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Tuesday, 13 October 2009
आज तुम्हारे जन्म दिन पे -------------------
आज तुम्हारे जन्म दिन पे ,
आज तुम्हे याद करते हुए,
महसूश कर रह रहा हो ,
तुम्हारे साथ के हर पल को ।
तुम्हारी शैतानियाँ ,
तुम्हारी बदमाशियां ,
और कलाई पे बंधने वाली तुम्हारी राखी को भी ।
आज तुमसे दूर रह कर भी,
मैं तुम्हारे साथ हूँ ।
दिल की अनंत गहराइयों से,
तुम्हे आशीष देते हुए,
तुम्हारी खुशियों की दुआ मांगते हुए ,
और तुम्हारे प्यार को याद करते हुए ।
आज तुम्हारे जन्म दिन पे ,
तुम्हे तुम्हारे भाई का
ढेर सारा प्यार ।
(तान्या,ईशा और गुडिया के लिए )
Friday, 7 August 2009
लूट लिया उस दिल को ही -------------------
Sunday, 5 April 2009
माँ जलती रही -------------------------------------------
मैं बोला -'' माँ , दिये की रौशनी जरा जादा करना ,
मैं पढ़ नही पा रहा हूँ । ''
बाप बोला -"अरे ओ , रौशनी कम कर ,
मैं सो नही पा रहा हूँ । "
वह बेचारी रात भर रौशनी कम-जादा करती रही ,
हम दोनों के बीच जीवन भर ,इसी तरह जलती रही ।
(यह कविता मूल रूप में मराठी भाषा में है । मराठी के लोक कवि श्री प्रशांत मोरे जी ने यह कविता सुनाई थी । उसी कविता का यह हिन्दी अनुवाद आप लोगो के लिये प्रस्तुत कर रहा हूँ । )
मैं पढ़ नही पा रहा हूँ । ''
बाप बोला -"अरे ओ , रौशनी कम कर ,
मैं सो नही पा रहा हूँ । "
वह बेचारी रात भर रौशनी कम-जादा करती रही ,
हम दोनों के बीच जीवन भर ,इसी तरह जलती रही ।
(यह कविता मूल रूप में मराठी भाषा में है । मराठी के लोक कवि श्री प्रशांत मोरे जी ने यह कविता सुनाई थी । उसी कविता का यह हिन्दी अनुवाद आप लोगो के लिये प्रस्तुत कर रहा हूँ । )
Wednesday, 28 January 2009
अभिलाषा
मेरे मन की एक अभिलाषा
पलती इसमे है एक आशा
उस आशा मे प्यार भरा
प्यार भरा संसार बसा
नही जरूरत किसी की इसको
इसमे अजब विस्वास भरा
उतना ही यह है गहरा
जितना नभ है तारों भरा
तुम जो हो अभिलाषा -----
और किसी की करूँ क्या आशा \
तुम ---तुम वो जो --------
कहना मुस्किल है ------
कोई क्या कह सके गा तुम्हे ---सिवा की
तुम हो एक आशा -------------------
पलती इसमे है एक आशा
उस आशा मे प्यार भरा
प्यार भरा संसार बसा
नही जरूरत किसी की इसको
इसमे अजब विस्वास भरा
उतना ही यह है गहरा
जितना नभ है तारों भरा
तुम जो हो अभिलाषा -----
और किसी की करूँ क्या आशा \
तुम ---तुम वो जो --------
कहना मुस्किल है ------
कोई क्या कह सके गा तुम्हे ---सिवा की
तुम हो एक आशा -------------------
Tuesday, 23 December 2008
अभिलाषा
अभिलाषा मुक्तक शैली मे लिखी गई मेरी कविता है। इसमे कुल १५० बंद हैं। कुछ बंद आप कई लिये यंहा लिख रहा हूँ।
(१)
मेरा अर्पण और समर्पण
सुबकुछ तेरे नाम प्रिये
श्वास -श्वास तेरी अभिलाषा
तू जीवन की प्राण प्रिये ।
(२)
तनया तू है मानवता की
प्रेम भाव की तेरी काया
तेरे प्रेम का जोग लिया तो
प्रेमी बन वन फिरूं प्रिये।
(३)
प्रेम नयन का अंजन है तू
प्रेम भाव का खंजन है तू
तेरी आँखों का सम्मोहन
मेरे चारों धाम प्रिये।
(४)
तुझमे नूर खुदाई का है
मजहब तू शहनाई का है
तू इश्क इबादत की आदत
अब तो मेरी बनी प्रिये।
ये बंद आप को पसंद आंयें तो अवस्य सूचित करें। फ़िर और भी बंद आप लोगो की सेवा मे प्रस्तुत करूँगा ।
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