बोध कथा २५ : संकल्प
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समुद्र के किनारे एक समुद्री पक्षी रहता था. उसे जब यह पता चला क़ि मादा पक्षी अंडे देने वाली है ,तो उसने समुद्र के किनारे पत्थरों के बीच में घोसला बनाया .कुछ समय बाद मादा पक्षी ने अंडे दिए. अंडे जब फूटे तो उसमे से छोटे-छोटे चूजे बाहर निकल आये. अब दोनों नर-मादा पक्षी यह सोचने लगे क़ि बच्चों के लिए जब दाना लाने वे बाहर जायेंगे तो इन छोटे बच्चों का ख़याल कौन रखेगा ?
नर पक्षी ने थोडा विचार किया और फिर हाँथ जोडकर समुद्र से बोला,''हे समुद्र देवता , जब तक हम वापस नहीं आते आप हमारे इन बच्चों का ख़याल रखना .'' इतना कहकर वे दोनों चले गए. इधर समुद्र को यह लगा क़ि इतना छोटा सा पक्षी और उसकी ये मजाल क़ि वो मुझसे अपने बच्चों क़ी रखवाली के लिए कहे ? समुद्र ने इस अपना अपमान समझा और ऊँची लहरे उठा-उठा कर उसने उन छोटे बच्चों को अपनी गिरफ्त में ले लिया.
शाम को जब दोनों पक्षी वापस आये तो उनके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा .समुद्र जोर-जोर से गरज रहा था.उन पक्षियों को सारी बात समझ में आ गयी. गुस्से में उन्होंने समुद्र से कहा ,'' हे समुद्र,अगर तुमने हमारे बच्चे नहीं लौटाए तो हम तुम्हे पीकर सुखा देंगे .'' उनकी इस बात पर समुद्र और जोर -जोर से गरजने लगा . वे दोनों पक्षी जाने क्या सोचकर उस समुद्र का पानी पीने लगे.ना जाने वे कितना पानी पी पाते ,पर उन्होंने शुरुआत तो कर ही दी. वे जब ऐसा कर रहे थे तभी आसमाँ से पक्षियों का एक बहुत बड़ा झुण्ड वहा से गुजरा .जब उस दल ने उन दो पक्षियों को समुद्र का खारा जल पीते हुवे देखा ,तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ .वे सब नीचे आये और सारी बात उन्होंने मालूम क़ी . उस दल के मुखिया ने उनके प्रति सांत्वना व्यक्त करते हुवे कहा क़ि,'' भाई ,आप चिंता मत करें .हम भी आप का साथ देंगे और इस समुद्र को पी कर सुखा देंगे .'' अब हजारों पक्षी समुद्र का पानी पीने लगे .
इतने में वहां से पक्षी राज गरुड़ गुजरे .उन्हें भी यह देख आश्चर्य लगा क़ि हजारों पक्षी समुद्र का खारा पानी पी रहे हैं.जब वे नीचे आये और उन्हें सारी बात मालूम पड़ी तो उन्होंने भी समुद्र को पीने का निश्चय किया.गरुड़ क़ी तलाश में थोड़ी देर बाद भगवान् विष्णू आ गए.जब उन्हें सारी बात मालूम पड़ी तो उन्होंने कहा क़ि ,'' ठीक है ,मैं भी आप लोंगो क़ी मदद के लिए समुद्र को पीऊंगा .'' भगवान् के मुख से ये बात सुनकर समुद्र डर गया .वह हाँथ जोडकर सामने खड़ा हो गया.
समुद्र ने भगवान् से माफ़ी मांगी और उस पक्षी के बच्चों को भी लौटा दिया. दोनों पक्षी अपने बच्चों को पा कर बहुत खुश हुवे.
इस कहानी से हमे यही सीख मिलती है क़ि हमे फल क़ी चिंता किये बिना अपना कर्म करना चाहिए.कार्य कितना भी कठिन क्यों ना हो ,वह नामुमकिन नहीं होता.बिना प्रयास के ही हार मान लेना बुद्धिमानी नहीं है .किसी ने लिखा भी है कि-----------------------------
'' करनी है हमे एक शुरुआत नई ,
यह सोचना ही एक शुरुआत है ''
Sunday, 18 April 2010
बोध कथा २५ : संकल्प
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