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Tuesday, 25 August 2015

सिर्फ़ होने से बात नहीं होती


यूँ तो बात हो जाती है
आज भी
कभी- कभी 
जब भी
लगा कि
दूरियों के बीच में
संवादहीनता
नहीं बचा सकेगी
उनको
जिनका कि बचे रहना
बेहद ज़रूरी है
भले ही वो हों
कहने को सिर्फ़
सपने ।
तो इन सपनों के लिए ही
हो जाती है
आज भी
तुम्हारी और मेरी
कभी-कभी
हमारी भी
बात तो हो जाती है ।
लेकिन सिर्फ़
होने से बात नहीं होती
उसके लिए
होना पड़ता है
किसी का अपना
किसी का सपना
किसी की आँख का पानी
उसके ओठों की मुस्कान
उसका विश्वास और
उसका सिर्फ़ उसका ।
हाँ तो हमारी बात
यूँ तो आज भी होती है
लेकिन
वो बात ना हो तब भी
तुम्हारी हर बात के लिए
आज भी मेरे पास
सुरक्षित है
एक सुंदर सा सपना ।
तुम चाहोगी तो
तो लौट सकेंगी
वही बातें
इन्द्रधनुष के रंगों वाली
चाँद - सितारों वाली
रुठने - मनाने वाली
मेरे शहर बनारस वाली
तुम्हारे शहर की झील वाली
और तुम्हें भाने वाली
हर वो बात जो तुम्हें
खुश करती थी
आज भी है मेरे पास लेकिन
इन बातों के लिए
शायद तुम्हारे पास
अब वक्त ही नहीं ।
मगर फ़िर भी
आज भी
कभी-कभी
हो जाती है
मेरी-तुम्हारी बात
क्योंकि
मेरे पास जिंदा है
एक सपना
मेरा -तुम्हारा
या फ़िर
शायद हमारा ।
                       मनीष कुमार
                        BHU

Tuesday, 9 March 2010

खुबसूरत इरादों से शिकायत क्यूँ है ,

खुबसूरत इरादों से शिकायत क्यूँ है ,
हसीन प्यार के लम्हों से अदावत क्यूँ है ;
गले ना लगे तुम तो कोई बात नहीं ,
मेरी मोहब्बत से तुझको बगावत क्यूँ है ?


तेरी जफा की राहों से कब मैंने सवाल पूंछे ,
तेरे पीछे चलते सायों पे कब मैंने जवाब पूंछे ।
तू निभा न सकी कसमे कोई बात नहीं ,
पूरे हुए वादों से तू आहत क्यूँ है ,

मेरे सपनों से तुझे अदावत क्यूँ है ,
मेरी वफ़ा की राहों से शिकायत क्यूँ है ;
नहीं रक्खा मुझे अपनी यादों में कोई बात नहीं ;
मुझे हँसता देख तेरे चेहरे पे राहत क्यूँ है /

Monday, 21 September 2009

अधीरता का मंजर मुझमे है ;

अधीरता का मंजर मुझमे है ;

अव्यक्त की सहजता तुझमे है ;

नदी का वेग हूँ , मन का आवेश हूँ ;

प्यार का झोखा हूँ , सावन अनोखा हूँ ;

तू बहती हवा है ,बादल और निशा है ;

आखों का धोखा है ;स्वार्थ का सखा है ;

मै भावना से ओतप्रोत हूँ ,पानी का स्रोत हूँ ;

तू बिखरी हुयी माया है ;छल और छाया है ,

तुने सहजता का गुन पाया है /

मै स्थिरता हूँ ,जड़ता हूँ ;

रमा हूँ एक भावः में ;

इसीलिए अधीरता का मंजर पाया है /

Saturday, 8 August 2009

अभिलाषा-2



तनया तू है मानवता की ,
प्रेम भाव की तेरी काया।
तेरे प्रेम का जोग लिया तो,
जोगी बन वन फिरूं प्रिये ।

दर्द दिया है इतना तो --------------------------



दर्द दिया है इतना तो ,
अब तुम थोड़ा प्यार भी दो ।
आँचल की थोडी हवा सही ,
या बांहों का हार प्रिये ।
अभिलाषा -

Friday, 3 April 2009

तेरे आने जाने के बीच मे--------------------

तेरे आने -जाने के बीच मे,क़यामत बीत गयी
मुसीबतें कई थी मगर,मोहब्बत जीत गयी ।

इश्क में मर-मिटना ,सब पुरानी बात है
हीर -रांझे वाली ,चलन से अब प्रीत गयी ।

मिलकर एक साथ ,सभी एक घर मे रहें
बीते दिनों के साथ ,चली यह रीत गयी ।

Wednesday, 24 December 2008

अभिलाषा के नये बंद

(५)

मेरी अन्तिम साँस की बेला

मत देना तुलसी दल माला

अपने ओठो का एक चुम्बन

ओठो पे देना मेरे प्रिये ।

(६)

शव यात्रा मेरी जब निकले

तब राम नाम की जय मत करना

प्रेम को कहना अन्तिम सच

प्रेमी कहना मुझे प्रिये ।

(७)

चिता सजी हो जब मेरी तो

मरघट पर तुम भी आना

आख़िर मेरे प्रिय स्वजनों मे

तुमसे बढ़कर कौन प्रिये