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Monday 9 December 2019

कवि मनीष : व्यक्तित्व और कृतित्व ।

डॉ मनीष कुमार मिश्रा का जन्म 09 फ़रवरी सन1981 में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के पूरा गंभीर शाह (सुलेमपुर ) नामक गांव में हुआ । आप के पिता श्री छोटेलाल मिश्रा जी कल्याण पश्चिम, महाराष्ट्र के महंत कमलदास हिंदी हाई स्कूल में प्राथमिक विभाग में शिक्षक की नौकरी करते थे । आप की माता श्रीमती अद्यावती देवी एक गृहणी थी । आप का बचपन मां के साथ ही बीता । गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में आप की शिक्षा प्रारंभ हुई लेकिन जल्द ही आप अपनी माता व बड़े भाई राजेश के साथ कल्याण महाराष्ट्र पिता के पास आ गए । यहीं से विधिवत कक्षा एक में आप का प्रवेश सन 1986 में महंत कमलदास हिंदी हाई स्कूल, कल्याण पश्चिम में हुआ  ।
इस् तरह विधिवत आप की शिक्षा प्रारंभ हुई । पिता जी इसी विद्यालय में शिक्षक थे अतः हमेशा अनुशासन में रहने की हिदायत मिलती रहती ।
 आप ने सन 1996 में यहीं से प्रथम श्रेणी में हाई स्कूल की परीक्षा पास की । आगे की पढ़ाई के लिए आप ने कल्याण पश्चिम में ही स्थिति बिर्ला महाविद्यालय में कला संकाय में प्रवेश लिया । आप प्रथम श्रेणी में हाई स्कूल पास हुए थे अतः विज्ञान और वाणिज्य संकाय में भी आसानी से प्रवेश ले सकते थे, लेकिन अपनी रुचि के अनुरूप आप ने कला संकाय में ही प्रवेश लिया । इसी महाविद्यालय से आप ने सन 1998 में उच्च माध्यमिक और सन 2001 में बी. ए. की परीक्षा पास की । आप ने बी. ए. में हिंदी साहित्य और प्रयोजनमूलक अंग्रेजी को मुख्य विषय के रूप में चुना था ।
इसी महाविद्यालय से सन 2003 में आप ने हिंदी साहित्य में एम.ए. की परीक्षा पास की । पूरे मुंबई विद्यापीठ में हिंदी में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने के कारण आप को मुंबई विद्यापीठ की तरफ़ से प्रतिष्ठित श्याम सुंदर गुप्ता स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया ।
एम.ए करने के बाद आप ने कल्याण के ही लक्ष्मण देवराम सोनावने महाविद्यालय में क्लाक आवर पर स्नातक की कक्षा में अध्यापन कार्य प्रारंभ कर दिया । यहां अध्यापन कार्य करते हुए आप ने सेवा सदन अध्यापक महाविद्यालय, उल्हासनगर से बी. एड. की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास की ।
फ़िर वर्ष 2006 में आप ने बिर्ला महाविद्यालय कल्याण से हिंदी विभाग के शोध केंद्र के पीएच.डी. छात्र के रूप में पुनः प्रवेश लिया । डॉ  रामजी तिवारी के शोध निर्देशन में आप ने " कथाकार अमरकांत : संवेदना और शिल्प ।" इस विषय पर अपना शोध कार्य प्रारंभ किया । मई 2009 में आप को विद्या 
वाचस्पति ( PhD)  की पदवी प्राप्त हुई ।
             आप ने वर्ष 2007 तक लक्ष्मण देव राम   सोनावने महाविद्यालय में अध्यापन कार्य किया ।  इसके बाद आप ने कल्याण के ही के.एम. अग्रवाल कनिष्ठ महाविद्यालय में हिंदी अध्यापन का कार्य प्रारंभ किया । यहां कार्य करते हुए ही 14 सितंबर 2010 को आप ने इसी संस्था के वरिष्ठ महाविद्यालय के हिंदी सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्य शुरू किया । हिंदी दिवस के दिन विधिवत वरिष्ठ महाविद्यालय के हिंदी विभाग में नौकरी आप ने शुरू की ।
           के. एम.अग्रवाल महाविद्यालय में अध्यापन कार्य प्रारंभ करने के साथ ही आप शोध कार्यों एवं राष्ट्रीय अंतर राष्ट्रीय परिसंवादों के आयोजन में सक्रिय हुए । इसी कड़ी में सन 2011 में आप ने हिंदी ब्लॉगिंग पर एक राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया । इसी तरह वेब मीडिया और वैकल्पिक पत्रकारिता जैसे विषयों पर आप ने अंतरराष्ट्रीय परिसंवादों का सफल आयोजन किया । आप ने खुद कई अंतरविषयी शोध कार्य को सफतापूर्वक पूर्ण किए । मुंबई विद्यापीठ से आप ने दो लघु शोध प्रबंध पूर्ण किए । जो कि भारत में किशोर लड़कियों की तस्करी और मराठी कवि प्रशांत मोरे से संबंधित था । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा स्वीकृत हिंदी ब्लागिंग पर एक लघु शोध प्रबंध आप ने पूर्ण किया । जनवरी 2014 से जनवरी 2016 तक आप विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की प्रतिष्ठित योजना UGC रिसर्च अवॉर्डी के रूप में काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में रहे और वेब मीडिया से संबंधित अपना शोध कार्य पूर्ण किया । आप भारतीय उच्च अध्ययन केंद्र शिमला में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के UGC IUC असोसिएट भी रहे और वहां भी महत्वपूर्ण विषयों पर अपनी प्रस्तुति देते रहे । ICSSR - IMPRESS  की पहली सूची में ही आप का मालेगांव फिल्मों से जुड़ा हुआ शोध प्रस्ताव स्वीकृत हुआ । मालेगांव की फिल्मों पर हिंदी में किया जानेवाला संभवतः यह पहला शोध कार्य था ।
