Thursday, 30 April 2009

हिन्दी पत्रिका -पंचशील शोध समीक्षा

मेरी हमेशा यह कोशिस होती है की अपने इस ब्लॉग के माध्यम से मैं समय -समय पर आप लोगो को हिन्दी की किसी नई पत्रिका से अवगत करा सकूं ।
ऐसी ही एक पत्रिका है पंचशील शोध समीक्षा । इस पत्रिका के माध्यम से आप देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों मे हिन्दी मे हो रहे शोध कार्यो की संछिप्त जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
इस पत्रिका का प्रकाशन पंचशील प्रकाशन ,जयपुर की तरफ़ से होता है । इसकी अपनी वेबसाईट इस प्रकार है -
www.panchsheelprakashan.com
e mail-info@panchsheelprakashan.com
phon no-0141-2315072,2314172

इसकी एक प्रति का मूल्य ७५ रुपये है । वार्षिक ३०० रुपए है .अधिक जानकारी के लिये निम्नलिखित पते पर संपर्क किया जा सकता है -----
पंचशील शोध समीक्षा
पंचशील प्रकाशन ,
फ़िल्म कालोनी,चौडा रास्ता
जयपुर -३०२००३

चंद शब्दों की कहानी नही होती

चंद शब्दों की कहानी नहीं होती ;
कुछ पलों की जवानी नहीं होती /
जिंदगी तो यूँ भी गुजर जायेगी लेकिन ;
बिना मोहब्बत के जिंदगानी जिंदगानी नहीं होती /
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आज फिर तमन्नावों ने पंख फैलाये हैं ,
आज फिर खवाबों ने तेरी झलक पाए हैं ;
महफ़िल सजाई है अपनी तन्हाई की ,
आज फिर यादों ने बेवफाई की है ;
आज गुरेज कैसे करते हया से तेरी दूरी का ,
ये रास्ते तो हमने ही तुम्हें दिखाएँ हैं /

Wednesday, 29 April 2009

वर्ण

Varna (वर्ण varṇa) is a Sanskrit term derived from the root vrn meaning "to choose from".One of the foremost Rishi in Rigveda is Vishwamitra, who was a King and Kshatriya by birth. Vyasa was of mixed birth between Parasara, a Brahmin and Sathyavathi (a Soodra, fisher woman). Maharishi Matanga was from the Matanga Bhil tribe but was raised as a Brahmana. Hence to attribute inherited class system to Hindu scriptures is without substance

फ़िर जा के इजहार हुआ-----------------------------------------

पहले तो तकरार हुआ
फ़िर जा के इजहार हुआ ।

चोरी-छिपे जो शुरू हुआ था,
अब तो वह अखबार हुआ ।

जिससे डरते थे हम दोनों,
वही तो आख़िर कार हुआ ।

मेरी मोहबत्त की बातो से,
रुसवा पूरा परिवार हुआ ।

अब तक जो मेरा था केवल,
उस दिल पे तेरा अधिकार हुआ ।

life

I was just pondering over my life and the people whom I love and care about,.One thing which is certain, almost, that more you care about someone the better are the chance of you being hurt.I think its true for most of us.It is fate of most of the people that he/she must feel the pain of dejection or unfulfilled desires and wishes from the person he cares most or loves most.It always happens the person who gave you lots of love and care gets pain and sorrow from us.. There are very few people in the world who don`t go through this. Everyone try to believe that he the lucky one.I want to believe this too. Hope God will be kind to me as he always has been.and to every person I love and care.

बरबादियों का आलम यूँ है, कोई आंसू बहता कोई खूं है /

बरबादियों का आलम यूँ है,कोई आंसू बहता कोई खूं है ;
मोहब्बत में बरबादियों का दस्तूर तो पुराना है ,
कहीं जफा करती है , कहीं वफ़ा करती है ;
बरबादियों का आलम यूँ है,कोई आंसू बहता कोई खूं है ;
ना गुरेज था मुझको तेरी जफावों से ,
दिल हो जाता था चाक तेरी निगाहों से ;
बावजूद तेरी बेवफ़ाइआ , तेरा हर नाज हम सह लेते ;
खंजर सिने में मेरे तेरा ,फिर भी हम हंस लेते ;
पीठ में खंजर ,वो भी गैरों के हाथों से ,
हैरान थे तेरी सोच पे , तेरे इरादों पे ;
शुक्रिया ,तेरे हंसते चेहरे ने मौत आसान कर दी ;
मेरी डूबती सांसे औ तेरा खिलखिलाना ,
तेरी महकती सांसों ने वो महफ़िल खुशनुमा कर दी ;
हुस्न तेरा ये जलवा भी, मैंने देखा है ;
तेरी उस खिलखिलाहट में भी , एक आंसू का कतरा देखा है ;
बरबादियों का आलम यूँ है,कोई आंसू बहता कोई खूं है /
Vinay

Tuesday, 28 April 2009

ख्यालों में भी ख्याल से डर लगता है /

खयालो में भी ख्याल से डर लगता है ,
अजीब वक़्त है ,इन्सान को इन्सान से डर लगता है ;
रास्ते में कौनसा धर्म टकरा जाये ,क्या पहन के निकले डर लगता है ;
सरकारी नौकरी में आरक्छन से कौनसा मातहत, बॉस बन जाये डर लगता है ;
क्या बतायुं किस प्रदेश से आया हूँ कौन कह दे मेरे प्रेदश से निकल जा डर लगता है ;
सांप्रदायिक करार दिया जायुं ; कैसे जायुं मंदिर डर लगता है ;
खयालो में भी ख्याल से डर लगता है ,
अजीब वक़्त है ,इन्सान को इन्सान से डर लगता है /

Monday, 27 April 2009

चीत्कारता समाचार

प्रताडित तःथ्यों और पीड़ित शब्दों से बने ,आज के समाचारों की चिल्लाहट से हम सब सराबोर हैं ;

इन समाचार कथन के टी। वी के अत्याचार से से भावाभोर हैं/

Breaking News शब्द सही नही लगता ,इन समाचारों की व्याख्या का ;

