Showing posts with label 4. निर्वासित जीवन की किसी स्याह रात में ।. Show all posts
Showing posts with label 4. निर्वासित जीवन की किसी स्याह रात में ।. Show all posts

Tuesday 25 December 2018

4. निर्वासित जीवन की किसी स्याह रात में ।


निर्वासित जीवन की
किसी स्याह रात में
मुसलसल गिरती बारिश के बीच 
भीगते हुए महसूस किया
कि अंदर की बंज़र ज़मीन
सूखी की सूखी रही ।
उस ज़मीन पर ही
एक पागलखाना है
जहाँ के दिन धूसर
रातें
आवारगी, संगदिली
और लापरवाही से गुलज़ार ।
वहाँ की राह
फ़क़ीरी की राह
जिन पर न जाने कौन सी
परछाईयों का जुलूस
जो थोड़े से गुनाहों के अरमान में
शब्दों से रंग छानते
भावों में उन्हें गूँथते
चले जा रहे हैं
अपनी ख़ुशी व ख़याल से ।
वहाँ
किसी अंधी गली के भीतर
कुछ लोग
अपनी भाषा
भूल गये हैं
और
तरह-तरह के
हादसों के ख़ौफ़ में
वे
एक हाँथ चाहते हैं
अपनी पीठ पर ।
लेकिन
यहीं वह भी है जो
पूछता है कि
क्या किसी की याद नहीं आती ?
और आती है तो
फीते से ज़िन्दगी को नापना क्यों ?
आख़िर
नमाज़ों, घंटों,घाटों औऱ
तमाम निज़ामों के बीच
कोई बेनियाज़ क्यों नहीं ?
---- डॉ मनीष कुमार मिश्रा