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Thursday, 20 April 2023

मनीष कुमार मिश्रा की कविताएं

 

स्त्री का पुरुष के प्रति 
प्रेम, भक्ति और आसक्ति 
को अनगिनत कवि 
यदा कदा शब्द रूप देते दिखते है किन्तु 
मनीष जी की कविताओं मे  पुरुष की स्त्री के प्रति 
प्रेम और भक्ति प्रशंसनीय है मनीष जी के इस कविता संग्रह "इस बार तुम्हारे शहर मे"-
में अधिकांश कविताओं में स्त्री को स्थान मिला है 
उन्होंने स्त्री को केवल 
देवी या साधारण नारी/स्त्री ना मान कर 
स्त्री को पुरुष की शक्ति और प्रेरणा के रूप मे 
प्रस्तुत किया है । 
"इस बार तुम्हारे शहर में " कविता संग्रह मे 
अधिकांश कविताओं मे स्त्री अस्था का केंद्र रही है 
स्त्री के हावभाव,  
शारीरिक गठन को सुंदर शब्दों से गरिमापूर्ण सजाया , निखारा है 
औरत /स्त्री होने का उन्दा अर्थ प्रकट करती कविता -"तुम जो सुलझाती हौ "- मे स्त्री की प्रकृति की तरह व्याख्या की है 
बदलते मौसम और उनकी विशेषताओं को अपने मे समेटे स्त्री... 
बांधनों से बंधी 
जीवन की गाँठे सुलझाती स्त्री...जिसके होने से ही 
सब अर्थपूर्ण है अन्यथा सबका सब व्यर्थ है 
पुरी कविता स्त्री की महिमा का गुणगान गाती है ।
"दुबली पतली और उजली सी"- कविता मे कहानी, कविता, महाकाव्य को 
अपनी चुप्पी में  समेटे 
रिश्तो को जोड़ती , बांधती , सिंचती लड़की उत्सव रचा बसा देती है मन में 
किन्तु उसकी चुप्पी मे 
बहोत कुछ समाया है  
इतनी गहरी प्रस्तुति लड़की के मन की निश्चय ही 
पाठक के मन मे गहरे 
उतरती है । 
विश्वास के प्रतिक के रूप मे स्त्री की व्याख्या 
"सवालों से बंधी " कविता मे खूब की है 
प्रेम और  रिश्तों को समेटे "तुम्हारे ही पास" कविता में फिर एक बार 
नारी के उदांत ह्रदय की व्याख्या की है जो 
प्यार की उष्मा से पिघल जाती है ।
"कि तुम जरूर रहना"- कविता मे पुरुष के भीतर शक्ति बन कर 
प्रेरित करती नारी ... 
स्त्री का आना पुरुष के जीवन को कितना संवारता है 
"तुम आ रही हो तो "- कविता से पूर्ण प्रतिपादित होता है । वही " चुड़ैल" कविता मे 
व्यंग का पुट मिलता है चुड़ैल शब्द का प्रयोग स्त्री के 
प्रेम मे वशिभूत हो कर किया है स्त्री की सुंदरता को 
शब्दों मे बांधा नहीं जा सकता "उसे जब
देखता हुँ " कविता स्पष्ट करती है कि स्त्री के सौन्दर्य का पैमाना केवल उसके उपासक की आँखों मे होता है 
अन्य कविताओं मे "कविताओं के शब्द"- 
कविता मे शब्दों की महिमा , उपयोगिता का सुंदर वर्णन दिखता है 
औजारों की धार से नुकिले शब्द, 
विचारों को विस्तार देते शब्द, उम्मीद को बांधते शब्द, अपनी पूर्ण आभा लिए शब्द कविता को लय प्रदान करते है वही दूसरी कविता 
"तस्वीर खिंचना"- बेहद प्रासंगिक है  भौतिक युग मे सेल्फी का महत्व ओर प्रचलन उत्तरोत्तर बढ़ता ही  जा रहा है हर आयु वर्ग 
का व्यक्ति अपनी आयु ओर उपयोगिता से कही अधिक शौक से मोबाईल युग मे मोबाईल का उपयोग करता है 
उससे तस्वीरे लेता है 
जाने अनजाने ये तस्वीर लेने का शौक उसके यादों के संग्रह को बढ़ाता ही जाता है उन सुनहरी यादों की मुस्कानों मे जिन्हे फिर से जिया तो नहीं जा सकता पर तस्वीरो को देख कर मुस्कुराया जा सकता है । 
" तृषिता" मे प्रेम मे रूठने मनाने का जो आनन्द है जो प्रेम को बढ़ाता है उसे जिंदा रखता है उस मनुहार का सुंदर वर्णन हे 
व्याकरण की बरिकियों को दर्शाती कविता "तुम्हे मनाने के"- मे 'जानने' और 'मानने' का अंतर केवल शब्दों का नहीं भावों से कही गहरे जुड़ा है । "वह पीला स्वेटर"- कविता मे स्त्री का साथ ना होकर भी हमेशा साथ
होना  प्राण वायु की तरह जिंदा रखता है मौसम बदले ,वक्त बदला पर 
उसके लिए जज्बात नहीं बदले , जिस दिल की गहराई मे समाई थी आज भी वही बसी है 
इसी तरह " तुम मिलती तो बताता" ," मुझे उतनी ही  मिली तुम" , "झरोखा" ,इन सभी कविताओं मे कही यूँ भी लगता है जैसे कवि को पुराना प्यार रह रह कर याद आता है 
"मणिकर्निका" - कविता जीवन्तता हर चीज , हर घटना मे है पूर्णतः दर्शाती है ।
निष्कर्ष स्वरूप "इस बार तुम्हारे शहर में "- मनीष जी की कविताओं का ऐसा संग्रह है मानों गुलदस्ते में अनेक फूलो का एक साथ एक जगह होकर भी अपनी खुशबु ,अपना रंग ,अपनी पहचान ,स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रहना ।
अनेकानेक शुभकामनाओं के साथ.. बधाई 💐

डॉ. रेखा वैदया 
प्रवक्ता हिंदी विभाग 
जवाहरलाल नेहरू राजकीय महाविद्यालय 
पोर्टब्लैयर , अंडमान एवं निकोबार द्विपसमुह 
9679591235


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