हमारी
संवादहीनता का अंतराल
शब्दों से पटा है
औऱ हम
सूनी पड़ी किसी वीणा की तरह
बस छू लेने भर से
झंकृत होने को तैयार ।
संवादहीनता का अंतराल
शब्दों से पटा है
औऱ हम
सूनी पड़ी किसी वीणा की तरह
बस छू लेने भर से
झंकृत होने को तैयार ।
अपनी तटस्थता पर
हम दुःखी हैं
औऱ
इंतज़ार में हैं
इंतज़ार के अंतिम पल के
रंजिशों का
यह रंज
कितना अजीब है ?
हम दुःखी हैं
औऱ
इंतज़ार में हैं
इंतज़ार के अंतिम पल के
रंजिशों का
यह रंज
कितना अजीब है ?
लोच
इश्क़ की रूह है
यह
दर्द की राह पर
सुर्ख़ होती है
फ़िर
सर्द रातों की
ठंड हवाओं सी
यह हमारी रूह से लिपटती है ।
इश्क़ की रूह है
यह
दर्द की राह पर
सुर्ख़ होती है
फ़िर
सर्द रातों की
ठंड हवाओं सी
यह हमारी रूह से लिपटती है ।
इश्क़ में
ग़ाफ़िल होकर ही
जान पाया कि
इश्क़ में अकेलापन
कभी भी
किसी को भी
नसीब ही नहीं होता ।
ग़ाफ़िल होकर ही
जान पाया कि
इश्क़ में अकेलापन
कभी भी
किसी को भी
नसीब ही नहीं होता ।
----- डॉ. मनीष कुमार मिश्रा ।