उदघोष कर रहा नक्सल यहाँ हर रोज किसी के खून से ,
सो रहा है मंत्री मंडल देश का बड़े जूनून से ,
बहस नहीं खत्म को रही निपटे किस तरह नक्सल वाद से ,
क्या करे चिदंबरम कब जुड़े वो जमीनी यथार्थ से ,
न बोल पाया जों आम लोंगो की भाषा आज तक ,
वो क्या कहेगा गर मर रहा आम आदमी यूँ नक्सल वार से /
देश का गृहमंत्री हिंदी नहीं है जानता ,
इससे बड़ा दुर्भाग्य मै कुछ नहीं मनाता /
छुद्र है मानसिकता जिनंकी वो देश चला रहे ,
प्रान्त को देश से बड़ा वो मान रहे /
अंगरेजी स्वीकार्य है भले गुलामी का वो पर्याय है ;
हिंदी से डरना दर्शा के देश को उजाड़ रहे /