युवा कवि मनीष के दो काव्य संग्रह अभी तक प्रकाशित हो चुके हैं । वर्ष 2018 में आप का पहला काव्य संग्रह अक्टूबर उस साल शीर्षक से प्रकाशित हुआ । वर्ष 2019 में आप का दूसरा काव्य संग्रह इस बार तुम्हारे शहर में प्रकाशित हुआ । इन दोनों संग्रहों के माध्यम से मनीष की सौ से अधिक कविताएं पाठकों के लिए उपलब्ध हो सकीं । इन में से अधिकांश कविताओं के केंद्र में प्रेम का शाश्वत भाव है ।
‘जब कोई किसी को याद करता है’ काव्य में कवि अपनी प्रियतमा के वियोग में विह्वल है । उसने सुन रखा है कि किसी को याद करने पर आसमान से एक तारा टूट जाता है लेकिन अब इस बात पर उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं है क्योंकि विरह में अपनी प्रेयसी को जितना याद उसने किया है अब तक तो सारे तारे टूटकर जमीन पर आ जाने चाहिए -
अगर सच में ऐसा होता तो अब तक सारे तारे टूटकर जमीन पर आ गए होते आखिर इतना तो याद मैंने तुम्हे किया ही है
‘रक्तचाप’ कविता में कवि अपने बढ़े रक्तचाप को नियंत्रित करना चाहता है लेकिन प्रेमिका की यादें उसकी हर गहरी और लंबी साँसों में घुसकर उसके रक्तचाप को और बढ़ा देती है । प्रेमिका की यादें रक्तचाप को नियंत्रित करने का हर प्रयास असफल कर देती हैं । ‘ जब तुम्हें लिखता हूँ ’ काव्य में कवि प्रेयसी को पत्र लिखते समय अपने भावों को वयक्त करता है ।
कवि अपने सारे भावों को चुने हुए शब्दों में बड़ी जतन से लिखता है । बसंत के मौसम में होली के रंगों से प्रियतमा को सराबोर करके लिखता है । कवि को अपने प्रियतमा को पाने की जो आस है उसकी प्यास को वह उसे दिल खोलकर लिखता है । अपनी भावनाओं को व्यक्त करते समय कवि के मन में कोई सांसारिक भय नहीं होता । वह अपने प्रेम को सारे बंधन तोड़कर प्रकट करता है –
जब तुम्हें लिखता हूँ तो दिल खोलकर लिखता हूँ न जाने कितने सारे बंधन तोड़कर लिखता हूँ
कवि अपने सारे गम भुलाकर या कह सकते हैं छिपाकर प्रेयसी को अपनी खुशी लिखता है क्योंकि वह उसे हमेशा खुश देखना चाहता है -
आँख की नमी को तेरी कमी लिखता हूँ ।
‘वो संतरा’ काव्य निश्छल प्रेम की एक गहन अभिव्यक्ति है । इस काव्य में कवि ने त्याग की भावना को सर्वोपरि बताया है । अपने हिस्से के संतरे को कागज में लपेटकर सबकी निगाहों से छिपाकर कवि की प्रेयसी चुपचाप उसे थमा देती है । यह पहली बार नहीं है इसी तरह बहुत बार उसने अपने हिस्से का बचाकर कवि को दिया है । जितने समर्पण से प्रेयसी सब कुछ देती रही उतना ही समर्पित होकर प्रेम में पगा हुआ वह सबकुछ लेता रहा –
और मैं भी चुपचाप लेता रहा तुम्हारे हिस्से से बचा हुआ वह सबकुछ जो प्रेम से / प्रेम में पगा रहता ।
जब भी कवि की मुलाकात उसकी प्रेयसी से होती है वह उसे जीवन की जटिलताओं और प्रपंचों से दूर अत्यंत सहज और संवेदनशील नजर आती है और जाते – जाते कुछ यादें और नए किस्से जोड़कर अपने प्रेम को और दृढ़ बना जाती है –
हर बार अपने हिस्से से बचाकर कुछ देकर । कुछ स्मृतियाँ छोड़कर कुछ नए किस्से जोड़कर ।
