बोध कथा -२: अपना ही कोई गद्दार हुआ है
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एक गाँव में बड़ा ही प्राचीन बरगद का पेड़ था. उसकी शाखाएं चारों तरफ फैली हुई थी.आने -जाने वाले राहगीरों को इस बड़े छायादार पेड़ के नीचे बड़ा आराम मिलता. गाँव के लोग भी बरगद के पेड़ क़ी पूजा करते.उस बरगद क़ी जड़ें बड़ी गहराई तक जमीन में गयीं थी. पेड़ का पूरा वैभव किसी का भी ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर लेता था.
उस बरगद क़ी सभी शाखाएं,तने ,पत्तियाँ और जड़ें अपना काम बराबर करते थे.उन सब में बड़ी एकता थी.एक दिन अचानक पेड़ के एकदम ऊपरी हिस्से क़ी फुनगी ने देखा क़ि एक लकडहारा पेड़ क़ि दिशा में बढ़ा चला आ रहा है. उस फुनगी ने तने को आवाज देते हुए कहा,''दादा,एक लकडहारा हमारी तरफ तेजी से चला आ रहा है.'' तने ने आने वाले खतरे का आभास कर पूछा ,''क्या उसके हाँथ में कोई काटने वाली चीज़ है ?'' तने की बात सुन कर फुनगी ने लकडहारे की तरफ ध्यान से देखा . उसे लकडहारे के हाथ की कुल्हाड़ी नजर आ गई.उसने तुरंत जवाब दिया ,''हाँ दादा,उसके हाँथ में कुल्हाड़ी है.लोहे की है .''
तने ने लम्बी सांस छोड़ते हुए कहा ,'' हे भगवान्. हमे अपनों ने ही धोखा दिया,वरना किसी की क्या मजाल थी की हमपर आँख उठा कर भी देख पाता. अब हमे कोई नहीं बचा पाए गा .'' तने की बात फुनगी को समझ में नहीं आयी.उसने तने से प्रश्न करते हुए कहा,''दादा, में आप की बात समझा नहीं. हमे तो लोहे की कुल्हाड़ी कटेगी ,फिर कोई अपना इसका जवाबदार कैसे हुआ ?'' तने ने फुनगी की बात पर जवाब देते हुए कहा,''ध्यान से देखो ,उस लोहे की कुल्हाड़ी में बेंत लकड़ी का ही लगा होगा.अगर वह लकड़ी का बेंत उस लोहे का साथ ना दे,तो वह लोहा हमारा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता.'' इतना कह कर तना चुप हो गया.थोड़ी देर बाद उसके मुह से सिर्फ ये शब्द निकले -
''जब भी हम पर वार हुआ है,
अपना ही कोई गद्दार हुआ है ''
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Thursday, 11 March 2010
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