रात अकले सागर तट पर ,लहरों मे हम खोय थे
एक-दूजे के कन्धों पर ,प्यार से कितने सोय थे ।
इधर-उधर के जाने कितने ,किस्से तुमने सुनाये थे
वही बात ना कर पाये,करने जो तुम आये थे ।
एक साँस मे कह डाले ,सपने जो भी संजोये थे
फ़िर आँखों मे मेरी देखकर,कितना तुम मुस्काये थे ।
नर्म रेत पर पास बैठकर ,कितना तुम इतराये थे
प्रथम प्यार के चुम्बन पे,बच्चों जैसे शरमाये थे ।
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Wednesday, 1 April 2009
गहर के अंदर मेरी भी --------------------
घर के अंदर मेरी भी ,इज्जत थी अच्छी-खासी
प्यार किया है जब से मैने,कहते हैं सब सत्यानासी ।
बडे नमाजी उसके अब्बा,पिताजी मरे चंदनधारी
लगता है गरमायेगा ,मुद्दा फ़िर से मथुरा-काशी ।
अच्छा है की लोकतंत्र है ,नही चलेगी तानाशाही
बस इनका यदि चलता तो ,मिलकर देते हमको फाँसी ।
प्यार किया है जब से मैने,कहते हैं सब सत्यानासी ।
बडे नमाजी उसके अब्बा,पिताजी मरे चंदनधारी
लगता है गरमायेगा ,मुद्दा फ़िर से मथुरा-काशी ।
अच्छा है की लोकतंत्र है ,नही चलेगी तानाशाही
बस इनका यदि चलता तो ,मिलकर देते हमको फाँसी ।
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