चीत्कारता समाचार ज्यादा उचित शब्द है इन टी। वी। के समाचारों के व्यभिचार का/

वैसे उचित प्रतीत होती है ,इन समचारों को हमारे सर पर मारने की विधी ,

आखिर हमारे आचार विचार और कर्मों की सीमा ही है इनकी परिधी /

ये समाचार आज के आईने हैं ,थोडा बड़ा और नाटकीय भले प्रस्तुति है इनकी ,

स्वार्थ ने उसकाया, फायदा दलालों और सरकारी बाबुओं ने उठाया है ;

हम सबसे और सरकारी बाबुओं से फायदा उठाये वो नेता कहलाया है /

हमारा स्वार्थ छोटा है ,परिपेछ्य छोटा है ,बाबु का दायरा बड़ा स्वार्थ बड़ा चडा है ,

नेता का इरादा दोनों से बना और विशाल है ;

हम , सरकारी बाबु और नेता अभी एक आइना कम था ;अभी भी भ्रस्टाचार थोडा नम था /

ये समाचार पत्रों और टी। वी। के समाचार के पत्रकार इन सबसे एक कदम आगे हैं ;

किसी का हाथ थामे किसी को पुचकारे किसी को धमकाए हैं ;

कभी नेता का हाथ कभी जनता का दामन कभी बाबुओं के साथ ,ये सभी के दुलारें हैं /

ये तीनो की भ्रष्टतम स्थिति यही संभाले हैं ;तभी जनतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाते हैं \

इनके कर्मों से खुद को दुत्कारती इनकी आत्मा चित्कारती रहती है ;

तभी कहता हूँ ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं चित्कारती आत्मा का समाचार ;

ब्रेकिंग खुच बचा नहीं ,चिल्लाती अंतरात्मा का समाचार ;चीत्कारता समाचार ही होना चाहिए /

विनय

Sunday, 26 April 2009

उनसे ही मासूम उनके बहाने है ----------------------------------

उनसे ही मासूम उनके बहाने हैं ।
क्या करे उन्ही के दीवाने हैं ।

जो मिले वही रास्ता बताये ,
हम सचमुच कितने अनजाने हैं ।

एक साथ एक घर मे रहनेवाले भी,
एक-दूसरे से कितने बेगाने हैं ।

जंहा मिला रास्ता वंही चल पडे,
पहले से तय नही हमारे ठिकाने हैं ।

ये बाजारवाद का नया युग है,
यंहा रिश्ते सिर्फ़ भुनाने हैं ।

बार -बार उन्ही से मिला रहा है ---------------------------

वह बहुत याद आ रहा है ।
अपने पास बुला रहा है ।

हर पल खयालो मे आकर ,
गम जुदाई का बढ़ा रहा है ।

उसके हाथ मे है मेरी डोर ,
जैसे चाहे वैसे नचा रहा है ।


मैने तो मना किया था लेकिन,
शाकी जाम पे जाम पिला रहा है ।


मिलने पर अब पहचानता नही,
वह इस तरह मुझे जला रहा है ।


कुछ रब ने ठान रक्खी है शायद ,
बार-बार उन्ही से मिला रहा है ।

कभी वो न मेरी थी ,कभी मैं न दूजा था

कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /
सुबह जब नीद खुलती तो बाँहों में रहती थी ;रात जब सोता तो निगाहों में रहती थी /
कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;
बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /
दिन निकालता है रात ढलती है , उसके बदन की खुसबू मन में बसी रहती है ;
कभी आँखें दिखाती थी ,कभी निगाहें मिलाती थी ;
कभी वो मुस्कराती थी ,कभी खिलखिलाती थी ;
कभी वो शरमा के आती थी ,कभी वो तन के जाती थी ;
नजदीक आती कुछ इस अदा से, दिल चाक हो ,
उसके सिने की मासूम सी हलचल , या खुदा इंसाफ हो जाये ;
कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /
दिन रात मेरी यादों में बसा रहता है ;उसकी यादों से मेरा कोई रिश्ता न था /
सुबह जब नीद खुलती तो बाँहों में रहती थी ;रात जब सोता तो निगाहों में रहती थी /
सांसें महकती थी ,तूफान उठता था ;बाँहों के दरम्यान सारा जहान होता था ;
कभी सिने से लग जाती ,कभी बर्फ की मानिंद पिघल जाती थी /
कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /
सुबह जब नीद खुलती तो बाँहों में रहती थी ;रात जब सोता तो निगाहों में रहती थी /
कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /ViNAY

Saturday, 25 April 2009

शुन्यता अपना प्रभुत्व हर बार जता देती है ,जिंदगी फिर प्रश्न चिह्न बना लेती है

शुन्यता अपना प्रभुत्व हर बार जता देती है ,जिंदगी फिर प्रश्न चिह्न बना लेती है ;
रस्ते लौटा लाते हैं, जहाँ से शुरू मंजिल की तलाश होती है ;
समय अबाधित गति है , चलाना नियति ,
परिवर्तन सृजन का आधार है , श्रिस्टी का अभिप्राय है ;
संवेदनाएं भ्रमित हैं , अकंछायें द्रवित ;
आशाएं अचंभित;
वक़्त और भाग्य का अजीब मंथन ,
मन का सुरीला क्रंदन ;
कोशिशें हमेशा कामयाब नहीं होती ,
पर हर कोशिश भी ख़राब नहीं होती ;
मंजिलें पे पहुँच के फिर मंजिल की तलाश होती है ;
जिंदगी को नए प्रश्नों की आस होती है ;
शुन्यता अपना प्रभुत्व हर बार जता देती है ,जिंदगी फिर प्रश्न चिह्न बना लेती है ;
रस्ते लौटा लाते हैं, जहाँ से शुरू मंजिल की तलाश होती है ;

तजुर्बा उम्र का है या उम्र तजुर्बे की ?

तजुर्बा उम्र का है या उम्र तजुर्बे की ?
कैसे कहें की बात सच की है या सपने की ?
जो दिया जिंदगी ने समेट लिया ,
जो कहा अपनो ने सहेज लिया /
रास्ते कहाँ जायेंगे जानता नहीं हूँ मै; 
खुदा की राह है ,मंजिल तलाशता नहीं हूँ मै /

Friday, 24 April 2009

कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु

कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु जी ने लिखना तो १९४५ से ही शुरू कर दिया था । लेकिन साहित्य जगत में उनकी पहचान १९५४ में प्रकाशित उनके उपन्यास ''मैला आँचल '' से हुई । इस उपन्यास ने हिन्दी समीक्षा के नए मापदंड सामने लाये । आंचलिक उपन्यासों पर नई बहस इसी उपन्यास के माध्यम से शुरू होती है । इस उपन्यास में पुर्णिया जिले के मेरीगंज का जिक्र है । जन्हा की पूरी आंचलिकता उपन्यास में विस्तार से चित्त्रित है । उपन्यास किसी एक मुख्य पात्र पर केन्द्रित ना हो कर एक अंचल विशेष पर केन्द्रित है । इस उपन्यास का नायक यंहा पे वर्णित अंचल ही है ।
आप ने कुल ६ उपन्यास लिखे जिनमे मैला आँचल , परती परिकथा ,कितने चौराहे और जुलूस प्रमुख है । आप ने उपन्यासों के अलावा कहानी .रिपोर्ताज ,संस्मरण आदि भी लिखे । लेकिन एक उपन्यासकार के तौर पे आप को अधिक ख्याति मिली ।
कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु जी के जीवन का सामान्य परिचय निम्नलिखित लिंक पर पढ़ा जा सकता है ।

Thursday, 23 April 2009

India as a soft state.

India is a soft state is proved time and again by the policies of the politicians barring Indira Gandhi.
  What else you can say when a past Prime minister was killed by a terrorist out fit and Indian goverement did nothing against that outfit and when a defence minister himself hands over the terrorist and that too in other country .
  Indian politicians and we people too are responcible for that as we choose that politicians again and again.
  India and Indians are a passive country as is also proved
 by the fact that we are unable to sign the atomic deal with America which most knowledgeable people and scientist feel is good for our country .
  Indian parties are fighting over pota but too put pota on someone first you have to find the culprits but where are they ? From last few years terrorist has implimented same method and same type off target area but did we caught any real terrerorist behind these blast ? why?
  Because none of the parties like Congress or Bjp has any thing to do with India what you say about other parties 
Communist or BSp or Dmk? 
  Why government has not yet formulated a mechanism too 
 figt against terrorism or why Government has yet not decided to form a central agencies to combact internal sequrity matters ? Because we the comman peoples life is 
very small price on which these politicians want Power whatever happens too comman people they don`t mind . 
  Because we comman people are too much ingaged in catses and religion to aggigate for such purpose. Because We the comman people don`t care for our motherland and nor we aspire too see India as a true world power.
  So its our mistake and India Politician can`t think other then how to come to power and we people don`t demand enough for our sequrity and mostly we don`t demand anything for our Country.[ Irony is that we call country as mother].

kya kahun

क्या कहूँ किस बात पे,किस बात पे मै चुप रहूँ ;
जान पाता नहीं मै. हंसू किस बात पे ; किस बात पे गुम सुम रहूँ /
बड़ी उलझन है ,सुलझाती नहीं है बात अब ;
बच्चों के अरमानो को, कैसे पहनायुं अपनी असफलता का सब्र ;
माँ की आशावों को, क्या बतलायुं मेरी बदहाली का सबब/
कैसी राहों में उलझा ,कैसे बनी जिंदगी अजब ;
क्या कहूँ किस बात पे, किस बात पे मै चुप रहूँ ;
जान पाता नहीं मै. हंसू किस बात पे ; किस बात पे गुम सुम रहूँ /
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कथाकार अमरकांत ---------------------------------

अमरकांत आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं । स्वास्थ उनका साथ नही दे रहा है ,ऐसे में उनकी सारी आशायें साहित्य





प्रेमियों से ही है । अगर आप अमरकांत की किसी तरह से कोई सहायता करना चाहते हैं तो सीधे उन्ही से संपर्क कर सकते हैं । अमरकांत इलाहाबाद में रह रहे हैं । लोकभारती उनसे संपर्क का सीधा माध्यम है ।

Wednesday, 22 April 2009

हिन्दी साहित्य और संरचनावाद

स्वीडन के प्रसिद्ध भाषाविद FARDINAND DE SAUSSURE संरचनावाद के प्रवर्तक माने जाते हैं । हिन्दी में इन्हे ''सासूर '' नाम से जाना जाता है । अपनी मान्यतावो के माध्यम से आपने जो बाते सामने लायी वो इस प्रकार हैं ।
  1. भाषा एक व्यवस्था है ।
  2. भाषा चिह्नों द्वारा निर्मित है ।
  3. ये चिन्ह मनमाने और भेदपरक हैं ।

भाषाई चिन्ह के दो प्रमुख रूप हैं १)स्वर बिम्ब २) विचार

किसी शब्द और उसके अर्थ के बीच जो मनमानापन या नियम विहीन होना है ,वही संरचनावाद की देन है । जीवन में हम जो भी अनुभव करते हैं उन्हे संचारित करने का काम शब्द करते हैं । शायद यही कारण है की शब्द अर्थ के नियामक होते हैं । हमारे अनुभवों को रूप देने का काम शब्द भाषा के माध्यम से करते हैं । संरचनावाद एक भाषा वैज्ञानिक पद्धति है । जिसका एक पूरक हिस्सा साहित्यिक संरचनावाद है ।