प्रेयसी जब भी कवि से मिलती है , वह उसके भीतर एक विश्वास , सौभाग्य और उसके जीवन को एक उष्मीय उर्जा तथा संकल्प से भर देती है । कवि कहता है यह सारी अनुभूतियाँ उस संतरे से भी मिल जाती है जिसे उसकी प्रेयसी चुपचाप सबकी नजरों से बचाकर दे देती है ।
एक और प्रेम से सराबोर कविता ‘जब थाम लेता हूँ’ में कवि अपनी प्रेमिका की समीपता में सब कुछ भलाकर उसे अपना हृदय सौंप देता है । अपनी प्रेयसी के नर्म हाथों को जब वह अपने हाथों में ले लेता है तब छल , कपट आदि बुराइयों से भरी इस दुनिया को छोड़कर वह उसमें एकात्म हो जाता है -
तो छोड़ देता हूँ वहाँ का सब कुछ जिसे दुनियाँ कहते हैं ।
‘बहुत कठिन होता है’ काव्य में कवि कहना चाहता है कि चलाचली की बेला में प्रेयसी को ‘गुड बॉय’ कहना अर्थात अलविदा कहना बड़ा ही कठिन होता है । कवि ऐसे अवसरों को निभाने में अक्सर असफल हो जाता है । इसलिए वह याद करता करता है कि किस तरह उसकी प्रेयसी सर्दियों की खिली हुई धूप की तरह आई थी और अपनी सम्पूर्ण गरिमा तथा ताप के साथ उस गुलाबी ठंड में कवि के हृदय पर छा गई थी । अपनी प्रेयसी के चेहरे की चमक और साँसों की खुश्बू का वर्णन करते हुए कवि कहता है -
तुम्हारे चेहरे की चमक उतर आयी थी मेरी आँखों में तुम्हारी कच्ची सौंफ और जाफरान सी खूश्बू बस गई थी मेरी साँसों में ।
प्रेयमी के चेहरे को पढ़कर कवि का आत्मविश्वास और बढ़ने लगता है । जब कभी साथ चलते - चलते वह अपनी गर्म गोरी हथेली में कवि का हाथ थाम लेती है तो दूर पहाड़ी के मंदिर में जल रही दीये की लौ कवि को और अधिक प्रांजल और प्रखर लगने लगती है । अर्थात ईश्वर पर कवि का विश्वास और बढ़ जाता है ।
इन सबके बीच जाती हुई अपनी प्रेयसी को ‘गुड बाय’ कहना कवि को बड़ा ही कठिन जान पड़ता है । वह चाहता है कि अपनी प्रेयसी से वह कह दे कि अचानक से तुम फिर मेरे पास आ जाना जैसे इन पहाड़ों पर कोई मौसम अचानक आ जाता है ।
कवि इस काव्य के माध्यम से कहना चाहता है कि ‘ गुड बाय ’ कहना ऐसा लगता है जैसे कोई अपने साथी से हमेशा के लिए विदा ले रहा हो । इसलिए जाते समय वह गुड बाय नहीं कह पाता । वह चाहता है कि जाता हुआ व्यक्ति पहाड़ों के मौसम की तरह अचानक आ जाए क्योंकि प्रिय व्यक्ति के अचानक आ जाने से उस क्षण की खुशी कई गुना अधिक बढ़ जाती है ।
अतः कहा जा सकता है ‘ अक्टूबर इस साल ’ काव्य संग्रह में कवि ने बड़े ही सरल और सहज शब्दों में अपने भावों को अभिव्यक्त किया है । कवि ने कविता के वाक्य विन्यास को आरोपित सजावट से मुक्त कर सहज वाक्य विन्यास से बद्ध किया है । अपने भावों को व्यक्त करने के लिए कवि ने रचनात्मक शैली का प्रयोग किया है । प्रेम की सूक्ष्म अभिव्यक्ति के लिए कवि ने नवीन उपमानों का प्रयोग किया है जिससे काव्य की रोचकता में विविथ आयाम जुड़ गए हैं ।
                                  श्रीमती रीना सिंह 
                                  सहायक प्राध्या पिका 
                                   हिंदी विभाग 
                                  आर के तलरेजा महाविद्यालय
                                   उल्हासनगर, मुंबई 
                                   महाराष्ट्र ।
 
