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Tuesday, 4 August 2009

कल रक्षा बंधन का त्यौहार है -------------------------------


कल रक्षा बंधन का त्यौहार है ,

पर मेरा मन उदास है ।

इसलिए नही की -मुझे राखी कोई नही बांधेगी

बल्कि इस लिए की -यह रिश्ता फ़िर कंही न कंही ,

देश दुनिया के किसी कोने मे ,शर्मिंदा होगा ।

कोई बहिन कल भी शिकार होगी ,

किसी राखी बंधे भाई के द्वारा ही -बलात्कार और न जाने किस किस की ।

कोई बहिन कल भी किसी कोठे पे नंगी होगी ,

किसी राखी बंधे भाई के ही हांथो ।

कल भी किसी शराब घर मे कोई बहिन ,

जिस्म की नुमाईस कर जो पाएगी ,

उसी से किसी भाई के लिए राखी खरीदेगी ,

किसी से रक्षा का वचन लेगी ।

यह सब सोचता हूँ तो खुश हो जाता हूँ ,

यह सोच कर की चलो मैं इन ढकोसलों से बच गया,

क्योंकि मेरी कोई बहिन नही है ।

और जो हैं ,उनकी रक्षा मैं अकेले नही कर सकता ।

नैतिकता जोर मारती है लेकिन -----असमर्थ हूँ ।

ऐसा सम्भव तभी होगा जब ,

संस्कार बचेंगे ,जब हम सीखेगे

रचना ,प्रेम और त्याग ।

जब नियम ,संयम और समर्पण को हम जान पायेंगे ।

अन्यथा होता रहेगा यही ,

एक बहिन से राखी बंधवाकर ,

दूसरी बहिन की कपड़े उतारते रहेंगे हम .