इस विषय पर अंग्रजी में एक बड़ा लेख आप निम्नलिखित लिंक के माध्यम से पढ़ सकते हैं ।

poetics: Structuralism, linguistics and the study of literatureJ Culler - 2002 - books.google.com... Page 6. . Page 7. Jonathan Culler Structuralist Poetics Structuralism, linguisticsand the study of literature With a new preface by the author ". ... Cited by 576 - Related articles - Web Search - All 3 versions
[CITATION] Structuralist Poetics: Structuralism, Linguistics, and the Study of Literature. 1975J Culler - Ithaca: Cornell UP, 1977Cited by 5 - Related articles - Web Search
[CITATION] Structuralist Poetics: Structuralism, Linguistics, and the Study of Literature (Ithaca, NY, 1975)J Culler - See also Robert Scholes, Structuralism in Literature: An …Cited by 2 - Related articles - Web Search
[CITATION] Structuralist poetics: Structuralism, linguistics and the study of languageJ Culler - 1975 - Ithaca, NY: Cornell University PressCited by 2 - Related articles - Web Search
[CITATION] Structuralist Poetics: Structuralism, Linguistics and the Study of PoetryJ CULLER - 1975 - London: Routledge and Kegan PaulCited by 1 - Related articles - Web Search
[CITATION] Structuralist Poetics: Structuralism, Linguistics, and the LiteratureJ Culler - 1975 - London: RoutledgeCited by 1 - Related articles - Web Search
[BOOK] Structuralist poetics structuralism, linguistics and the study of literature Cornell paperbacksJD Culler - 1979 - Cornell university pressWeb Search
Structuralist poetics: structuralism, linguistics and the study of literature (coll routledge …C Jonathan - lavoisier.fr... Notice. 35.00 € Ajouter au panier. Structuralist poetics: structuralism, linguisticsand the study of literature (coll routledge classics). ... Cached - Web Search Key authors: J Culler

Tuesday, 21 April 2009

प्रेम की परिभाषा ------------------------------

प्रेम की परिभाषा तुझी से साकार है
नारी तू ही जीवन का अलंकार है ।

तुझे नर्क का द्वार समझते हैं जो,
उनकी दकियानूसी सोच पर धिक्कार है ।

दुनिया की आधी आबादी हो तुम,
बेशक तुम्हे बराबरी का अधिकार है ।

कंधे से कन्धा मिलाकर आगे बढो,
तुम्हारी उड़ान ही तुम्हारी ललकार है ।

कोई बहुत याद आ रहा है ----------------------------

कोई बहुत याद आ रहा है

मुझे अपने पास बुला रहा है ।



हर पल खयालो में आकर,

GAM JUDAAI KA BADHA REHA HAI ।



USKAY HAANTH MEI HAI MERI DOR,

CHAAH REHA JAISAY VAISAY NACHA REHA HAI .



MAINAY TO MANAA KIYA LEKIN,

SHAAKI JAAM PAY JAAM PILA REHA HAI ।



MILNAY PAR AB PAHCHAANTA NAHI,

VAH IS TARAH MUJHAY JALAA REHA HAI ।



KUCHH RAB NAY THAAN RAKHI HAI SAAYAD,

BAAR-BAAR UNHI SAY MILA REHA HAI ।

Sunday, 19 April 2009

उनका कसूर था,वो लडकियां थीं --------------------------

हमारे बीच सिर्फ़ खामोशियाँ थीं
दिल के समंदर में बंद सीपियाँ थीं ।

हम दोनों साथ चलते भी तो कैसे,
बड़ी संकरी समाज की गंलियाँ थीं ।

सोचकर अपने कल के बारे में ,
बाग़ की डरी हुई सभी कलियाँ थीं ।

उनके बिना अजीब सा सूनापन है ,
बेटियाँ तो आँगन की तितलियाँ थीं ।

जो कोख में ही मार दी जाती हैं ,
उनका कसूर था,वो लडकियां थीं ।

जिस घाटी में आज सिर्फ़ बारूद है,
VANHI PAY KABHI KAISAR KI KYAARIYAAN THEEN ।

अभी तो बाकी पूरी ग़ज़ल है -----------------------------

तुमसे मिलना तो एक पहल है
अभी तो बाकी पूरी ग़ज़ल है ।

मेरे इस मन को इंतजार है तेरा,
तू खिलता हुवा एक कवल है ।

अब जो भी सोचता हूँ,चाहता हूँ
हर बात में तेरा ही दखल है ।

झोपडी कब की नीलाम हो चुकी
अब बननेवाला यंहा महल है ।

तुझसे जीतना ही कब था मुझे,
तेरी जीत से ही मेरी हार सफल है ।

चोरी-छिपे मिलोगी कितना-------------------------

प्यार में मुझको छलोगी कितना
झूठ पे झूठ तुम कहोगी कितना ।

मेरी राह में कांटे हैं,मखमल नही
मेरे साथ जिंदगी में चलोगी कितना ।

हाँथ थाम लो जिंदगी भर के लिये
यूँ चोरी-छिपे तुम मिलोगी कितना ।

एक ना एक दिन बोलना ही पडेगा,
आख़िर साँचो में इसतरह ढलोगी कितना ।

चांदनी रात मे अकेले ---------------------------------

चादनी रात मे अकेले टहलना मत
मुझे याद कर के तुम तड़पना मत ।

लग जायेगी यकीनन तुम्हे नजर ,
बेनकाब घर से कंही निकलना मत ।

अब जब कि मिल गये हो मुझसे,
एक पल के लिये भी बिछड़ना मत ।

अपने दिल कि हर बात कह देना,
बिना कहे अंदर ही अंदर सुलगना मत ।

जिंदगी को ऊपर ही ऊपर जी लो,
अधिक गहराई मे इसकी उतरना मत ।

मुझे भुला देगा --------------------------

मुझे मुझसे ही चुरा लेगा
इसतरह वह मुझे सजा देगा ।

वह चला तो है हमसफ़र बन,
मगर मालूम है दगा देगा ।

बेदाग़ है अभी दामन मेरा,
इश्क कोई दाग लगा देगा ।

जैसे ही मिल जायेगा दूसरा,
वह यकीनन मुझे भुला देगा ।

दिल का इलाज सिर्फ़ दिलबर है,
वही तो मोहबत्त की दवा देगा ।

तुमारी यादो से --------------------------

Posted by Picasa
तुम्हारी यादो से महक रहा कमरा मेरा
तुम्हे सोचा, और खिल गया चेहरा मेरा ।
अकेले मुझसे मिलने, जब भी आती हो ,
तुम्हे देख हो जाता है, रंग गहरा मेरा ।
ना जाने कितनो को उदास कर गया,
तेरे इंतजार मे सर का यह सेहरा मेरा ।
जहा पर रूकी हुई हो तुम अब तक ,
खुशियों का हर लम्हा, वही ठहरा मेरा ।
आज मेरे हिस्से मे घोर अँधेरा सही,
लेकिन कल होगा, सुनहरा सबेरा मेरा ।

