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Sunday 22 March 2020

किताबों का गाँव : भिलार ।


किताबों का गाँव : भिलार 
( बौद्धिक, सांस्कृतिक और जैविक खाद की त्रिवेणी ।  )

         हाराष्ट्र के सतारा जिले के महाबलेश्वर तालुके अंतर्गत आने वाले भिलार गाँव को किताबों के गाँव के रूप में एक नई पहचान मिली है । 04 मई 2017 को यह नई पहचान इस गाँव को मिली । तत्कालीन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फड्नविस एवं शिक्षा मंत्री श्री विनोद तावड़े जी ने इसे सरकारी रूप से प्रोत्साहित किया । राज्य मराठी विकास संस्था एवं महाराष्ट्र शासन मराठी भाषा विभाग ने इसके कार्यान्वयन की ज़िम्मेदारी ली । 02 से 03 किलो मीटर के बीच फैला हुआ यह गाँव मशहूर हिल स्टेशन पंचगनी और महाबलेश्वर के बीच में है । पंचगनी / पांचगणी से 05 किलो मीटर ऊपर की तरफ और महाबलेश्वर से 14 किलो मीटर नीचे की तरफ ।  

            गाँव में ऐसे 30 केंद्र बनाये गये हैं जहां बैठकर पुस्तक प्रेमी किताबें पढ़ सकते हैं । इतिहास, दर्शन, साहित्य, कवितायें, आत्मकथाएँ, जीवनी इत्यादि से संबंधित किताबें यहाँ उपलब्ध हैं । सरकार ने अपनी तरफ से कुर्सियाँ, टेबल, सजावटी छाते, काँच की आलमारी समेत कई सुविधायें सरकार की तरफ से गाँव वालों को उपलब्ध कराई गयी हैं जिससे वे पुस्तक प्रेमियों को बेहतर सुविधा प्रदान कर सकें । शुरुआत में सरकार की तरफ से पंद्रह हजार पुस्तकें गाँव में उपलब्ध कराई गईं थी जो की तीन सालों में बढ़कर क़रीब चालीस हजार के क़रीब पहुँच रही है ।

( यह नक्शा पुस्तकांच गाँव वर्ष पूर्ती सोहड़ा नामक पत्रिका से लिया गया है । जो कि राज्य मराठी संस्था द्वारा ही 04 मई 2018 को प्रकाशित हुई । )
        किताबों के इस गाँव का बोध चिन्ह नीचे दिया गया है । संत तुकाराम के अभंग की एक पंक्ति को इसके ऊपर लिखा गया है । पंक्ति है - आम्हां घरीं धन शब्दांचींच रत्ने | अर्थात – हमारे घर जो धन है वो शब्द रूपी रत्नों के रूप में ही है । साथ ही किताब के बीच में



स्ट्राबेरी को बनाया गया है जो इस गाँव की दूसरी बड़ी पहचान है । वैसे इस गाँव में गूलर के भी कई पेड़ हैं जो कि अपने आप में खास बात है ।



            यहाँ मराठी की पुस्तकें बहुतायत में हैं लेकिन अब हिन्दी और अँग्रेजी की भी किताबें उपलब्ध कराई जा रही हैं । फ़िलहाल अँग्रेजी की चार हज़ार के क़रीब और हिन्दी की 200 से 300 पुस्तकें उपलब्ध हैं । किताबों की संख्या यहाँ लगातार बढ़ रही है । कार्यालय संयोजक बालाजी नारायण हड़दे जी ने व्यक्तिगत बात चीत के दौरान बताया कि हाल ही में महाराष्ट्र के कद्दावर नेता श्री शरद पवार जी ने दस लाख रुपये मूल्य की किताबें दान दीं । कोल्हापुर विद्यापीठ की तरफ से भी पाँच सौ से अधिक किताबें उपहार रूप में मिली हैं ।  यहाँ के कार्यालय की पूर्व अनुमति लेकर कोई भी व्यक्ति या संस्था यहाँ किताबें दे सकता है । कार्यालय में संपर्क का पता निम्नलिखित है –
 प्रकल्प कार्यालय
द्वारा- श्री. शशिकांत भिलारे
कृषीकांचन, मु. पो. भिलारे,
ता.महाबळेश्वर, जि.सातारा
संपर्क- 02168-250111
श्री. व्यंकट- 08888230551

