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Friday, 12 February 2010

त्योहारों का ये देश पुराना /

अलसाया मौसम ,पुरजोर वसंत ,
अरमानो की जोरा-जोरी है ,
बासन्ती मन है बहका तन है ,
अहसासों ने मांग सजोई है ;
तेरी आखों में उगता सपना ,
सांसों संग सिने का उठना गिरना ,
बता रही अभिलाषा तेरी ,
तेरे चेहरे की रंगत बड़ना ,
त्योहारों का ये देश पुराना ,
डे मनाना पश्चिम में लोंगों ने अब है जाना ,
होली मना रहे हम सदियों से,
valentine लोंगों ने अब है जाना ,
अपनो संग रंगों में रंगित होना ,
अबीर गुलाल और पानी से तन भिगोना ,
उज्जवलित काम है ,उन्मुक्त मांग है ,
फिर भी सीमाओं से हंसती शाम है ,
अपनो के कोलाहल में ,रंग लगाते गालों को छूना ,
आखों आखों में प्यार फेकना ,
नीला पीला लाल वो चेहरा साथ ही उसपे हंसी थिठोला,
मौका तकना रंगों से उसका तन भिगोना ,
खुल के हसना प्रीतम का अहसास समझना ,
पल भर का शरमाना फिर मस्ती में रमना ,
होली का अदभुत नजराना ,
त्योहारों का ये देश पुराना ,
डे को पश्चिम ने अब सिखा मनाना /

डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित

 डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित  दिनांक 16 जनवरी 2025 को ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज ...