कोई शिकवा ना कोई
गिला है
क्या कहूँ तुमसे क्या-क्या मिला है
याद तुझको बहुत यूं तो करता हूँ लेकिन,
तुझसे कभी भी , कुछ ना कहा है
मुझको अभी भी तु चाहता है
इसी बात से ख़ुद को बहला लिया है
तेरे सवालों में उलझा हूँ ऐसे
जैसे कि कोई, ब्रम्ह दर्शन बड़ा है
मेरा होकर भी तु मेरा नहीं है
क़िस्मत का कैसा अजब फैसला है
तुझसे मिलके मेरी आँखें नम हैं मगर
तुझसे मिलने का, फ़िर इरादा मेरा है