बोध कथा -१६ :कल आना
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किसी राज्य में हर्षवर्धन नामक एक राजा राज्य करता था. वह बड़ा ही दानी और सरल ह्रदय का था.उसकी दानवीरता क़ी कहानी दूर-दूर तक फैली हुई थी. राज्य क़ी प्रजा अपने राजा का बड़ा आदर करती थी. उन्हें इस बात का गर्व था क़ी उनके पास इतना महान राजा है.
एक दिन जब दरबार खत्म होनेवाला था लगभा तभी एक ब्राह्मण राजा के दरबार में आया. उस ब्राह्मण ने अपनी कन्या के विवाह के लिए राजा से १०० स्वर्ण मुद्राएँ मांगी.राजा दरबार खत्म कर जल्दी जाना चाहते थे,इसलिए उन्होंने उस ब्राह्मण से कहा क़ि,''आप कल आइये ,हम आप को १०० स्वर्ण मुद्राएँ दिलवा देंगे .'' राजा क़ि बात सुन कर वह ब्राह्मण ख़ुशी-ख़ुशी जाने को हुआ तभी राजा के विद्वान महामंत्री ने उठकर जोर-जोर से घोषणा शुरू कर दी क़ि ,''महाराज क़ी जय हो !महाराज क़ी जय हो !! आपने काल को जीत लिया ,आप महाकाल हो गए !आप क़ी जय हो !आप क़ी जय हो !''
राजा कुछ समझ नहीं पा रहे थे. उन्होंने कब काल को जीता ? वे महाकाल कैसे हो गए ? आखिर उन्होंने महामंत्री से इस घोषणा का कारण पूछा तो महामंत्री ने विनम्रता पूर्वक कहा ,''महाराज ,अभी-अभी आप ने इस ब्राह्मण को कल आने के लिए कहा है. साथ ही साथ कल आप ने इन्हें १०० स्वर्ण मुद्राएँ देने का वचन भी दिया है.लेकिन महाराज कल किसने देखा है ? कल का क्या भरोसा है ? कोन जाने कल तक आप या मैं रहूँ या ना रहूँ ? लेकिन आप को कल का विश्वाश है,तो आप महाकाल हुवे क़ी नहीं ?''
राजा को अपनी गलती समझ में आ गयी. उन्होंने ब्राह्मण से क्षमा मांगते हुवे उन्हें तुरंत १०० स्वर्ण मुद्राएँ दिलाई .सब राजा और महामंत्री क़ी जय-जयकार करने लगे.
इस कहानी से हमे सीख मिलती है क़ी हमे कभी भी आज का काम कल पे नहीं डालना चाहिए .किसी ने लिखा भी है क़ि------------------------------
'' काल करे सो आज कर,आज करे सो अब
पल में प्रलय होयगी ,बहुरी करोगे कब ''
Monday, 5 April 2010
बोध कथा -१६ :कल आना
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