राज्य मराठी विकास संस्था, मुंबई
(महाराष्ट्र शासन पुरस्कृत)
एलफिन्स्टन तांत्रिक विद्यालय,
, महापालिका मार्ग,
धोबीतलाव,मुंबई ४०० ००१
दूरध्वनी - २२६३१३२५ / २२६५३९६६
इ-मेल - rmvs_mumbai@yahoo.com
          इस योजना को शुरू करने के पीछे सरकार के कुछ मुख्य उद्देश्य थे । जैसे कि -  
1.      वाचन संस्कृति को बढ़ावा देना ।    
2.      मराठी भाषा के प्रचार – प्रसार में योगदान देना ।
3.      पर्यटन को बढ़ावा देना ।
4.      गाँव में ही रोज़गार के नये अवसर उपलब्ध कराना ।
5.      गाँव से पलायन को रोकना ।

            
( यह नक्शा पुस्तकांच गाँव वर्ष पूर्ती सोहड़ा नामक पत्रिका से लिया गया है । जो कि राज्य मराठी संस्था द्वारा ही 04 मई 2018 को प्रकाशित हुई । )
 तीन दिवसीय पेंटिंग कैंप लगाकर गाँव के स्वरूप को 75 कलाकारों की मदद से इस तरह बनाया गया कि गाँव की मुख्य सड़क से ही सभी पुस्तक उप केन्द्रों तक पहुँचा जा सके । रंगीन और आकर्षक बोर्ड बनाये गये । जिन घरों को पुस्तक उप केंद्र के रूप में चुना गया उनके दालान को भी आकर्षक रूप से सजाया गया । स्वत्व नामक NGO का इस कलात्मक कार्य में महत्वपूर्ण योगदान रहा ।  अब तो गाँव की मुख्य सड़क भी सीमेंट की बना दी गयी है । गाँव के इन घरों के चयन के लिए गाँव वालों से आवेदन मंगाये गये और उनमें से अधिकांश उन घरों को चुना गया जिनके घर के दालान या अहाते में किताबें रखने की पर्याप्त जगह हो । गाँव के घरों के अतिरिक्त विद्यालय और मंदिर जैसे स्थल पर भी उप केंद्र बनाये गये ।

       यह गाँव विश्व का दूसरा और एशिया का पहला किताब गाँव है । पहला स्थान ब्रिटेन के हे-ओन-वे गाँव का है । लेकिन गाँव वालों की सीधी भागीदारी के साथ सरकारी सहयोग से चलने वाला यह इकलौता प्रकल्प है । ब्रिटेन के हे-ओन-वे गाँव में प्रकाशकों की भागीदारी बहुत बड़ी है । भिलार गाँव की सरपंच श्रीमती वंदना प्रवीण भिलार के पति प्रवीण जी , गाँव अन्य रहिवासियों तथा कार्यालय संयोजक श्री बालाजी भिलार से बातचीत के माध्यम गाँव को लेकर जो भावी योजनाएँ चर्चा में हैं उनकी जानकारी मिली । ये भावी योजनाएँ निम्नलिखित हो सकती हैं –
1.  किताबों का डिजिटलीकरण करते हुए उन्हें उपलब्ध कराना ।
2.  अडियो बुक की व्यवस्था करना ।
3.  साहित्यिक गोष्ठियों, परिसंवादों के लिए जगह उपलब्ध कराना ।
4.  किताबों के लोकार्पण, साहित्यिक उत्सवों, व्याख्यानों की व्यवस्था करना ।
5.  अन्य भारतीय एवं विश्व साहित्य को जगह देना ।
6.  वेब पोर्टल, डेटाबेस, मोबाईल एप इत्यादि तकनीकी साधनों की व्यवस्था ।
7.  गाँव की अन्य विशेषताओं से लोगों को अवगत कराना ।
8.  स्कूल / कालेज के विद्यार्थियों के लिए गाँव में ही रहने की किफ़ायती दर पर व्यवस्था करना ।
9.  ज्ञानपीठ और साहित्य अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित साहित्यकारों के साहित्य के लिए विशेष वीथिकाओं का प्रबंधन ।
10.  एक बड़े पुस्तकालय भवन की संभावना पर काम ।
11.  देश विदेश के सभी प्रकाशकों की भागीदारी पर रूप रेखा तैयार करना ।

