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Wednesday, 7 April 2010

बोध कथा १८ : संत

बोध कथा १८ : संत
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                                 एक बार कबीर नगर मैं एक बहुत ही पहुंचे हुवे महात्मा आये. वे रोज शाम को २ घंटे का प्रवचन करते. काफी दूर-दूर से लोग महात्मा जी का प्रवचन सुनने के लिए आते थे. लोग अपनी जिज्ञासा के अनुसार सवाल करते और महात्मा जी उसका जवाब दे कर प्रश्नकर्ता को संतुस्ट करने क़ि कोशिस करते थे. कभी-कभी तो महात्मा जी के जवाब से लोग चकित रह जाते ,पर जब महात्मा जी अपनी कही हुई बात का विश्लेष्ण करते तब लोग तालियों क़ि गूँज के साथ उनकी जयजयकार भी करने लगते.
                              ऐसी ही एक शाम जब महात्मा जी का प्रवचन चल रहा था तो एक भक्त ने प्रश्न किया ,''महाराज, संत किसे कहते हैं ?'' इसके पहले क़ि महात्मा जी कुछ जवाब देते ,गाँव के पंडित ने खड़े हो कर कहा,''अरे ,ये कोन सा प्रश्न है ? जब मिला तो खा लिया,और ना मिला तो भगवान् भजन करने वाले को ही संत कहते है. क्यों महाराज ?सही कहा ना मैंने ?'' पुजारी क़ि बात सुनकर महात्मा जी मुस्कुराए और बोले,''नहीं ,ऐसे आदमी को संत नहीं कुत्ता कहते हैं . संत तो वो होता है जिसे मिले तो सब के साथ बांटकर खा ले  और ना मिले तो भी ईश्वर में अपनी आस्था कम ना होने दे .''
                              महात्मा जी क़ी बात सुनकर सभी लोग उनकी जयजयकार करने लगे .इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है क़ी हमे सब के साथ मिल बाँट कर ही भौतिक वस्तुओं का उपभोग करना चाहिए.किसे ने लिखा भी है क़ि-------------------------------------------------------------------------------------
                      '' मिलजुलकर एक साथ रहें सब, जीवन इसी का नाम
                 जाना एक दिन सब को है,मिटना तन का काम ''

Monday, 5 April 2010

बोध कथा -१६ :कल आना

बोध कथा -१६ :कल आना 
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                                 किसी राज्य में हर्षवर्धन  नामक एक राजा राज्य करता था. वह बड़ा ही दानी और सरल ह्रदय का था.उसकी दानवीरता क़ी कहानी दूर-दूर तक फैली हुई थी. राज्य क़ी प्रजा अपने राजा का बड़ा आदर करती थी. उन्हें इस बात का गर्व था क़ी उनके पास इतना महान राजा है.
                               एक दिन जब दरबार खत्म होनेवाला था लगभा तभी एक ब्राह्मण राजा के दरबार में आया. उस ब्राह्मण ने अपनी कन्या के विवाह के लिए राजा से १०० स्वर्ण मुद्राएँ मांगी.राजा दरबार खत्म कर जल्दी जाना चाहते थे,इसलिए उन्होंने उस ब्राह्मण से कहा क़ि,''आप कल आइये ,हम आप को १०० स्वर्ण मुद्राएँ दिलवा देंगे .'' राजा क़ि बात सुन कर वह ब्राह्मण ख़ुशी-ख़ुशी जाने को हुआ तभी राजा के विद्वान महामंत्री ने उठकर जोर-जोर से घोषणा शुरू कर दी क़ि ,''महाराज क़ी जय हो !महाराज क़ी जय हो !! आपने काल को जीत लिया ,आप महाकाल हो गए !आप क़ी जय हो !आप क़ी जय हो !''
                              राजा कुछ समझ नहीं पा रहे थे. उन्होंने कब काल को जीता ? वे महाकाल कैसे हो गए ? आखिर उन्होंने महामंत्री से इस घोषणा का कारण पूछा तो महामंत्री ने विनम्रता पूर्वक कहा ,''महाराज ,अभी-अभी आप ने इस ब्राह्मण को कल आने के लिए कहा है. साथ ही साथ कल आप ने इन्हें १०० स्वर्ण मुद्राएँ देने का वचन भी दिया है.लेकिन महाराज कल किसने देखा है ? कल का क्या भरोसा है ? कोन जाने कल तक आप या मैं रहूँ या ना रहूँ ? लेकिन आप को कल का विश्वाश है,तो आप महाकाल हुवे क़ी नहीं ?''
                          राजा को अपनी गलती समझ में आ गयी. उन्होंने ब्राह्मण से क्षमा मांगते हुवे उन्हें तुरंत  १०० स्वर्ण मुद्राएँ दिलाई .सब राजा और महामंत्री क़ी जय-जयकार करने लगे.
                          इस कहानी से हमे सीख मिलती है क़ी हमे कभी भी आज का काम कल पे नहीं डालना चाहिए .किसी ने लिखा भी है क़ि------------------------------
                      '' काल करे सो आज कर,आज करे सो अब 
                 पल में प्रलय होयगी ,बहुरी करोगे कब ''  

