मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ,
जिन्दा है मानों बिना प्राण ,
मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ;
बड़ा जीवट है ,खूं में उसके ,
स्वाभिमान है मन में उसके ;
मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ;
सांसों का भावों से रिश्ता ,
तिरस्कार से धन का नाता ;
वो मुफलिसी और उसका रास्ता ;
किस्से तो दुनिया बुनती है ,
उसको सिर्फ उलाहना ही मिलती है ;
रक्तिम आखें हाथों में छाले ,
ढलती काया पैरों को ढाले ;
संघर्ष से वो कब भागा है ;
स्वार्थ नहीं उसने साधा है ;
साधारण लोग किसे दिखते हैं ;
सब पैसे और ताकत को गुनते हैं ;
मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ,
जिन्दा है मानों बिना प्राण /