               गाँव का सम्पूर्ण विद्युतीकरण हो चुका है । घर-घर में पीने के साफ पानी सप्लाई की व्यवस्था है । गाँव की अधिकांश आबादी मराठा समाज से जुड़ी है । बोरवेल और कुएं भी पर्याप्त संख्या में हैं । गाँव में ही तीन विद्यालय हैं । महाविद्यालय पांचगनी / पंचगनी में है । गाँव के अंदर ही करीब 150 से 200 लोगों के रहने की व्यवस्था छोटे – छोटे होटलों के माध्यम से हो गई है । कई गाँव वाले अपने घरों में भी रहने खाने की सुविधा प्रदान करते हैं । इससे उन्हें रोजगार का नया साधन भी मिल गया है ।

            पुस्तक गाँव क्रे रूप में प्रसिद्ध होने से पहले यह गाँव अपनी स्ट्राबेरी की खेती के लिए भी जाना जाता रहा है । पूरे महाबलेश्वर क्षेत्र से जितनी स्ट्राबेरी बाहर भेजी जाती है, उसका एक बड़ा हिस्सा इसी भिलार गाँव से आता है । ओर्गेनिक खाद्य पदार्थों की सप्लाई और गोरमा / Gourmet फूड विशेषज्ञ श्री सुनील सिंह जी ने बताया कि भिलार गाँव की स्ट्राबेरी की गुणवत्ता अच्छी है । यहाँ प्रति वर्ष लगभग तीन हजार मैट्रीक टन स्ट्राबेरी पैदा होती है जिसकी बाजार में क़ीमत 50 से 60 करोड़ रुपये की है । स्ट्राबेरी की खेती का समय अगस्त से मार्च तक रहता है । नाभिया, आर वन और स्वीट चार्ली यहाँ की स्ट्राबेरी के मुख्य प्रकार हैं । रिलायंस, मोर, स्टार बजार, बिग बजार, बिग बास्केट और फ्युचर ग्रुप जैसी बड़ी कंपनिया यहाँ से स्ट्राबेरी ख़रीदती हैं । गाँव के ही अक्षय भिलार के खेत में हमें जाने का मौका मिला । वहाँ मंचिंग से लेकर ड्रिप इरिगेशन की पूरो जानकारी उन्होने दी । मिक्स क्ल्टीवेशन के माध्यम से ये किसान गोभी, मिर्च, बैगन, टमाटर, लहसुन, प्याज, मटर, हल्दी, गाजर इत्यादि भी उगा लेते हैं । धान और गेहूं की भी यहाँ अच्छी पैदावार है । एग्ज़ोटिक ( EXOTIC ) सब्जियों की पैदावार को लेकर भी ये लोग अब सक्रिय हो रहे हैं ।

           ( खुद की यात्रा के दौरान ली गई तस्वीरें । दिनांक 14 मार्च 2020 – भिलार ,महाबलेश्वर  )   

           जिन एग्ज़ोटिक ( EXOTIC ) सब्जियों की पैदावार को लेकर यहाँ संभावनाएं हैं, उनकी सूची इस प्रकार है –
1.      लेक्टस (Lettuce)          
2.      आईस बर्ग ( IceBerge )
3.      ब्रोकोली
4.      चेरी टोमॅटो
5.      चायनीज़ कैबेज
6.      सेलरी ( Celery)
7.      रोज़मेरी
8.      ओरिगेनो
9.      केल ( Baby Kale)
10.  बेबी कैरेट
11.  अस्परागस ( Asparagus)
12.  नालकोल
13.  बेजिल
14.  जुगनी
15.  बेबी बीट रूट
16.  ओर्गेनिक टर्मरिक
17.   मलबेरी
18.  गूसबेरी
                   इन उपर्युक्त सब्जियों,सलाद पत्तियों और मसालों में कुछ तो ऐसे हैं हमारे यहाँ भोजन में पहले से शामिल रहे हैं तो कई ऐसे भी हैं जो मुख्य रूप से हमारे यहाँ पैदा नहीं होते थे । एग्ज़ोटिक ( EXOTIC ) सब्जियों के उत्पादन से सुनील जी का यही अभिप्राय था कि तमाम देशी-विदेशी सब्ज़ियों,सलादों और मसालों में से जिन्हें यहाँ पैदा किया जा सके और जिनकी बाजार में अच्छी माँग और कीमत है उसकी खेती को प्रोत्साहित करना । अपनी बात का प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाने के लिए वे हमें भिलार से महाबलेश्वर लेकर गये जहां उन्होने हमारी मुलाक़ात श्रीमती रूपल तेजानी जी से कराई । रूपल जी ड्रीम फार्म की मालकिन हैं और अपने पाँच एकड़ के फार्म में एग्ज़ोटिक ( EXOTIC ) सब्जियों की खेती बड़ी लगन से करवाती हैं ।


