डरा हुआ ये वक़्त है ,
आज समाज विभक्त है /
आडम्बर का चलन बड़ा है ,
गले लगाने का आचरण बड़ा है /
शंकाओं का धर्म बड़ा है ,
बातों में मिठास लिए ,
अविश्वास का करम बड़ा है /
मिलते हैं ऐसे जैसे अपना हो ,
भूले तुरंत जैसे सपना हो ,
खा लेंगे इक थाली में ,
जाती हमेशा याद आती है ,
नाम निकालेंगे देश का ,
पर झगडा होगा हमेशा प्रदेश का ,
सबसे छोटा देश यहाँ हैं ,
अपना स्वार्थ और द्वेष बड़ा है /
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Saturday, 26 December 2009
Sunday, 15 November 2009
अज्ञात की तलाश है ,अज्ञान का ही वास है ;
अज्ञात की तलाश है ,
अज्ञान का ही वास है ;
खुदा कहूँ ईश्वर कहूँ आज कल God का रिवाज है ;
धर्म पे है वाद अब भी ,भाषा का विवाद अब भी ;
भूख तो बिखरी पड़ी है ,आस तो उघडी खडी है;
अज्ञात की तलाश है ,अज्ञान का ही वास है ;
रोजी पे लड़ते हैं हम छेत्र के नाम पे ,
घर में दुबक जातें हैं कुछ उद्दंडों के काम पे ;
गाँधी को लड़ाते हैं हम, कभी भगत कभी आजाद से ;
कभी आम्बेडकर को बनाते हैं खुदा जाती के नाम से /
अज्ञात की तलाश है ,अज्ञान का ही वास है ;
कर्ण है महान क्यूंकि सच का साथ ना दे सका ,
अर्जुन ना चडा जुबान पे क्यूंकि वो बुरा ना हो सका ;
अहंकारी ,असंयमित हम खुद हैं कमियां दूजे की ढूंढ़ रहे ,
जो ना हुआ देश का वो कब किसी का हो सका /
अज्ञात की तलाश है ,अज्ञान का ही वास है ;
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