सच्चाई की राह को अच्छाई से तराशना
हो सके तो झूठ की अच्छाई तलाशना
भविष्य की राह में भूत न भूलना कभी
दूर दृष्टि ठीक है पर आज भी संभालना
रिश्तों की खीचतान में अपनो को सहेजना
मुश्किलों के खौफ में मोहब्बत ना छोड़ना
कोई कहे कुछ भी प्यार एक खुदायी है
जिंदगी की नाप तोल में दिल को ना तोड़ना
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Wednesday, 14 July 2010
Wednesday, 7 April 2010
तेरी अदावत का असर मेरे बिखराव से पूंछो ;
तेरी मेहरबानियों का असर मेरी नमित निगाह से पूंछो ,
तेरी अदावत का असर मेरे बिखराव से पूंछो ;
.
कभी इक फूल रखा था हाथों पे मेरे ;
उसकी खुसबू का असर मेरे अजार से पूंछो /
.
राह चलते कभी हाथों में हाथ दिया था तुमने ;
उसके अहसासों का असर अपने दिलदार से पूंछो ;
.
भरी महफ़िल में तेरी नज़रों ने प्यार कहा था मुझसे ;
उन नजरो का कहर, प्यार का असर मेरे दिले बेक़रार से पूंछो /
.
क्या मेरा उससे कोई रिश्ता है ?
पूंछ रहा है कौन हो तुम क्या तेरा मुझसे नाता है ;
क्या कहूँ मै ,क्या मेरा उससे कोई रिश्ता है ?
.
कभी भाव जुड़े थे ,मन मंदिर के द्वार जुड़े थे ,
साथ हँसे थे कितने ही किस्सों पे , साथ चलें थे कुछ रास्तों पे ;
हाथों का वो स्पर्श अनोखा ,दिल का वो हर्ष अनोखा ;
छुप छुप के के तुम देखा करते थे ,अनजाने बन छुआ करते थे ;
बातों में में एक उष्मा होती , आखों में इक आकर्षण ;
पास रहो ये चाह थी होती ,बदन में होता था आमंत्रण ;
मन नहीं भरता था बातों से ,तन पिघला करता आभासों से ;
वो पहले चुम्बन की अनुभूति अजब थी ,तेरी खुशियों की चीख गजब थी ;
वो सिने से लग जाना शरमाके ,बाँहों में भर लेना इठलाके ;
तेरे जोबन की प्यास गजब थी ;मेरे इश्क की आस गजब थी ;
तेरा सीना महका उफानो से, मेरे हाथ बहकाता अरमानो को ;
सिने में मेरे खिल के सो जाना , वो हंस हंस के के वो मुसकाना ;
चैन न मिलता बिन देखे इक दूजे को , एक पल न जाता बिन तेरी सोचों के ;
.
आज पूंछ रहा है रिश्ता क्या है , क्या जानू मै नाता क्या है ?
भावों से पूंछुंगा , दिल के तारों से पूंछुंगा ,
तन के अभिषारों से पूंछुंगा ,वक़्त के मारों से पूंछुंगा ;
पूंछुंगा मै तेरी बाँहों से ; तेरी आहों से पूंछुंगा ;
पूंछुंगा मै आखों से ,सपनों की रातों से पूंछुंगा ;
सुबह की तन्हाई से पूंछुंगा ,हवा की ऊँचाई से पूंछुंगा ;
पून्छुगा उस कमरे की दीवारों से, मौसम की बहारों से ;
पूंछुंगा मै नयनो के आंसूं से , तेरे सिने की नर्म उदासी से ;
.
पूंछ रहा है कौन हो तुम क्या तेरा मुझसे नाता है ;
क्या कहूँ मै ,क्या मेरा उससे कोई रिश्ता है ?
.
क्या कहूँ मै ,क्या मेरा उससे कोई रिश्ता है ?
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कभी भाव जुड़े थे ,मन मंदिर के द्वार जुड़े थे ,
साथ हँसे थे कितने ही किस्सों पे , साथ चलें थे कुछ रास्तों पे ;
हाथों का वो स्पर्श अनोखा ,दिल का वो हर्ष अनोखा ;
छुप छुप के के तुम देखा करते थे ,अनजाने बन छुआ करते थे ;
बातों में में एक उष्मा होती , आखों में इक आकर्षण ;
पास रहो ये चाह थी होती ,बदन में होता था आमंत्रण ;
मन नहीं भरता था बातों से ,तन पिघला करता आभासों से ;
वो पहले चुम्बन की अनुभूति अजब थी ,तेरी खुशियों की चीख गजब थी ;
वो सिने से लग जाना शरमाके ,बाँहों में भर लेना इठलाके ;
तेरे जोबन की प्यास गजब थी ;मेरे इश्क की आस गजब थी ;
तेरा सीना महका उफानो से, मेरे हाथ बहकाता अरमानो को ;
सिने में मेरे खिल के सो जाना , वो हंस हंस के के वो मुसकाना ;
चैन न मिलता बिन देखे इक दूजे को , एक पल न जाता बिन तेरी सोचों के ;
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आज पूंछ रहा है रिश्ता क्या है , क्या जानू मै नाता क्या है ?
भावों से पूंछुंगा , दिल के तारों से पूंछुंगा ,
तन के अभिषारों से पूंछुंगा ,वक़्त के मारों से पूंछुंगा ;
पूंछुंगा मै तेरी बाँहों से ; तेरी आहों से पूंछुंगा ;
पूंछुंगा मै आखों से ,सपनों की रातों से पूंछुंगा ;
सुबह की तन्हाई से पूंछुंगा ,हवा की ऊँचाई से पूंछुंगा ;
पून्छुगा उस कमरे की दीवारों से, मौसम की बहारों से ;
पूंछुंगा मै नयनो के आंसूं से , तेरे सिने की नर्म उदासी से ;
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पूंछ रहा है कौन हो तुम क्या तेरा मुझसे नाता है ;
क्या कहूँ मै ,क्या मेरा उससे कोई रिश्ता है ?
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Friday, 2 April 2010
हम दोनों का रिश्ता है बड़ा करीब का;/
हम दोनों का रिश्ता है बड़ा करीब का;
जैसे सेठ से नाता हो गरीब का ;
हम दोनों का रिश्ता है बड़ा करीब का;
,
नित्य नए की चाह है उसकी ,
मुझको केवल आह है उसकी ;
नयी डगर पे वो चलता है ,
मेरा दिल उसकी गलियों में रमता है ;
भूत से उसे लगाव नहीं है ;
भविष्य की मुझे दरकार नहीं है ;
हम दोनों का रिश्ता है बड़ा करीब का;
जैसे भाग्य से नाता गरीब का /
,
जफा की तू प्यारी रही है ,
वफ़ा से मेरी यारी रही है ;
तू कहता है तेरी बेवफाई खेल है नसीब का ;
मै कहता हूँ तुझसे मेरा रिश्ता है करीब का /
जैसे सेठ से नाता हो गरीब का ;
हम दोनों का रिश्ता है बड़ा करीब का;
,
नित्य नए की चाह है उसकी ,
मुझको केवल आह है उसकी ;
नयी डगर पे वो चलता है ,
मेरा दिल उसकी गलियों में रमता है ;
भूत से उसे लगाव नहीं है ;
भविष्य की मुझे दरकार नहीं है ;
हम दोनों का रिश्ता है बड़ा करीब का;
जैसे भाग्य से नाता गरीब का /
,
जफा की तू प्यारी रही है ,
वफ़ा से मेरी यारी रही है ;
तू कहता है तेरी बेवफाई खेल है नसीब का ;
मै कहता हूँ तुझसे मेरा रिश्ता है करीब का /
Thursday, 25 March 2010
ये रिश्तों के पैमाने हैं /
नयी प्रवृत्ति नया चलन है ,
बड़ती छाती घटता मन है ;
पैसे की बड़ती महिमा है ,
डर की बड़ती गरिमा है ;
`हम` को तो सब कब का भूले ,
`मै` की सीमा और डुबो ले ,
मात पिता और दादा दादी ,
भाई बहन चाचा और चाची,
एक परिवार के सब थे धाती ,
पति पत्नी और बच्चा ,
अब इतना ही लोंगों को लगता अच्छा ;
बाकि सब बेगाने है
स्वार्थ जरूरत तो सब अपने ,
नहीं तो रिश्तें बेमाने हैं ;
कौन कहाँ कब काम आएगा ,
ये रिश्तों के पैमाने हैं /
बड़ती छाती घटता मन है ;
पैसे की बड़ती महिमा है ,
डर की बड़ती गरिमा है ;
`हम` को तो सब कब का भूले ,
`मै` की सीमा और डुबो ले ,
मात पिता और दादा दादी ,
भाई बहन चाचा और चाची,
एक परिवार के सब थे धाती ,
पति पत्नी और बच्चा ,
अब इतना ही लोंगों को लगता अच्छा ;
बाकि सब बेगाने है
स्वार्थ जरूरत तो सब अपने ,
नहीं तो रिश्तें बेमाने हैं ;
कौन कहाँ कब काम आएगा ,
ये रिश्तों के पैमाने हैं /
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