नई है शुरुआत ---------------------------

जरूरी है मुलाक़ात समझा करो
नई -नई है शुरुआत समझा करो ।

सबकुछ कह तो नही सकता ,
दिल के जज्बात भी समझा करो ।

न नीद,न चैन,न करार है मुझे ,
सब मोहबत्त की सौगात समझा करो ।

ये सभी राजनीति के दांव-पेज हैं ,
इसके अजीब करामात समझा करो ।

यद्यपि है अँधेरा बहुत घना पर,
आएगा नया प्रभात भी समझा करो ।

Saturday, 18 April 2009

चंद पाकिस्तानी आये थे बोट लेकर --------------------------

चंद पाकिस्तानी आये थे बोट लेकर

अब तो सैकडो आ रहे हैं वोट लेकर ।



उन्हे कहा किसी का डर होता है ,

वे तो चलते हैं गांधी छाप नोट लेकर ।



अगले चुनाव तक कोई नही पूछे गा ,

जनता घूमती रहेगी अपनी चोट लेकर ।



जो नेता है,उसपर ऐतबार मत करना,

घूमता रहता है वह नीयत मे खोट लेकर

बेटी का बाप -----------------------

हर आहट पे कितना खबरदार है
बेटी का बाप मानो पहरेदार है ।

मोहल्ले की हर जवान खिड़की,
BAAREHO MAHINAY KHUSBOODAAR HAI .

JISY NAHI MILA ABHI TAK AVSAR,
VAHI KHUD KO KAHTA VAFAADAAR HAI .

JANHAA PAR PAISA AUR PAHUNCH HAI ,
VANHA KANHA KAANOON KOI ASARDAAR HAI .

Thursday, 16 April 2009

हर बात में -------------------

हर बात में वही बात जताते हैं
खुल के पूछो तो इठलाते हैं ।

किसी और से नही पर ,
मेरे आगे खूब इतराते हैं ।

मैने पूछा प्यार के बारे में,
वो हैं की बस बहकाते हैं ।

मन जो सुनना चाहता है,
उसी बात को सुन शर्माते हैं ।

कभी-कभी नाराज होता हूँ क्योंकि,
VO BADAY HI PYAAR SAY MANAATAY HAIN ।

न पूछो तुम जुदाई का सबब --------------------------

झूठी तारीफों से मान जाते हैं


सच बोलूँ तो खफा होते हैं ।





मिलने का तो ऐसा है कि,


खयालो में हर रोज आते हैं ।





न पूछो तुम जुदाई का सबब,


BADEE TANHA BADEE BECHAIN RAATAY HAIN .





YOON TO MUJHSAY BAHUT DOOR HAI PAR,


USI KO SABSAY KAREEB PAATAY HAIN .





AAP JISAY KAHTAY HAIN GAZAL,


VO TO DARD SAY RISHTAY-NAATAY HAIN .

Wednesday, 15 April 2009

मेरी पहली शोक सभा ------------------------------------

बात उन दिनों की है जब मैं मंच संचालक के रूप में अपनी नई-नई पहचान बना रहा था । हर वक्त बरसाती मेंढक की तरह संचालन करने के लिये तैयार। जेब के अंदर पैसे भले ना हो,लेकिन हर तरह के कार्यक्रम के लिये संचालन की सामग्री अवस्य रहती थी । पंचिंग शेर,सूक्ति वाक्य और छोटी-छोटी बोधगम्य कहानिया ।
एक शाम अचानक शहर के माने -जाने समाजसेवी और मेरे महाविद्यालय के मानद सचिव श्री विजय नारायण पंडित जी का फ़ोन आया । मुझे तुंरत महाजन वाडी हाल में पहुचना था,किसी कार्यक्रम का संचालन करने के लिये । मैं इतना खुश हुआ कि यह भी पूछना जरूरी नहीसमझा कि आख़िर किस तरह के कार्यक्रम में जाना है ।
तुंरत तैयार हो कर मैं यथा स्थान पंहुच गया । वहा देखा तो अजीब ही माहौल था । सब के चेहरे पर मनहूसियत छाई थी । मुझे कुछ आशंका हुई तो मैने विजय भाई से धीरे से पूछा ,"भईया कार्यक्रम क्या है ?" विजय भाई बोले,"मनीष अपने श्यामधर पाण्डेय जी के पिताजी का स्वर्गवास हो गया है,उसी लिये शोक सभा बुलाई गई है । "यह सुनकर मेरे तो कान खड़े हो गये । मैने अभी तक किसी शोक सभा का संचालन नही किया था । संचालन तो दूर मैं किसी शोक सभा मे सहभागी भी नही हुआ था । अब क्या करू ? फ़िर जिनकी यह शोक सभा थी उनसे तो मेरा दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध भी नही था । उनके बारे मे मुझे कुछ भी मालूम नही था । पर मरता क्या न करता ,मैने भी भगवान् का नाम ले माइक थामा ।
मेरा पहला वाक्य था -आप सभी आमंत्रित अतिथियों का मैं इस शोक सभा मे हार्दिक स्वागत करता हूँ । मैने इतना बोला ही था कि विजय भाई ने पीछे से आवाज दी । जब मैं उनके पास पहुँचा तो वे मेरे कान मे बोले -क्या कर रहे हो ? शोक सभा मे स्वागत नही किया जाता ,वो भी हार्दिक ------------------
मैं बहुत शर्मिंदा हुआ ,डरते-डरते फ़िर माइक के सामने गया । उसके बाद क्या-क्या बोल गया था ,अब याद नही है । लेकिन शोक सभा ख़त्म होने के बाद कई लोगो ने मुझे कुशल संचालन के लिये बधाई दी । शोक संतप्त परिवार के लोगो ने मेरे प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित की ।
इस तरह मेरे जीवन की पहली शोक सभा पूरी हुई .जो मैं कभी भूल नही सकता ।