Saturday, 20 March 2010

बोध कथा -७ : माँ

बोध कथा -७ : माँ
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                                          बहुत पुरानी बात है. एक जंगल के करीब एक छोटा सा गाँव था. उस गाँव में  व्योमकेश नामक एक  बड़ा ही प्रतिभा शाली मृदंग वादक रहता था. उसकी कीर्ति चारों तरफ फ़ैल रही थी. वह मृदंग वादक सुबह -सुबह जंगल क़ी  तरफ निकल जाता,और एक छोटी सी पहाड़ी पर बैठकर अपना रियाज शुरू कर देता  था. 
                                       वह मृदंग इतनी खूबसूरती के साथ बजाता क़ी जंगल के कई प्राणी उसके आस-पास आकर खड़े हो जाते और उसे मृदंग क़ी थाप देते हुए घंटो देखते रहते. इन्ही जंगली जानवरों में एक छोटा सा हिरन का बच्चा भी था.वह भी रोज सभी जानवरों के साथ आता.लेकिन जब वह मृदंग वादक मृदंग बजाना शुरू करता तो , वह हिरन का बच्चा  ना जाने क्यों रोना शुरू कर देता .और जब मृदंग बजाना बंद हो जाता तब वह चुप-चाप वंहा से जंगल क़ी तरफ चला जाता.
                                      जंगल के सभी जानवर उस नन्हे हिरन शावक के व्यवहार को समझ नहीं पा रहे थे.खुद मृदंग वादक भी इस बात को समझ नहीं पा रहा था.आखिर एक दिन उस मृदंग वादक ने  फैसला किया क़ि वह इस बात का पता लगा कर रहेगा क़ि आखिर वह हिरन शावक मृदंग बजता देख रोता क्यों है ? अगले दिन जब सभी जानवरों के साथ वह हिरन शावक आया तो मृदंग वादक ने धीरे से उसे पकड़ लिया.वह शावक घबरा गया.सभी जानवर उसे  छोड़ के जंगल क़ी तरफ भाग गए.
                                  उस मृदंग वादक ने उस शावक को गोंद  में उठा कर कहा,'' हे हिरन शावक ,क्या मैं इतना बुरा मृदंग बजाता हूँ क़ी तुम्हे रोना आता है ?'' इस पर उस शावक ने कहा,'' नहीं,ये बात नहीं है.''  इस पर उसने फिर प्रश्न किया,'' तो तुम्हारे रोने का कारण क्या है ?'' इस बात का जवाब देने से पहले ही उस शावक क़ी आँखों से फिर आंसूं बहने लगे.वह रोते हुवे ही बोला,'' आप मुझे गलत ना समझें, दरअसल बात ये है कि आप के मृदंग पे जो हिरन की खाल चढ़ी है,जिससे इतनी सुंदर ध्वनि निकलती है.वो खाल मेरी माँ क़ी है.जिस दिन मैं पैदा हुआ था उसी दिन एक शिकारी ने उसका शिकार कर लिया था.फिर वही खाल आपने खरीदी थी. आप जब इस खाल को बजाते हैं तो मुझे लगता है कि मेरी माँ-------'' इतना कहते ही उस नन्हे शावक का गला भर आया. मृदंग वादक की  आँखों में भी आंसूं थे. वह उस शावक को वँही छोड़ कर अपने घर की  तरफ चला गया.वह मृदंग वँही पड़ा था.नन्हा शावक उस मृदंग क़ी खाल को प्रेम से चाट रहा था. मानों कह रहा हो-
                              '' तेरे बिना बहुत अकेला हो गया हूँ माँ , 
                                तुझ सा ना जग में कोई प्यारा है माँ .''  

 (i do not have any copy right on the same photo) 

Thursday, 18 March 2010

बोध कथा-६: भौतिकता

बोध कथा-६: भौतिकता 
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                                         कविता अभी ४ साल क़ी ही है. लोगों को यह लगता है क़ि वह बड़ी खुशनसीब है. उसके पिताजी किसी बड़ी विदेशी कंपनी में मैनेजर हैं. माँ भी कॉलेज में अध्यापिका हैं. घर में पैसे क़ी कोई कमी नहीं है. फिर कविता अपने माँ-बाप क़ी इकलौती संतान है.वह जो चाहती है,वह वस्तु उसे तुरंत दिला दी जाती. उसकी देख -रेख  करने के लिए घर में आया भी थी. माँ-पिताजी दोनों घर से बाहर रहते.ऐसे में अकेले ही कविता बोर हो जाती. उसे घर से बाहर भी जाने क़ी इजाजत नहीं थी.सिर्फ रविवार को माँ-पिताजी दोनों ही घर पे रहते.लेकिन उनका घर पर रहना भी ना रहने क़ी ही तरह था.वे दोनों अपने ऑफिस और महाविद्यालय क़ी ही बातों में उलझे रहते.कविता क़ी तरफ ध्यान देने का उन्हें मौका ही नहीं मिलता.
                                     ऐसे ही एक रविवार को जब दोनों लोग घर पे थे,कविता पहले दौड़ कर माँ के पास गई और बोली,''माँ ,आज तो छुट्टी है ना ? फिर मेरे साथ खेलो ना ." कविता क़ी बात सुनकर माँ बोली,'' अरे बेटा,बहुत काम है.मुझे बच्चों के पेपर चेक करने हैं.एक काम करो, तुम पापा के साथ जा कर खेलो .'' इसतरह माँ ने कविता को टाल दिया और वापस अपना काम करने लगी.
              माँ के पास से कविता पिताजी के पास आ गई. उसके पिताजी भी अपने   
 लैपटॉप  पर कुछ  जरूरी काम  कर रहे थे. कविता ने उनसे भी वही बात कही. इस पर उसके पिताजी मुस्कुराते हुए बोले,'' अगर मैं आप के साथ खेलूंगा  तो पैसे कौन  देगा ? आप जाओ ,मुझे जरूरी काम है. परेशान मत करो.''कविता चुप-चाप उलटे पाँव अपने कमरे में चली आयी. थोड़ी देर रोती रही .फिर अचानक उसका ध्यान अपने पैसों के गुल्लक पर गया. वह उस गुल्लक को लेकर अपने पिताजी के पास गई और बोली,''पापा, मेरे पास जितने पैसे हैं आप सब ले लो.पर मेरे साथ खेलो ना ,प्लीज़ .''
              मासूम कविता क़ी बातें सुनकर उसके पिता अवाक रह गए .उन्होंने कविता को अपनी गोंद में उठा लिया.और बोले,''बेटा ,मुझे माफ़ कर दो.इस पैसे और भौतिकता क़ी दौड़ में  अपने पिता होने क़ी जिम्मेदारी को भूल गया था.आज तुम ने मेरी आँखें खोल दी .''
                                                        इस तरह कविता के पिता को अपनी गलती समझ में आयी.कविता जैसे बच्चों के लिए ही शायद किसी ने कहा है कि--------- 
                                         '' सब के साथ है,मगर अनाथ है.
                              आज का बचपन बहुत बेहाल है .''        

( i do not hvae any copy right on the said above photos.)