Friday, 30 April 2010

बिस्तर की सलवटें तलाशती है ,

बिस्तर की सलवटें तलाशती हैं ,
मै याद नहीं करता मेरी साँसे पुकारती हैं ;
बिस्तर की सलवटें तलाशती हैं ,
नीद में बाहें भीचना चाहती है बदन कोई ,
अधखुली आखें अधजगा सा मन ढूढता बगल में कोई ;
सुबह जल्द अब भी जग जाता हूँ मै ,
दिल चाहता है मचल के लग जाये सिने से कोई ;
मै याद नहीं करता खुश हूँ अपनी रातों से ,
बिस्तर की सलवटें तलाशती है ,
मै याद नहीं करता मेरी साँसे पुकारती हैं ;
उजलाती भोर की किरणों में कुछ पिघले पलों की खुसबू चली आती है ,
तड़पती धड़कने अपनी प्यास को सिने में दबा जाती है ;
अनजाने ही हाथ बड़ते हैं हाथों में भरने को वो गुदाज बदन ,
कानो को याद आती है तेरे ओठों की नमी और चूड़ी की खन खन ;
मै याद नहीं करता करवट बदल सो जाता हूँ ,
बिस्तर की सलवटें तलाशती है ,
मै याद नहीं करता मेरी साँसे पुकारती हैं
;
मेरे ओठों को उन ओठों का उतावलापन याद आती है ,
चेहरे पे उन उफनती सांसों की दहक अब भी कौंध जाती है ;
चाय पिने से पहले अक्सर तेरे मुंह की मिठास भर आती है मुंह में ,
भर आता है तेरे बदन का नमक तन मन में ;
चुमते बदन के भावों से तड़प उठता है कण कण ,
मुंह खुल जाता है पिने को तेरा पुरजोर बदन ;
पर मै खुश हूँ अपनी राहों में ,
याद नहीं करता पर बसता है तू ही अब भी निगाहों में ;
बहुदा चाय बनाते मेरी बाहें भर लेती है बाहों में खुद को ;
बिस्तर की सलवटें तलाशती है ,
मै याद नहीं करता मेरी साँसे पुकारती हैं ;
दीवाल जहाँ तू सट के खड़ी होती थी ;
जहाँ मेरे चुमते वक़्त तेरी पीठ रही होती थी ;
सुनी सुनी सी तेरी राह तकती है ,
बिस्तर का कोना जहाँ तू बैठती और मै सहेजता बदन तेरा ,
रूठा रहता है ,सलवटों से सजा रहता है ,
सुना दर्पण ढूढता है वो हंसी चेहरा बड़ी हसरत से ,
सुना आँगन भी राह तकता है अब भी बड़ी गैरत से ;
बिस्तर की सलवटें तलाशती है ,
मै याद नहीं करता मेरी साँसे पुकारती हैं ;
   

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