Tuesday, 14 April 2009

सुहानी शाम दिलकश रात हो -----------------------


सुहानी शाम दिलकश रात हो

ऐसे में मिलो तो क्या बात हो ।


जो गजलो में अच्छा लगता है
तुम बिल्कुल वही जज्बात हो ।


तुम्हारी अदावो का कहना क्या
मैं डाल-डाल तुम पात-पात हो ।


कह दूंगा दिल की हर एक बात मैं
अब जब भी तुमसे मुलाक़ात हो ।

अमरकांत की आर्थिक सहायता और हिन्दी समाज

यंहा उन खबरों का हवाला है जिनके माध्यम से यह साबित होगा की हिन्दी के लेखको की आर्थिक स्थिति कितनी गड़बड़ रही है । साथ ही साथ यह भी समझना होगा की परिवार के लोगो द्वारा बीमारी के नाम पर पैसा बटोरना कहा तक सही है । आप जो खबर नीचे अंग्रजी में पढ़ रहे हैं ,उसका सम्बन्ध हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार अमरकांत से है ।
http://news.oneindia.in/2008/05/03/aid-for-ailing-hindi-writer-1209801777.html
Saturday, May 03 2008 13:08(IST)
Bhopal, May 3: Noted Hindi writer Amarkant, who was ailing for a long time, has been provided financial assistance of Rs one lakh by Madhya Pradesh Chief Minister Shivraj Singh Chouhan.The 83-year-old prolific writer is a recipient of Madhya Pradesh Government's National Maithili Sharan Samman.
Wishing him fast recovery, Mr Chouhan stresed on the ned to take care of the health and problems of the writers, official sources said.Mr Amarkant has a number of novels to his credit including the famous book entitled 'Sukhjeevi'. His story collection 'Zindagi Aur Jaunk' is very popular. He has also penned many stories for children.He is recipient of various prestigious awards, including the Soviet Land Nehru Award, Yashpal award, Jan Sanskriti Samman and has also been honoured by Uttar Pradesh Hindi Sansthan
यह समाचार पढ़ कर आप यह तो समझ गये होंगे की अमरकांत जिन बातो से पूरी उम्र बचते रहे ,अब अपने अन्तिम समय में उन्ही बातो को झेलने के लिये लाचार हैं।
अमरकांत जी से मेरी पहली मुलाकात २००६ में उनके इलाहबाद स्थित मकान में हुई । उन दिनों अमरकांत गोविंदपुर के एल.आई.जी.मकान में रहा करते थे.साथ ही उनके बेटे (अरविन्द)और बहु भी रहा करते थे । अरविन्द अमर कृत प्रकाशन चला रहे थे और बहाव नामक पत्रिका का सम्पादन भी कर रहे थे । कुल मिलाकर आमदनी का कोई ठोस आधार नही था। उपर से अमरकांत जी बीमार रहते थे । आज की तारीख में उनकी दवाओं पर हर दिन ५००० खर्च हो रहा है । ऐसे में मजबूर हो कर अमरकांत ने अपनी आर्थिक सहायता के लिये अपील जारी की।
इस अपील को ले कर साहित्य जगत में हंगामा मच गया। मदद तो दूर की बात लोगो ने इसे पैसे कमाने का हथकंडा मानकर इसके विरुद्ध लिखना शुरू किया । दो तरह की बाते सामने आई । कुछ सरकारी संस्थानों से मद्दद भी मिली तो कईयों की आलोचना भी सहनी पड़ी ।
मैं ने अपना शोध कार्य हाल ही मे अमरकांत पर ही पूरा किया है । मैं अमरकांत की हालत से अच्छी तरह परिचित हूँ । उन्हे सच में आर्थिक सहायता की जरूरत है । ऐसे में मैं बस इतना कहना चाहता हूँ की अगर हम उनकी कोई मदद नही कर सकते तो हमे उनका निरर्थक विरोध भी नही करना चाहिये .

हिन्दी कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

http://www.anubhuti-hindi.org/gauravgram/sds/index.htm

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(१९२७-१९८३)
जन्म : १५ सितम्बर १९२७ बस्ती उत्तर प्रदेश में।शिक्षा : वाराणसी तथा प्रयाग विश्वविद्यालय में।कार्यक्षेत्र : अध्यापन, आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर, दिनमान के उपसंपादक और पराग में संपादक रहे। साहित्यिक जीवन का प्रारंभ कविता से। दिनमान के 'चरचे और चरखे' स्तम्भ में वर्षो मर्मभेदी लेखन-कार्य। कला, साहित्य, संस्कृति और राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय हिस्सेदारी। कविता के अतिरिक्त कहानी नाटक और बालोपयोगी साहित्य में महत्वपूर्ण लेखन। अनेक भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद। १९७२ में सोवियत संघ के निमंत्रण पर पुश्किन काव्य समारोह में सम्मिलित।
२४ सितंबर १९८३ को आकस्मिक निधन।
प्रमुख रचनाएँ :काव्य-संग्रह : काठ की घाटियाँ, बांस का पुल, एक सूनी नाव, गर्म हवाएँ, कुआनो नदी, कविताएँ १, कविताएँ २, जंगल का दर्द, खूँटियों पर टँगे लोग।उपन्यास : उड़े हुए रंगलघु उपन्यास : सोया हुआ जल, पागल कुत्तों का मसीहाकहानी संग्रह : अंधेरे पर अंधेरानाटक : बकरी बाल साहित्य : भों भों खों खों, लाख की नाक, बतूता का जूता, महंगू की टाई।यात्रा वृत्तांत : कुछ रंग कुछ गंधसंपादन : शमशेर, नेपाली कविताएँ ।
यह तो वह जानकारी है जो गूगल के माध्यम से हमारे लिये उपलब्ध है । लिंक के अंतर्गत इसके बारे में विस्तार से पढ़ा जा सकता है । साथ ही साथ हमे यह भी समझना होगा की सर्वेश्वर जैसे कवियों पर हमे आलोचना के नवीन मापदंड अपनाने होंगे । नई कविता और नई कहानी की चार दिवारी के बीच अमरकांत और सर्वेश्वर जैसे साहित्यकारों को बाँधा नही जा सकता ।
आजादी के बाद के मोहभंग ,निराशा ,कुंठा ,अवसरवादिता ,भाई -भतीजावाद और शोषण की स्थितियों के बीच ही सर्वेश्वर ने ऐसी कविताये भी रची जो उन्हे उनके समकालीनों से अलग एक नया मकाम देती हैं । अपनी कविताओ के माध्यम से सर्वेश्वर ने समकालीन समाज का चित्र ही नही खीचा अपितु सामान्य जन मानस के अंदर नई शक्ति संजोने का भी काम किया ।
आप की कविता सिर्फ़ निराशा और हताशा को नही दिखाती ,बल्कि समाज को अपने यथार्थ से परिचित करा कर उन्हे आने वाली परिस्थितयों के प्रति सजग भी बनाती हैं ।