 मनीष जी की वर्ष 2019 तक 14 से अधिक संपादित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी थीं । अमरकांत को पढ़ते हुए पुस्तक वर्ष 2014 में प्रकाशित हुई । यह पुस्तक मूल रूप से अमरकांत पर हुए आप के पीएचडी शोध प्रबंध का ही पुस्ताकाकार प्रकाशन था । आप का पहला काव्य संग्रह सन 2018 में अक्टूबर उस साल शीर्षक से प्रकाशित हुआ । दूसरा काव्य संग्रह इस बार तुम्हारे शहर में शीर्षक से सन 2019 में प्रकाशित हुआ । आप का तीसरा काव्य संग्रह अमलतास के गालों पर शीर्षक से प्रकाशित होने की प्रक्रिया में है । संभवतः यह संग्रह सन 2020 में बाजार में आ जाएगा । इस तरह इन तीनों संग्रह के माध्यम से मनीष जी की लगभग 200 कविताएं पाठकों के लिए उपलब्ध रहेंगी । मनीष जी की कुछ  कहानियां भी समय समय पर पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं । संभव है कि भविष्य में इन कहानियों का भी कोई संग्रह हमें पढ़ने को मिले ।
मनीष जी ने साक्षात्कार के दौरान अपनी आगामी योजनाओं की चर्चा करते हुए बताया कि वे रवीन्द्रनाथ ठाकुर और क्षेत्रीय सिनेमा पर दो पुस्तकों के संपादन कार्य में लगे हुए हैं । अपने बाबू जी ( पिताजी के चाचा जी ) के शोध प्रबंध "अमेठी और अमेठी राजवंश के कवि," को भी आप प्रकाशित करवाना चाहते हैं ।
 व्यक्तिगत शोध कार्यों में आप कव्वाली और गोपनीय समूह भाषा के समाजशास्त्र को लेकर कार्य करने की सोच रहे हैं । मराठी फिल्मों पर भी आप कार्य करने के इच्छुक हैं । मनीष जी जिस तरह के विषयों का चयन करते हैं, उनमें एक नयापन होता है । एक कवि, कहानीकार और शोध अध्येता के रूप में आप अपनी छवि निर्मित करने में सफल रहे हैं । आप के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आप गंभीर से गंभीर परिस्थिति में भी बड़े सहज भाव से उसका सामना करते हैं और उन विकट परिस्थितियों से निकल लेने का मार्ग खोज लेते हैं । आप अपनी मित्रता के लिए भी जाने जाते हैं । देश का शायद ही कोई ऐसा शहर हो जहां आप का कोई मित्र न हो । खुद आप की दुश्मनी किसी से नहीं । सब को अपना बनाकर रखना, सब को यथोचित आदर भाव देना, संकट में अपने मित्रों के साथ खड़ा रहना, स्वयं का नुक़सान कर के भी दूसरों के कार्य पूर्ण करना, किसी के प्रति कड़े या अपशब्दों का प्रयोग न करना  एवं सकारात्मक विचारों के साथ आगे बढ़ना आप के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता है ।
              अपने इन्हीं गुणों के कारण आप सभी को अपना बना लेते हैं । आप का स्पष्ट मानना है कि," अगर हम किसी से अच्छे संबंध नहीं रख सकते हैं तो संबंधों को बिगाड़ने से भी क्या लाभ ? उन्हें न्यूट्रल ही छोड़ देना चाहिए ताकि बदली हुई परिस्थितियों में फ़िर एक दूसरे को आवाज़ देने की गुंजाइश बनी रहे । वैसे भी रिश्ते नाते बहुत नाज़ुक होते हैं । जिस आमकेंद्रियता के युग में हम जी रहे हैं यहां व्यक्ति का अहम और दंभ चरम पर है ।"
             मनीष जी ने 05 सितंबर 2017 की सुबह अचानक अपनी मां को खो दिया । मनीष जी के अनुसार वह उनके अब तक के जीवन का सबसे कठिन समय था । मां से जुड़ी उनकी कविताओं को पढ़कर उनकी मां के प्रति उनकी भावनाओं को आसानी से समझा जा सकता है । लेकिन उन्होंने अपने आप को संभाला और अपनी साहित्य सेवा जारी रखी । मनीष जी के अनुसार हमें जीवन में निरंतरता बनाए रखनी चाहिए । नए संकल्पों और दृढ़ विश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए ।
                                    डॉ. शमा
                                   सहायक प्राध्यापिका
                                  एस एस डी कन्या महाविद्यालय
                                   बुलंदशहर
                                    उत्तर प्रदेश ।
           






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