Showing posts with label MOHABATT.VALENTAIN DAY. Show all posts
Showing posts with label MOHABATT.VALENTAIN DAY. Show all posts

Sunday, 13 February 2011

या हम ही ठिकाने लग जाएँ

हाल ही  में भाई नदीम सिद्दीकी जी से मुंबई में एक कवि सम्मेलन में मुलाकात हुई. उनका एक शेर वेलेंटाइन  डे क़ी पूर्व संध्या  पर बड़ा कारगर  लगा. 


 तेरा इन्तजार करेंगे, चाहे ज़माने लग जाएँ 
 या तो तू आ जाए,या हम ही ठिकाने लग जाएँ . 

Friday, 12 February 2010

उससे क्यों ये हाल छुपायें ?

इस दुनिया की हम क्यों माने?
गुनाह इश्क को क्यों जाने ?  

 दिल की बातो को आखिर ,
 क्यों कर सब से हम छुपायें ?

अपनी मर्जी से अपना  जीवन ,
 बोलो क्यों ना जी पायें ?

लगी लगी है दिलमे जो ,
 आखिर उसको क्यों न बुझाएँ ?

 जिसको प्यार किया है मैंने ,
उससे क्यों ये हाल छुपायें ?
  

Sunday, 7 February 2010

आखिर यह प्रेम क्या है ?

जब नहीं हुआ था तब भी,
और जब हो गया तब भी
मैं नहीं समझ पाया की,
आखिर यह प्रेम क्या है ?

एक चाहत भर थी जो ,
आगे जूनून बन गयी.
 एक आदत जो कभी भी,
छूट नहीं सकती .

 एक ऐसा एहसास जो,
सारे सुख-दुःख से परे है.
 एक बीमारी जो कभी ,
 अच्छी होना ही ना चाहे .

 एक पैगाम जो ,
सीधे दिल को मिला ,
किसी और के दिल से ,
 कब,कँहा,कैसे कुछ याद नहीं .

एक ऐसा रिश्ता जो,
है तो अजनबी ही पर,
जाने हुए सारे रिश्तों से,
बहुत जादा अजीज .