तेरे बाद तो अबतक -----------------------

किनारों पे टूट जाती है हर लहर तनहा
जाने किसको तलाशती हर पहर तनहा ।

बिन सीता,राम भोग रहे हैं वनवास
कितना मुश्किल है यह सफ़र तनहा ।

अपनी छोड़ हमने सब की सोची
उधर वो,रहे इधर हम भी तनहा ।

ख्वाब कैसे सजे कोई आँखों में
तेरे बाद अब तक रही नजर तनहा ।

कोई मिले तो उसका हाँथ थाम लेना
जिंदगी न होगी इसकदर बसर तनहा ।

Sunday, 12 April 2009

आप जो मेरे घर मेहमान हैं ------------------------

मेरे घरआज आप बने मेहमान हैं

खुशकिस्मत कितना ये मेजबान है ।





तुम्हारे घर उर्दू,मेरे घर में हिन्दी,

फ़िर भी मोहब्बत का अरमान है ।





मुहमांगी कीमत चुकाने के बाद,

लड़की का बाप करता कन्यादान है ।



हर ग़लत बात पे आवाज उठाओ ,

कदम हर कदम तुम्हारा ही नुक्सान है । ।

Saturday, 11 April 2009

नही रहे हिन्दी के साहित्यकार विष्णु प्रभाकर --------------------------

हिन्दी के जाने -माने साहित्यकार अब हमारे बीच नही रहे । पद्मविभूषण से सम्मानित विष्णु जी काफी दिनों से बीमार चल रहे थे । हाल-फिलहाल उनका इलाज दिल्ली के पंजाबी बाग़ स्थित महाराजा अग्रसेन अस्पताल में हो रहा था ।
सन १९१२ में जन्मे विष्णु प्रभाकर जी नाटककार,कहानीकार,उपन्यासकार और जीवनीकार के रूप मे जाने जाते थे । आप के प्रमुख उपन्यास इस प्रकार हैं
१.निशिकांत -१९५५
२.तट के बंधन -१९५५
३.दर्पण का व्यक्ति -१९६८
४.कोई तो - १९८०
५.अर्धनारीश्वर-१९९२
आप की कहानिया भी काफी लोकप्रिय रही हैं । आप के कुछ प्रमुख कहानी संग्रह इस प्रकार हैं
१.धरती अब घूम रही है
२.सांचे और कला -१९६२
३.पुल टूटने से पहले -१९७७
४.मेरा वतन -१९८०
५.खिलौने
६.एक और कुंती
७। जिंदगी का रिहर्सल

आप ने हिन्दी नाटको के विकास में भी अहम् भूमिका निभाई । सन १९५८ में डॉक्टर नामक आप के नाटक से आप को हिन्दी नाटक के परिदृश्य मे जाना गया । आप के प्रमुख नाटक इस प्रकार हैं
१.युगे-युगे क्रांति-१९६९
२.टूटते परिवेश-१९७४
३.कुहासा और किरण -१९७५
४.डरे हुवे लोग -१९७८
५.वन्दिनी-१९७९
६.अब और नही -१९८१
७.सत्ता के आर-पार -१९८१
८.श्वेत कमल -१९८४
इनके अतिरिक्त आपको जिन पुस्तकों की वजह से जाना गया ,उनमे आवारा मसीहा ,हत्या के बाद और मैं नारी हूँ शामिल है । आप मूल रूप से मानवतावादी रचनाकार के रूप में जाने गये । मानवीय मूल्यों के प्रति आप अपने साहित्य के माध्यम से हमेशा सचेत रहे । आप का यह मत था की ,"व्यक्ति की संवेदना जब मानव की संवेदना में रूपाईट होती है तभी कोई रचना साहित्य की संज्ञा पाती है । "
आज विष्णु प्रभाकर जीवित नही हैं ,लेकिन उनका साहित्य अमर है। यह साहित्य ही हमे हमेशा विष्णु जी की याद दिलाता रहे गा । ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे ।

Friday, 10 April 2009

नीरधि अधर अधिर हैं तेरे ----------------

नीरधि अधर अधिर हैं तेरे
अब बरसे की तब बरसे
नीरव नीरस जीवन मेरा
कर दो मेरा उद्धार प्रिये ।

प्यास मिटेगी जब मेरी
तुझको भी होगा आनंद
एक -दूजे के पूरक हैं हम,
एक-दूजे से पूर्ण प्रिये ।

डॉ.रामजी तिवारी ------------------

मुझे इस बात की बेहद खुशी रही की मुझे गुरु के रूप में डॉ.रामजी तिवारी सर का आशीर्वाद मिला । मुंबई विश्विद्यालय और पुणे विश्वविद्यालय से संबद्ध शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो डॉ.रामजी तिवारी के नाम से परिचित ना हो । पूरे देश के हिन्दी समीक्षकों की अगर लिस्ट बनाई जाय तो डॉ.रामजी तिवारी पहले १० समीक्षकों में जरूर गिने जायेंगे । आप का जैसा नाम है वैसा ही आप का स्वभाव भी है । सादगी भरा आपका जीवन और आप की विनम्रता ही वे गुण हैं जो सभी को पसंद आते हैं ।

आज कल की गुट बाजी से दूर आप निरंतर अपने अध्ययन -अध्यापन कार्य में लगे हुए हैं । शोध छात्र के रूप में मैने आप के मार्गदर्शन में ही ph.D का काम पूरा किया। आप के सामने कभी विनम्रता वश कुछ भी नही कह पाया,लेकिन आज अपने ब्लॉग पे आप के प्रति सार्वजनिक रूप से कृतज्ञता ज्ञापित करने का अवसर मैं जरूर लूँगा ।
सर , मैं आप के प्रति आभारी हूँ ।

