तरह इस पुस्तक के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि शिक्षा ग्रहण करके हर कोई अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है। स्वावलंबी बनकर, समाज में प्रतिष्ठा के साथ जीवन यापन कर सकता है।
5) वानर सेना :-
      'कृतिकार प्रकाशन` द्वारा यह बाल उपन्यास 1992 में प्रकाशित हुआ। यह 32 पृष्ठों का है। सन 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन` के दौरान बलिया के बच्चों ने भी वानर सेना बनाकर इस लड़ाई मे हिस्सा लिया। उसी का रोचक वर्णन इस लघु बाल उपन्यास में है।
      कहानी मुंशी अम्बिका प्रसाद के लड़के केदार से शुरू होती है। उसके बड़े भाई निर्मल की एक पुस्तक उसने चोरी से पढ़ी। वह गाँधी जी की आत्मकथा थी। केदार इससे बहुत प्रभावित हुआ और उनकी तरह बनने की ठान लेता है।
      अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर वह छोटा सा पुस्तकालय शुरू करवाता है। स्कूल में हड़ताल करवाने में अहम भूमिका निभाता है। शहर में पोस्टर चिपकाता है। इसी तरह के कई कार्यो का वर्णन इस लघु बाल उपन्यास में है।
      इस बाल उपन्यास के माध्यम से अमरकांत ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बलिया के छोटे-छोटे बच्चों द्वारा किये गये क्रांतिकारी कार्यो का वर्णन किया है।
      इसी तरह की कई अन्य पुस्तकें भी अमरकांत ने लिखी है। बाल साहित्य का हिस्सा होते हुए भी ये बड़ी महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं। खासकर तब जब कोई अमरकांत के संपूर्ण रचनात्मक व्यक्तित्व की पड़ताल करना चाहता हो। 'वानर सेना` को पढ़कर यह आसानी से समझा जा सकता है कि 'इन्हीं हथियारों से` जैसा उपन्यास लिखने की प्रेरणा बीज रूप में अमरकांत के मन मंे बहुत पहले से ही था। 'वानर सेना` और 'इन्हीं हथियारों से` की पृष्ठभूमि में बलिया का वही आंदोलन है।
      इस तरह समग्र रूप से अमरकांत की कहानियों, उपन्यासों, संस्मरण और प्रकीर्ण साहित्य को देखने के पश्चात हम कह सकते हैं कि अमरकांत का रचना साहित्य बहुत बड़ा है। वे अभी तक लगातार अपने रचना संसार को बढ़ाने में लगे हैं।
      अमरकांत का साहित्य अपने समय का जीवंत दस्तावेज है। उनकी कहानियाँ उन्हें प्रेमचंद के समकक्ष प्रतिष्ठित करती हैं तो 'इन्हीं हथियारों से` जैसे उपन्यास महाकाव्यात्मक गरिमा से युक्त हैं। 'सुरंग` जैसे उपन्यास समाज के परिवर्तन के साथ आग बढ़ने की प्रेरणा से युक्त हैं। 'आकाश पक्षी` जैसे उपन्यास बदलती सामाजिक व्यवस्था में होनेवाले परिवर्तन का बड़ा ही गंभीर और सूक्ष्म चित्रण प्रस्तुत करते हैं।
      समग्र रूप से हम कह सकते हैं कि अमरकांत का पूरा साहित्य हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर है। विशेष तौर पर आजादी के बाद के देश के सबसे बड़े वर्ग ''निम्न मध्यमवर्गीय समाज`` के जीवन में निहित सपनों, दुखों, परिवर्तनों और प्रगति की सूक्ष्म विवेचना अमरकांत के साहित्य में मिलती है। अमरकांत का साहित्य इन्हीं संदर्भो में 'भारतीय` है और यथार्थ की जमीन से जुड़ा हुआ है।