                श्रीमती रूपल तेजानी से मिलकर और इन तमाम एग्ज़ोटिक ( EXOTIC ) सब्जियों की खेती को देखकर इतना तो समझ में आ ही गया कि किताबों के गाँव भिलार में इको और एग्रो टूरिजम की भी अपार संभावनाएं हैं । बाकी साहित्यिक और अकादमिक गतिविधियां इसमें सहायक ही होंगी । इस बात को गाँव वाले भी अच्छी तरह समझ रहे हैं । किताबों का गाँव घोषित होने के बाद से ही गाँव में आवास और भोजन जैसी सुविधाओं का विकास हुआ । दस से बीस हजार रुपये की नौकरी के लिए मुंबई – पुणे का रुख करनेवाले लोग अब गाँव में ही रोज़गार की संभावनाएं देखने लगे हैं । पहाड़ी इलाकों के लिए यह बहुत बड़ी बात है ।

                पहाड़ों की बंद किवाड़ों पर उम्मीद इन अभिनव प्रयोगों के माध्यम से दस्तक दे रही है । आवश्यकता इस तरह के प्रयोग लगातार करने की है । इनमें सरकार और जन भागीदारी दोनों ज़रूरी है । किताबों का गाँव एक कामयाब प्रयोग लग रहा है । आशा है दिन ब दिन किताबों का गाँव समृद्ध और संपन्न होते हुए अपनी पहचान को वैश्विक स्तर पर कई संदर्भों में दर्ज़ करायेगा । स्ट्राबेरी, इको और एग्रो टूरिजम, एग्ज़ोटिक( EXOTIC ) सब्जियां, होटल व्यवसाय और खूब सारी किताबें इसके संभावित क्षेत्र हो सकते हैं । आज यह गाँव बौद्धिक, सांस्कृतिक एवं जैविक खाद की त्रिवेणी बनकर उभरा है ।






डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
सहायक अध्यापक – हिन्दी विभाग
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
पड्घा रोड़, गांधारे गाँव
कल्याण-पश्चिम 421301
महाराष्ट्र ।
8090100900 / 9082556682














                                            
संदर्भ ग्रंथ सूची :

1.       पुस्तकांच गाँव भिलार : वर्ष पूर्ति सोहड़ा, 04 मई 2018 । संपादक – डा. आनंद काटीकर । प्रकाशक – संचालक,राज्य मराठी विकास संस्था, मुंबई ।
4.       BHILAR- A VILLAGE OF BOOKS- : CHALLENGES AND OPPORTUNITIES -Mangesh S. Talmale, eISSN No. 2394-2479, http://www.klibjlis.com.“Knowledge Librarian” An International Peer Reviewed Bilingual E-Journal of Library and Information Science Volume: 04, Issue: 06, Nov. – Dec. 2017 Pg. No. 127-131
6.       SOCIO-ECONOMIC DEVELOPMENT IN MAHABALESHWAR AND JAOLI TAHSIL OF SATARA DISTRICT MAHARASHTRA STATE INDIA - Dr. Rajendra S. Suryawanshi, Mr. Jitendra M. Godase. International Journal of Research in Social Sciences Vol. 7 Issue 12, December 2017, ISSN: 2249-2496 Impact Factor: 7.081 Journal Homepage: http://www.ijmra.us, Email: editorijmie@gmail.com
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