अभिलाषा ११०
११०
शब्द-शब्द सब मन्त्र बन गए ,
प्रेम में जो भी लिख डाला .
जाप इन्ही का करना यदि ,
अभिलाषा हो कोई प्रिये .
टूटे सारे छंद -व्याकरण ,
फूटा जब भावों का झरना .
इसमें चाहत का कलरव,
और मदिरा सा नशा प्रिये .
१११
अभिलाषा ने जीवन के,
कदमो पे गिर के पूछा -
पूरी कब हो पाऊँगी ,
बतला दो बस इतना प्रिये .
जीवन फिर हंसते-हंसते,
उससे केवल इतना बोला-
जो पूरी हो जाये वह,
रहे नहीं अभिलाषा प्रिये .
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Friday, 8 January 2010
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