अभिलाषा  मुक्तक  शैली  मे लिखी गई मेरी  कविता  है। इसमे  कुल  १५०  बंद हैं। कुछ  बंद आप कई लिये  यंहा लिख रहा हूँ। 
                                       (१)                           
                          मेरा अर्पण और समर्पण 
                         सुबकुछ तेरे नाम प्रिये 
                        श्वास -श्वास तेरी अभिलाषा 
                        तू जीवन की प्राण प्रिये । 
                                 (२)
                      तनया तू है मानवता  की 
                    प्रेम भाव की तेरी काया 
                   तेरे प्रेम का जोग  लिया तो 
                 प्रेमी बन वन फिरूं प्रिये।        
                        (३)
               प्रेम नयन का अंजन है तू 
              प्रेम भाव का खंजन है तू
            तेरी आँखों का सम्मोहन 
           मेरे चारों धाम प्रिये।  
           (४)
         तुझमे नूर खुदाई का है 
      मजहब तू शहनाई का है 
    तू इश्क इबादत की आदत 
   अब तो मेरी बनी प्रिये।      
ये बंद आप को  पसंद आंयें  तो  अवस्य  सूचित करें। फ़िर और भी बंद आप लोगो   की सेवा मे प्रस्तुत करूँगा । 
 
