१४ सितम्बर हिन्दी दिवस
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हर साल १४ सितम्बर को ,
आता है हिन्दी दिवस ।
और शुरू हो जाती है ,हिन्दी पे बहस ।
हिन्दी का गौरव
हिन्दी का वैभव ,
इस पे विद्वानों में होती है चर्चा ,
हर जगह चल रही होती है परिचर्चा ।
पर क्या आप जानते है ?
की जब हिन्दी के सजते हैं समारंभ,
लगभग तभी होता है पितरपक्ष भी प्रारम्भ ।
जिस तरह पितरपक्ष में,
पिंडो का दान किया जाता है,
पुरखो को याद किया जाता है ,
ठीक उसी तरह हिन्दी दिवस पर,
हिन्दी को याद कर लिया जाता है ।
हिन्दी विद्वानों का सम्मान कर दिया जाता है ।
पितरपक्ष में बेचारे ब्राह्मण,
इतना पाते हैं भोज का निमंत्रण ,
की मुस्किल हो जाता है तैयकरना,
की कंहा है जाना,और कंहा है मना करना ।
हिन्दी के जानकार पंडित भी
कुछ इसी तरह परेसान होते हैं,
चार दिन की चादनी पे ,
अनायास मु़ग्ध होते हैं ।
दोस्तों,हिन्दी का आदर,
सिर्फ़ हिन्दी दिवस मनाने में नही,
दैनिक जीवन में उसे अपनाने से है ।
हिन्दी का आदर,
हिन्दी-हिन्दी चिल्लाने में नही ,
हिन्दी के प्रति समर्पण में है ।
-------------डॉ.मनीष कुमार मिश्रा
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हर साल १४ सितम्बर को ,
आता है हिन्दी दिवस ।
और शुरू हो जाती है ,हिन्दी पे बहस ।
हिन्दी का गौरव
हिन्दी का वैभव ,
इस पे विद्वानों में होती है चर्चा ,
हर जगह चल रही होती है परिचर्चा ।
पर क्या आप जानते है ?
की जब हिन्दी के सजते हैं समारंभ,
लगभग तभी होता है पितरपक्ष भी प्रारम्भ ।
जिस तरह पितरपक्ष में,
पिंडो का दान किया जाता है,
पुरखो को याद किया जाता है ,
ठीक उसी तरह हिन्दी दिवस पर,
हिन्दी को याद कर लिया जाता है ।
हिन्दी विद्वानों का सम्मान कर दिया जाता है ।
पितरपक्ष में बेचारे ब्राह्मण,
इतना पाते हैं भोज का निमंत्रण ,
की मुस्किल हो जाता है तैयकरना,
की कंहा है जाना,और कंहा है मना करना ।
हिन्दी के जानकार पंडित भी
कुछ इसी तरह परेसान होते हैं,
चार दिन की चादनी पे ,
अनायास मु़ग्ध होते हैं ।
दोस्तों,हिन्दी का आदर,
सिर्फ़ हिन्दी दिवस मनाने में नही,
दैनिक जीवन में उसे अपनाने से है ।
हिन्दी का आदर,
हिन्दी-हिन्दी चिल्लाने में नही ,
हिन्दी के प्रति समर्पण में है ।
-------------डॉ.मनीष कुमार मिश्रा