51. जब कोई पुकारता है
प्यार में
पूरी तरह डूबकर
जब कोई पुकारता है
किसी का नाम
तो वह प्रलोभन
कितना रसीला होता है !!
अपने जूड़े में
जब कोई बांधता है
मोगरे की खुशबू
चाँद के साथ
तो उसकी उम्मीदों के खातिर
परदेश में वह
कितना मचलता है
जिसे काम से
छुट्टी ही नहीं मिलती !!
उसकी आंखों के सवाल
उसकी बनावटी मुस्कान के पीछे
कितने अकुलाते हैं
इसे समझ पाना
कठिन है क्योंकि
इसके कई कारण हैं।
विचारों के बीहड़ में
विस्मृत हो चुके
कई ज़रूरी मुद्दों पर
बहस होती रहती है लेकिन
जीवन के स्तर पर
इनसे कोई प्रभावित होते
दिखाई नहीं पड़ता
ऐसे में
प्रेम जैसे प्रांजल विषय
किस तरह परखें जाएं
यह देखना अभी बाकी है
इसका असल पैमाना
सुना है
अतीत की यात्राओं में है पर
ऐसी यात्राओं के लिए
समय नहीं किसी के पास क्योंकि
आजकल
सब बहुत जल्दी में रहते हैं
इसलिए प्रेम में
खतरा तो है पर
खतरा कहां नहीं है?
52. सारी रंगतों के बीच
मेरे जैसे लोग
सारी रंगतों के बीच भी
बहुत सी खामियों के शिकार हैं
इच्छा का अभाव नहीं पर
जरूरतों की हत्या के लिए
मजबूर।
हमारे रहस्यों को
भेदने के लिए
लगभग अनुमान से ही
काम चलाना होगा
इसकी एक वजह
यह भी है कि
जो हमें अजीज़ थे
उनसे संपर्क छूट गया है और
जो बचे हैं वो
दोयम दर्जे के अधिक हैं।
बहस करने के लिए
उतना समय नहीं है कि
तार्किक ढंग से
जीवन को प्रभावित करती
कोई मान्यता
स्थापित कर सकूं ।
कट्टरता का कोई आख्यान
यहां संभव नहीं
वैसे अत्याचार की निंदा
जैसी परंपरा भी
इस चुनौतीपूर्ण समय में
पुरानी पड़ सकती है।
लेकिन
हुआ यह भी है कि
साथ जीने के लिए
भरोसा बढ़ा है
और
सफ़र जारी है ।
53. जो तुमने कहा था
उन दिनों
तुमसे कुछ कहने के लिए
अल्फाज़ ही नहीं थे
फिर
कुछ न कहने पर
कितनी पंचायत
रस्मों रिवाजों की दुहाई
मानो
किसी तेज़ शोर के बीच
धूप की तपिश में
मैं कोहरे में नहाया हुआ था।
अतीत की स्मृतियों को
टूटे हुए आईने में
चुपचाप देखना
अजीब सा रूखापन
भर देता है
फिर किसी की मेहरबानी के लिए भी
बहुत देर हो चुकी थी।
कोई यह नहीं जान पाया कि
चीज़ों को इकट्ठा करने में
जब इतनी पीड़ा हो रही थी
तो मैं
उसी पीड़ा में
किसी मीठी चमक को
कैसे पा रहा था?
आखिर ये
कौन सी बीमारी थी ?
अगर मैं कुछ बताता भी तो
किसी को
कहां यकीन होता ?
मैं जहां था
वहां वक्त ही वक्त था
सिर्फ़
अपने हिसाब से
जीने की मनाही थी
किसी के लिए एकदम से
गैर जरूरी होने के दुःख से
आँखें अक्सर
नम हो जाती
इनमें बचा हुआ पानी
कातर भाव में
कतार में रहते ।
मटमैला सा
यह जीवन
मौन विलाप की मुद्रा में
अदहन की तरह
चुर रहा था
पुख्ता छानबीन के बाद
लगता है कि
तुम्हारी यादों में ही
कहीं खो जाऊंगा
फिर
तुमसे ही आंख चुराते हुए
वही याद भी करूं
जो तुमने कहा था।
54. किसी गहरी इच्छा की तरह
बौद्धिक सतहीकरण के बीच
बढ़ता अहंकार
दायित्वबोध का अभाव
मूल्यों की गिरावट
और इन सब के बीच
आत्मविस्मृति जैसा कुछ
दरका रहा है
तरह तरह से खंडित करते हुए
घर के आंगन को
यह बता भी रहा है कि
आनेवाला संकट
बहुत चिंताजनक है।
संबंधों का
वह विशाल मैदान
अब तो जैसे
कोई सकरी बंद गली हो
जहां बहुत कुछ अधूरा
और खोया हुआ है
कहीं से लौटते हुए
इसतरह के क्षय को देखना
अवसादों में
गोते लगाने जैसा ही लगता है।
मेरा खयाल है कि
किसी गहरी इच्छा की तरह
कोई रास्ता खोजना होगा
नैतिकताओं के ज्वालमुखी से परे
थोड़ी तमीज के साथ
ताकि
बक झक पर आमादा
क्रूर विभाजन और आत्मकेंद्रीयता के
अपने ही तिलिस्म को तोड़ते हुए
हस्तक्षेप किया जा सके ।
हो सकता है
हम जितना लड़ें
उतना ही हारें लेकिन
हम टूटेंगे नहीं
राह निकालिए
धूल की परतों को हटाकर
फुर्सत मिलने पर नहीं
उलझनों के बीच ही
किसी लापरवाही की तरह
सबकुछ भुला देने से
यह बेहतर होगा कि
वापसी के प्रसंगों एवम संभावनाओं को
टटोला जाए ।
किस दिन से शुरू करें?
चलने से पहले ही
ऐसे सवाल से भी पहले
यह भी याद रखना होगा कि
रहना ही कब तक है ?
एक दिन जाना भी है
इसलिए
समय रहते
कोई राह निकालिए।
55. जब तबियत खराब होती है
बाहर की तमाम
सख्तियों के बावजूद
ऐसा तो नहीं था कि तुम
अंदर से
मुलायम नहीं थी
इसलिए
मेरा तुम्हारे लिए
फिक्रमंद होना लाज़मी था
शायद इसी कारण
कभी तुमसे
कुछ पूछने की
जरूरत नहीं पड़ी ।
जानता हूं कि
जब तबियत ख़राब होती है
तब
उस दुःख का भागीदार
और कोई नहीं होता
फिर भी
आँखें तरसती हैं
आँखों का सूनापन
अतीत में खोए हुए
सपनों की गलियों में
बेसब क्यों घूमते हैं ?
यह
कोई और नहीं जानता ।
दरवाजा खटखटाने से पहले
बस इतना याद है कि
सोचा था
तुमसे मिलता जाऊं
उसी बहाने
ढेर सारी गप्पें
कुछ टिप्पणियां
जो तुम्हें हँसा सकें
फिर भले ही वो
अनैतिक आग्रहों से जुड़ी हों
लेकिन
तुम जानती हो
मैं तुम्हारे दरवाज़े पर
दस्तक नहीं दे सकता
वहाँ नैतिकता की दीमक लगी है
इसलिए
इस बार भी
दस्तक सीधे
तुम्हारे दिल पर दी है
इस उम्मीद से कि
तुम्हें अच्छा लगा होगा क्योंकि
बाहर की तमाम
सख्तियों के बावजूद
ऐसा तो नहीं था कि तुम
अंदर से
मुलायम नहीं थी
इसलिए......।