साझा 
मैंने
उस दिन ऐसे ही कहा कि-
तुम बड़ी
चालाक हो,
सब के
साथ कोई न कोई रिश्ता बना कर रखती हो .
इस पर
उसने फिर कहा –
तुम्हारे
साथ कौन सा रिश्ता है ?
मैंने
कहा –
 प्यार, विश्वास और दोस्ती का ।
उसने
कहा -
  प्यार मैं तुम्हें करती नहीं 
विश्वास
तुम मेरा तोड़ चुके हो 
और जिस
पर विश्वास न हो, वह दोस्त कैसा ?
उसकी
बातें कड़वी थी, पर सच्ची थी । 
मेरी
खामोशी ने उसे पिघलाया और वह बोली –
मेरा
तुम्हारे साथ अतीत का रिश्ता है,
जो वर्तमान
मे अपनी पहचान खो चुका है 
लेकिन
मेरा वर्तमान और भविष्य ,
मेरे
अतीत से बेहतर नहीं है 
 और हो भी जाए तब भी ,
 अतीत की बातें मैं भूल नहीं सकती 
क्योंकि
मैं  –
 सब के साथ कोई न कोई रिश्ता बना कर रखती हूँ ।
इतना
कहकर वो मुस्कुराने लगी । 
मन ही
मन मुझे गुदगुदाने लगी । 
 
