तू प्रेम नयन मे जैसे अंजन ,
तू चाहत का प्रेमी खंजन ।
लक्ष्य अलक्षित इस जीवन का ,
तू ही मेरे बना प्रिये ।
अभिलाषा
आज तुझे फिर जीने का जी चाहा है ;
आज फिर यादों ने दिल ललचाया है ;
बारिश की फुहारों में तन भीगा है ;
तेरी यादों में मन भीगा है ;
भाव मचले हैं कितनी तमन्नाओं के साथ ;
याद आ रहे हैं गुजरे वाकयात /
क्या खूब घटा छाई थी ;
भीगी जुल्फों ने मासुकी फैलाई थी ;
बारिश की बौछारों ने , बहती बहारों ने ,
हमारे तन की आतुरता बडाई थी ;
मन पे मदहोशी छाई थी ;
मखमली बदन के बड़ते अहसास ;
मेरे शरारती हाथों के बड़ते प्रयास ;
लरजते होठों का तपते होठों से गहराता विस्वास ;
बेकाबू जजबातों का ,दो बदनों के बिच मचाया वो उत्पात ;
बारिश का मौसम और वो तूफानी रात ;
आज तुझे फिर जीने का जी चाहा है ;
आज फिर यादों ने दिल मचलाया है /