ऊपर उठना कठिन है जितना ----------

ऊपर उठना कठिन है जितना
गिरना उतना ही आसान
उठाने में विश्वाश का बल
इसमे साहस साथ प्रिये ।

अकर्म पतन का कारण है
कुंठा इसमे कारक है
इसमे केवल दुःख और डर
नही कोई उत्कर्ष प्रिये ।

अंतःकरण शरण की वाणी -------------------------

अन्तःकरण शरण की वाणी
सच्चाई की होती है
जितना सम्भव हो पाये
इसी की मानों बात प्रिये ।

सहज-सरल जीवन की गति
प्रेम अनुभूति से मुमकिन है
मन में बसाओ प्रेम का भाव
फ़िर सब कुछ आसान प्रिये ।

मैं,मेरा का भाव त्यागकर
मन को सच्चा सुख मिलता
आख़िर रोग कहा देता है
सुख रोगी को कभी प्रिये ।

अज्ञान- भरे मन के अंदर
ज्ञान तभी सम्भव है जब ,
विद्या की लाठी लेकर के ,
भाजो इसको नित्य प्रिये ।

हिन्दी की एक और पत्रिका ------------------


हिन्दी की इस पत्रिका का यह ५० वां अंक है । हिन्दी की पूरे देश से कितनी लघु पत्रिका निकलती है ,इस बारे में कोई निश्चित आंकडे नही बताये जा सकते हैं । इसीलिये मेरी यह कोशिस होती है की मैं अपने ब्लॉग के जरिये ऐसी पत्रिकाओ के बारे में आप लोगो को बताता रहूँ ।
यह पत्रिका भाई उमेश सिंह के सम्पादन में मुंबई से निकलती है । इस पत्रिका को प्राप्त करने के लिये आप इस नम्बर पे संपर्क कर सकते हैं। ०९८६९२४०५७२ । पत्र व्यवहार का पता इस प्रकार है
४०१;नर्मदा ,विजय बाग़
मुर्बाद रोड ,कल्याण-पश्चिम
ठाणे , महाराष्ट्र । hindi

अब भी मन में प्रीत है लेकिन -------------------

अब भी मन में प्रीत है लेकिन
पहले जैसा वक्त नही
मैं भी वही हूँ तुम भी वही हो ,
पर नही रही वह कसक प्रिये ।

जीवन के सारे राग -विराग
मेरे तुमसे ही जुडते हैं
पर कोई शिकायत तुमसे हो
निराधार यह बात प्रिये ।

प्रथम प्यार की स्मृतियों में ,
छवि तो बिल्कुल तेरी है
वर्तमान में लेकिन इनका ,
कहा कोई आधार प्रिये ।

इस दुनिया में धर्म देवता
सदियों से हमको बाँट रहे
खंड-खंड पाखण्ड में डूबे
बटे हुवे सब धर्म प्रिये ।

इस पाखंडी धर्म नीति को
प्रेम का रिश्ता तोड़ रहा
ऊपर उठ कर जात-पात से
सभी को यह जोड़े है प्रिये ।

तस्वीरो का खजाना पिकासो ---------

अगर आप अच्छी तस्वीरो के शौखीन हैं तो गूगल की फोटो सेवा के माध्यम से आप पिकासो एल्बम देख और बना सकते हैं । इन तस्वीरो की संख्या बहुत है । ब्लॉग पे इन्हे सीधे up lod किया जा सकता है। इस तरह आप अपने ब्लॉग का सौन्दर्य बढ़ा सकते हैं । आज हर चीज़ का गूगलीकरण हो रहा है । गूगल मानो हमारी आवश्यक्तावो का केन्द्र बिन्दु बन चुका है । मैने भी इस सेवा का लाभ उठा कर आप के लिये कुछ तस्वीरें ब्लॉग पे डाली हैं। आशा है आप को पसंद आयेगी ।

Wednesday, 8 April 2009

तेरी तस्वीर जब देखता हूँ ...................................

तुझे कितना मैं सोचता हूं
तेरी तस्वीर जब देखता हूँ ।
कह न सका कभी जो बात तुमसे ,
वह सब तेरी तस्वीर से कहता हूं ।
जिंदगी खुली किताब की तरह ,
बस तेरे आगे ही खोलता हूं ।
जानबूझकर फरेब खाता हूं
असलियत सब की मगर पहचानता हूं ।
तुम सो जाओ तुम्हे आदत नही ,
मेरा क्या,मैं रात भर जागता हूं ।
(mere blog pay jo tasveer aap dekh rehay hain yah google ki painting seva say hi blog par daali gai hai .ismay mera apna kuch nahi hai .kavitao kay saath tasveer adikh prabhavkari lagti hai.)
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दिल कितना मचलता है ---------------------------

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दिल कितना मचलता है ,

कोई तारा जब टूटता है ।

वो यकीनन् अजनबी है पर ,

अपनों से भी करीब लगता है ।

जिंदगी बेरंग लगती है तब,

जब हाथो से हाथ छूटता है ।

मैं मना लूँगा,वो जानता है

इसीलिये तो रूठता है ।

मैं उसकी हर बात मानता हूँ ,

वो है की झूठ पे झूठ बोलता है ।

ये मेरे प्यार की निशानी है --------------------------

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इस तस्वीर की इतनी सी कहानी है ,
ये मेरे प्यार की निशानी है ।
जो लिख रहा हूँ नयी ग़ज़ल में ,
वो सब बात पुरानी है ।
ये चेहरा उसी शोख कातिल का है,
नाम जिसके कर दी जवानी है ।

चुप चाप कही जब सो जाती है -------------------------

चुप चाप कही जब सो जाती है ,
मीठे सपनो में खो जाती है ।
दर्द बहुत जब बढ़ जाता है ,
आंखे हैं की रो जाती हैं ।
कड़वी बाते सभी पुरानी,
नये प्यार में धो जाती हैं ।
दो फूल खिले हो जिस आँगन ,
खुशियाँ वाही पे हो जाती हैं ।
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