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Thursday, 12 February 2009

वैलेंटाइन डे और डॉ.विद्यानिवास मिश्र ----------------------

बात १४ फ़रवरी २००४ की है । मै अपने शोध कार्य से लखनऊ गया था । वहा के महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विस्वविद्यालय -शोध केन्द्र मे मेरा वय्बा था ,विषय स्वीकार करने हेतु। मैं
वहा पे डॉ वीद्याबिंदु सिंह के यहाँ रुका था । विद्या दीदी मुझपे अपार स्नेह रखती हैं । मै अपना शोध कार्य भी उन्ही के साहित्य पे करना चाहता था । पंडित जी (डॉ.विद्यानिवास मिश्र ) भी मरे शोध कार्य से खुश थे। १४ फ़रवरी को मैने अपना विषय शोध समिति के सामने प्रस्तुत किया। विषय स्वीकार भी हो गया । मैं सोच रहा था की जल्दी से यह खबर विद्यादिदी को बता दूँ ।
मैं शाम को जब दीदी के घर आया तो ,सब लोग खामोश थे .दीदी अपने रूम मे रो रही थी । मेरी समझ मे कुछ नही आ रहा था । फ़िर किसी ने बताया की पंडित जी का रोड एक्सीडेंट हो गया ,और वे अब नही रहे ।
यह सुन कर मैं हतप्रभ रह गया .------------------------------आज २००९ ,१४ फ़रवरी को मैं अपना शोध कार्य पूरा कर चुका हूँ । मुंबई विश्विद्यालय से अमरकांत के कथा साहित्य पे । लेकिन जब भी यह १४ फ़रवरी आती है तो पंडित जी का चेहरा आँखों के सामने आ जाता है । सायद इस लिये भी की वो ख़ुद एक संत थे । दीदी ने बताया था की सफ़र में-------JAB KABHI PANDIT JI KO KOI PURANA पेड दिखाई देता वो उसके पास जाते उस पेड से लिपट कर उसे उसकी सेवा के लिये धन्यवाद देते । Aउर उसके प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करते ।
पंडित जी का यह प्रेम का संदेश हम सभी को समझना होगा ।

डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित

 डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित  दिनांक 16 जनवरी 2025 को ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज ...