एक वादा जो निभाने की कोशिस की --------------------
अपनी दूसरी पुस्तक ''मन के सांचे की मिट्टी को पिछले साल आप लोंगो को सौपते हुए ,मैंने ये वादा किया था की जल्द ही अपनी गजलों की पुस्तक आप लोगों के सामने लाऊंगा .यह काम मेरे लिए मुश्किल था क्योंकि मुक्त कविताओं की तरह यंहा स्वतंत्रता नहीं थी .रदीफ़ और काफिये का ध्यान रखना था। मैंने अपनी तरफ से इस बात का पूरा ख्याल रखा किमैं ग़ज़ल क़ी कसौटी पे अपनी रचनाओं को सही तरह से रख सकूं.इसमें मैं कहाँ तक सफल हो सका ये तो अब आप लोग ही बता सकते है।
इस काम को करने में पूरे एक साल का वक्त लगा.इन गजलों को लिखने में बड़ा मजा भी आया.कभी-कभी तो ग़ज़ल के एक शेर के आगे दूसरा लिख भी नहीं सका.मशीनों क़ी तरह ग़ज़ल लिखना मेरे बस क़ी बात भी नहीं थी । आज हम जिस समाज में रह रहे हैं,वहां संवेदनाएं कितनी कमजोर पड़ रही हैं ये हम सब देख ही रहे हैं.इन सब के बीच दुःख और बेचैनी से निकलने के लिए कलम उठा लेता था। जो भी समझ सका उसे ग़ज़ल क़ी शक्ल में आप के सामने ला कर अभिव्यक्ति के खतरे उठा रहा हूँ।
किसी ने जिन्दगी क़ि परिभाषा देते हुए लिखा क़ि-''जिन्दगी विकल्पों के बीच से चुनाव का नाम है.''लेकिन आज हालत यह है क़ि -''जिन्दगी प्रायोजित और प्रचारित विकल्पों के बीच आर्थिक क्षमता का प्रदर्शन मात्र है.''हम ऐसी कठपुतली बन गए हैं क़ि जिसकी डोर बड़े-बड़े पूंजीपतियों के हाथ में है.मीडिया और इस मीडिया को चलाने वाला पैसा समाज के सरोंकारों से कोसों दूर जा चुका है. लाभ-हानि के गणित में मानवीयता क़ि कीमत कुछ नहीं है.संवेदनाएं मीडिया का हथियार हैं.मुनाफा कमाने का हथियार .इस मुनाफे के आगे कोई दूसरी बात मायने नहीं रखती. मूल्यों और कीमत क़ि लड़ाई में मानवीय मूल्यों का जो पतन हो रहा है,उसे जितनी जल्दी समझ लिया जाय उतना अच्छा है.
इन सारी स्थितियों के बीच मैंने ग़ज़ल लिखी. ग़ज़ल को लेकर एक बहस हमेशा चलती है कि हम हिंदी वालों को अधिक से अधिक हिंदी के शब्दों का इस्तमाल कर के ग़ज़ल लिखनी चाहिए.लेकिन मैंने कोई कोशिस इस सन्दर्भ में नहीं क़ी.बात जब उर्दू की होती है तो अक्सर लोंगो को यह भ्रम होने लगता है कि बात किसी ऐसी भाषा की हो रही है जो हिंदी से अलग है ,जबकि मेरा यह मानना है कि हिंदी और उर्दू की संस्कृति गंगा-जमुनी संस्कृति है ।जिसका संगम स्थान यही हमारा महान भारत देश है। अगर हम भाषा विज्ञानं की दृष्टि से देखे तो भी यह बात साबित हो जाती है. जिन दो भाषाओँ की क्रिया एक ही तरह से काम करती है ,उन्हें दो नहीं एक ही भाषा के दो रूप समझने चाहिए. हिंदी और उर्दू की क्रिया पद्धति भी एक जैसी ही हैं ,इसलिए इन्हें भी एक ही भाषा के दो रूप मानना चाहिए. हिन्दुस्तानी जितनी संस्कृत निष्ठ होती गयी वह उतनी ही हिंदी हो गयी और इसी हिन्दुस्तानी में जितना अरबी और फारसी के शब्द आते गए वह उतना ही उर्दू हो गई.अंग्रेजों ने इस देश में भाषा को लेकर जो जहर बोया ,वही सारी विवाद की जड़ है. इसलिए हमे हिंदी-उर्दू का कोई भेद किये बिना ,दोनों को एक ही समझना चाहिए,तथा इन भाषाओँ में जो भी अच्छा लिखा जा रहा है,उसकी खुल के तारीफ भी करनी चाहिए.
जंहा तक बात गजलों की है तो ,यह तो साफ़ है की इस देश की फिजा गजलों को बहुत पसंद आयी. हमारे यहाँ गजलों का एक लम्बा इतिहास है,जो की बहुत ही समृद्ध है. ग़ज़ल प्राचीन गीत -काव्य की एक ऐसी विधा है,जिसकी प्रकृति सामान्य रूप से प्रेम परक होती है. जो अपने सीमित स्वरूप तथा एक ही तुक की पुनरावृत्ति के कारण पूर्व के अन्य काव्य रूपों से भिन्न होती है.ग़ज़ल मूलरूप से एक आत्म निष्ठ या व्यक्तिपरक काव्य विधा है.ग़ज़ल का शायर वही ब्यान करता है जो उसके दिल पे बीती हो.इसीलिए तो कहा जाता है क़ि ''उधार के इश्क पे शायरी नहीं होती.''
''फिर किसी मोड़ पे '' ग़ज़ल संग्रह को आप के सामने सही समय पे प्रकाशक और अपने अनुज डॉ.मनीष कुमार मिश्र क़ी वजह से ला सका .आशा है आप लोंगो को यह संग्रह जरूर पसंद आएगा।
आपका
विजयनारायण पंडित
जोशीबाग,कल्याण -पश्चिम
Showing posts with label एक वादा जो निभाने की कोशिस की --------------------. Show all posts
Showing posts with label एक वादा जो निभाने की कोशिस की --------------------. Show all posts
Saturday, 20 February 2010
एक वादा जो निभाने की कोशिस की --------------------
Subscribe to:
Posts (Atom)
sample research synopsis
Here’s a basic sample research synopsis format you can adapt, typically used for academic purposes like thesis proposals or project submiss...
-
***औरत का नंगा जिस्म ********************* शायद ही कोई इस दुनिया में हो , जिसे औरत का जिस्म आकर्षित न करता हो . अगर सारे आवरण हटा क...
-
जी हाँ ! मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष , जिसके विषय में पद््मपुराण यह कहता है कि - जो मनुष्य सड़क के किनारे तथा...
-
Factbook on Global Sexual Exploitation India Trafficking As of February 1998, there were 200 Bangladeshi children and women a...
-
अमरकांत की कहानी -जिन्दगी और जोक : 'जिंदगी और जोक` रजुआ नाम एक भिखमंगे व्यक्ति की कहानी है। जिसे लेखक ने मुहल्ले में आते-ज...
-
अनेकता मे एकता : भारत के विशेष सन्दर्भ मे हमारा भारत देश धर्म और दर्शन के देश के रूप मे जाना जाता है । यहाँ अनेको धर...
-
अर्गला मासिक पत्रिका Aha Zindagi, Hindi Masik Patrika अहा जिंदगी , मासिक संपादकीय कार्यालय ( Editorial Add.): 210, झेलम हॉस्टल , जवा...
-
Statement showing the Orientation Programme, Refresher Courses and Short Term Courses allotted by the UGC for the year 2011-2012 1...
-
अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...