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Sunday, 28 July 2013

काश तुम मिलती तो बताता




यूं ही तुम्हे सोचते हुए
सोचता  हूँ क़ि चंद लकीरों से तेरा चेहरा बना दूं
फिर उस चेहरे में ,
खूबसूरती  के सारे रंग भर दूं .

तुझे इसतरह बनाते और सवारते हुए,
शायद  खुद को बिखरने से रोक पाऊंगा
पर जब भी कोशिश की,
हर बार नाकाम रहा .

कोई भी रंग,
कोई भी तस्वीर,
तेरे मुकाबले में टिक ही नहीं पाते .

तुझसा ,हू--हू तुझ सा ,
तो बस तू है या  फिर
तेरा अक्स है जो मेरी आँखों में बसा है .

वो अक्स जिसमे
प्यार के रंग हैं
रिश्तों की रंगोली है
कुछ जागते -बुझते सपने हैं
दबी हुई सी कुछ बेचैनी है
और इन सब के साथ ,
थोड़ी हवस भी है .

इन आँखों में ही
तू है
तेरा ख़्वाब है
तेरी उम्मीद है
तेरा जिस्म है
और हैं वो ख्वाहीशें ,
जो  तेरे बाद
तेरी अमानत के तौर पे
मेरे पास ही रह गयी हैं .

मैं जानता हूँ की मेरी ख्वाहिशें ,
अब किसी और की जिन्दगी है.
इस कारण अब इन ख्वाहिशों के दायरे से
मेरा बाहर रहना ही बेहतर है .

लेकिन ,कभी-कभी
मैं यूं भी सोच लेता हूँ क़ि-
काश
-कोई मुलाक़ात
-कोई बात
-कोई जज्बात
-कोई एक रात
-या क़ि कोई दिन ही
बीत जाए तेरे पहलू में फिर
वैसे ही जैसे कभी बीते थे
तेरी जुल्फों क़ी छाँव के नीचे
तेरे सुर्ख लबों के साथ
तेरे जिस्म के ताजमहल के साथ .

इंसान तो हूँ पर क्या करूं
दरिंदगी का भी थोडा सा ख़्वाब रखता हूँ
कुछ हसीन गुनाह ऐसे हैं,
जिनका अपने सर पे इल्जाम रखता हूँ .

और यह सब इस लिए क्योंकि ,
हर आती-जाती सांस के बीच
मैं आज भी
तेरी उम्मीद रखता हूँ .

इन सब के बावजूद ,
मैं यह जानता हूँ क़ि-
मोहब्बत निभाने क़ी सारी रस्मे ,सारी कसमे
बगावत के सारे हथियार छीन लेती हैं .
और छोड़ देती हैं हम जैसों को
अश्वत्थामा की  तरह
जिन्दगी भर
मरते हुवे जीने के लिए
प्यार क़ी कीमत ,
चुकाने के लिए
ताश के बावन पत्तों में,
जोकर क़ी तरह मुस्कुराने के लिए

काश, तुम मिलती तो बताता,
क़ि मैं किस तरह खो चुका हूँ खुद को ,
तुम्हारे ही अंदर  ।


Monday, 27 June 2011

काश तुम मिलती तो बताता



यूं ही तुम्हे सोचते हुवे
 सोचता  हूँ क़ि चंद लकीरों से तेरा चेहरा बना दूं 
 फिर उस चेहरे में ,
खूबसूरती  के सारे रंग भर दूं . 
तुझे इसतरह बनाते और सवारते हुवे,
शायद  खुद को बिखरने से रोक पाऊंगा . 
 पर जब भी कोशिश की,
 हर बार नाकाम रहा . 
 कोई भी रंग,
 कोई भी तस्वीर,
 तेरे मुकाबले में टिक ही नहीं पाते .

तुझसा ,हू-ब-हू तुझ सा ,
 तो बस तू है या  फिर 
 तेरा अक्स है जो मेरी आँखों में बसा है . 
 वो अक्स जिसमे 
 प्यार के रंग हैं 
 रिश्तों की रंगोली है 
 कुछ जागते -बुझते सपने हैं 
दबी हुई सी कुछ बेचैनी है  
और इन सब के साथ ,
 थोड़ी हवस भी है . 
इन आँखों में ही 
 तू है 
तेरा ख़्वाब है 
 तेरी उम्मीद है 
 तेरा जिस्म है 
और हैं वो ख्वाहीशें ,
जो  तेरे बाद 
 तेरी अमानत के तौर पे 
मेरे पास ही रह गयी हैं .

मैं जानता हूँ की मेरी ख्वाहिशें ,
 अब किसी और की जिन्दगी है. 
 इस कारण अब इन ख्वाहिशों के दायरे से 
 मेरा बाहर रहना ही बेहतर है . 

लेकिन ,कभी-कभी 
 मैं यूं भी सोच लेता हूँ क़ि-
काश 
 -कोई मुलाक़ात 
 -कोई बात 
 -कोई जज्बात  
-कोई एक रात  
-या क़ि कोई दिन ही 
बीत जाए तेरे पहलू में फिर 
 वैसे ही जैसे कभी बीते थे 
 तेरी जुल्फों क़ी छाँव के नीचे 
 तेरे सुर्ख लबों के साथ 
तेरे जिस्म के ताजमहल के साथ .
 इंसान तो हूँ पर क्या करूं 
 दरिंदगी का भी थोडा सा ख़्वाब रखता हूँ  
कुछ हसीन गुनाह ऐसे हैं,
 जिनका अपने सर पे इल्जाम रखता हूँ .
 और यह सब इस लिए क्योंकि ,
 हर आती-जाती सांस के बीच   
मैं आज भी 
तेरी उम्मीद रखता हूँ . 
 इन सब के बावजूद ,
 मैं यह जानता हूँ क़ि
 मोहब्बत निभाने क़ी सारी रस्मे ,सारी कसमे 
 बगावत के सारे हथियार छीन लेती हैं .
 और छोड़ देती हैं हम जैसों को 
 अस्वथ्थामा क़ी तरह 
 जिन्दगी भर 
 मरते हुवे जीने के लिए .
 प्यार क़ी कीमत ,
 चुकाने के लिए .
ताश के बावन पत्तों में,
जोकर क़ी तरह मुस्कुराने के लिए .
 काश तुम मिलती तो बताता ,
 क़ि मैं किस तरह खो चुका हूँ खुद को ,
 तुम्हारे ही अंदर . 
   
                                                             

International conference on Raj Kapoor at Tashkent

  लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र ( भारतीय दूतावास, ताशकंद, उज्बेकिस्तान ) एवं ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़ ( ताशकं...