Saturday, 24 April 2010

अमरकांत और कहानी

अमरकांत और कहानी 
      अमरकांत 'नई कहानी` आंदोलन के प्रमुख कहानीकारों में से एक है। 'नई कहानी के नाम को लेकर अवश्य विवाद रहा पर इस दौर की कहानियों ने कहानी विधा को एक नया मोड़ दिया। अब कहानी में 'शिल्प` नहीं 'कथ्य` महत्वपूर्ण हो गया। कहानियों का लेखन कार्य यथार्थ की भावभूमि से जुड़ा। 'नई कहानी` अपने आप को 'वैचारिक दृष्टि` से बदल रही थी। कहानी के लिए शाश्वत मूल्य बन चुके आग्रहों से 'नई कहानी` लड़ रही थी। 'नई कहानी` 'कहानी` होने से पहले 'जीवनानुभव` का आग्रह करने लगी थी।
      देश की स्वतंत्रता के साथ ही साथ देश का विभाजन हो गया। देश के बँटवारे के साथ भीषण साम्प्रदायिक दंगो ने हमारी राष्ट्रीयता की जड़े हिला दी। भुखमरी और अकाल की परिस्थितियों ने मानव मूल्यों को झकझोर दिया। इन समस्याओं के साथ कुछ नई समस्याएँ भी देश के सामने आयी। ये समस्याएँ शरणार्थियों की व्यवस्था, आर्थिक विकास और सुचारू प्रशासन की थी। इन परिस्थितियों ने सामान्य जन को यथार्थ के प्रति अधिक जागरूक बनाया। नई कहानी में जटिल जीवनऱ्यथार्थ की व्यापक स्वीकृति अभिव्यक्त हुई। इसके माध्यम से 'व्यक्ति-चेतना` को महत्व मिला। कोरी भावुकता धीरे-धीरे कहानियों से हटने लगी। नई कहानी के माध्यम से सांकेतिकता वस्तु और शिल्प दोनों में आयी। मध्यमवर्गीय समाज की पीड़ा, दुख, दर्द, क्षोभ, विवशता और हीनता का सबसे अधिक चित्रण नई कहानी में हुआ।
      निश्चित तारीखों के आधार पर 'नयी कहानी` का काल खण्ड निर्धारित करना मुश्किल है। फिर भी अध्ययन की सुविधानुसार सन् 1954 से सन् 1963 तक के पूरे काल खण्ड को नयी कहानी का समय कहा जा सकता है। नयी कहानी की प्रतिष्ठा के साथ-साथ अमरकांत की कहानियों को साहित्यिक प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। अमरकांत अपने कथा साहित्य के माध्यम से आम आदमी की संवेदनाओं को बड़ी ही कुशलता से अभिव्यक्त करते रहे हैं। अमरकांत के पात्रों की चारित्रिक जटिलता काल्पनिक नहीं है। बहुस्तरीय शोषण, मूल्य हीनता और मोहभंग जैसी जटिल स्थितियों का मनोवैज्ञानिक स्तर पर प्रहारधर्मी व्यंगों के माध्यम से अमरकांत ने व्यक्त किया है। संवेदना के साथ-साथ अमरकांत के साहित्य के शिल्प की भी अपनी विशेषता है। उनकी भाषा सहज और सरल है। अमरकांत ने मुहावरों व लोकोक्तियों का भी सार्थक प्रयोग किया। अमरकांत ने अपने तीखे व्यंग के माध्यम से उन सफेद-पोश लोगों को भी नंगा किया जो दोहरा जीवन जीने के आदी थे। कथाकार अमरकांत - प्रेमचंद की कहानी परंपरा को आगे बढ़ाने वाले कहानीकारों में से एक हैं।
      अमरकांत के कई कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ये सभी प्रकाशित संग्रह इधर 'अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ दो पुस्तकों में संग्रहित हो गयी। अध्ययन-अध्यापन की दृष्टि से यह संग्रह बहुत उपयोगी है। इन दो पुस्तकों के अतिरिक्त - उधर अमरकांत ने जो कहानियाँ लिखी वे भी 'जाँच और बच्चे` नामक शीर्षक से प्रकाशित हो चुकी है। इस तरह अमरकांत की अब तक की लिखी सारी कहानियाँ इन तीनों पुस्तकों के माध्यम से प्रकाशित हो चुकी हैं। ये तीनों कहानी संग्रह इस प्रकार से हैं -
      (1) अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ  - खण्ड एक
                  प्रथम संस्करण  - सन् 2002
                  प्रकाशन  - अमर कृतित्व
                                          करेली, इलाहाबाद (उ.प्र.)
      (2) अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ  - खण्ड दो
                  प्रथम संस्करण  - सन् 2002
                  प्रकाशन  - अमर कृतित्व
                                          करेली, इलाहाबाद (उ.प्र.)
      (3) जाँच और बच्चे    - खण्ड एक
                  प्रथम संस्करण  - सन 2005
                  प्रकाशन  - अमर कृतित्व
                                          गोविंद पुर, इलाहाबाद (उ.प्र.)
      कहानियों के अतिरिक्त अमरकांत ने कई उपन्यास भी लिखे हैं।
 
 

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