न की इतनी गैरत की मुलाकात कर लेती ,
होती अपनो की परवा तो कैसे रात कर लेती ,
बला की कशिश है तुझमे लोग कहते है ,
गैरों से न मिली फुर्सत जों मेरे रंजोगम से आखें चार कर लेती /
सब्र का इम्तहाँ ले रहा कब से,मोहब्बत से खेल रहा अब तो,
राह बदल भी देते मगर मजबूरी है, उस बिन जिंदगी अधूरी है/
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मेरा जहन से तू निकला ही नहीं ,
मेरी यादों में तू रहा भी नहीं ;
तू कभी साथ था मेरे पर उसको हुआ बरसों ,
क्यूँ मेरे अश्कों से तेरा रिश्ता टुटा ही नहीं /
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कभी इठला के दिल चुराया ,
कभी शरमा के बदन ;
इन्तहा तब हो गयी ,
ढरकता पल्लू औ कहा हमदम /
मेरा दिल है बावरा तेरी मुलाकात के लिए ,
सिने में जलती मशाल है तेरे प्यार के लिए ;
सोचों में दिन गुजरा यादों में रात ,
मेरी आखें सुनी है तेरे इक ख्वाब के लिए /
मोहब्बत की जुदाई में भी एक सुकूँ है दिले दिलदार से पूंछो ,
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मोहब्बत की तड़पन में छुपा इक जुनूं है किसी आफताब से पूँछों ;
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चाहते तमन्ना में उम्र गुजर जाये भी तो कम है ,
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इन्तजारे इश्क भी एक खुदाई है अपने प्यार से पूँछों /
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