उस पागलपन के आगे
सारी समझदारी
कितनी खोखली
अर्थहीन
और निष्प्राण लगती है
वह पागलपन
जो तुम्हारी
मुस्कान से शुरू हो
खिलखिलाहट तक पहुँचती
फ़िर
तुम्हारी आँखों में
इंद्रधनुष से रंग भरकर
तुम्हारी शरारतों को
शोख़ व चंचल बनाती ।
वह पागलपन
जो मुझे रंग लेता
तुम्हारे ही रंग में
और ले जाता वहाँ
जहाँ ज़िन्दगी
रिश्तों की मीठी संवेदनाओं में
पगी और पली है ।
तुम्हारे बाद
इस समझदार दुनियाँ के
बोझ को झेलते हुए
लगातार
उसी पागलपन की
तलाश में हूँ ।
---------- मनीष कुमार मिश्रा ।
सारी समझदारी
कितनी खोखली
अर्थहीन
और निष्प्राण लगती है
वह पागलपन
जो तुम्हारी
मुस्कान से शुरू हो
खिलखिलाहट तक पहुँचती
फ़िर
तुम्हारी आँखों में
इंद्रधनुष से रंग भरकर
तुम्हारी शरारतों को
शोख़ व चंचल बनाती ।
वह पागलपन
जो मुझे रंग लेता
तुम्हारे ही रंग में
और ले जाता वहाँ
जहाँ ज़िन्दगी
रिश्तों की मीठी संवेदनाओं में
पगी और पली है ।
तुम्हारे बाद
इस समझदार दुनियाँ के
बोझ को झेलते हुए
लगातार
उसी पागलपन की
तलाश में हूँ ।
---------- मनीष कुमार मिश्रा ।