कँटीली राह के फूल :-
यह उपन्यास राजकमल प्रकाशन द्वारा दिसम्बर 1963 में प्रकाशित हुआ। लगभग 150 पृष्ठों के इस उपन्यास में अनूप नामक युवक का मधु औ कामिनी नामक दो स्त्रियों को लेकर प्रेम संघर्ष चित्रित है। दोनों स्त्रियों के स्वभाव में बहुत अंतर है। एक के लिए जीवन भोग, विलास और मस्ती का नाम है तो दूसरी प्रेम को भोग से कहीं ऊँचा मानती है।
कमला प्रसाद पाण्डेय जी इस उपन्यास के संबंध में लिखते हैं कि, '' 'कँटीली राह के फूल` के अनुप के सामने मधु और कामिनी लगभग आसपास ही आती है। अनूप शर्मीला खिलाडी, पढ़ने में शिथिल, प्यार करने के मामले में झिझकने वाला किन्तु दूसरों से ईर्ष्यालु के रूप में प्रकट होता है। यह एक स्थिति है जहाँ इसे रूढ़िवादी व्यक्तिवादी व्यवस्था ने मनुष्य को पैदा किया है। अनूप में सबसे बड़ी कमजोरी है शर्म के कारण, सोच और अभिव्यक्ति का फर्क। वह जो कहना चाहता है वह नहीं कह पाता। शब्द उसका साथ नही देते। वह झूठ नही बोलता, क्योंकि अभिव्यक्ति के एक स्तर में लाने का ही काम यह उपन्यास करता है। उसके सामने मधु है जिसके लिए जिंदगी मस्ती, रोमांस, शान-शौकत तथा शरीर भोग है। अनूप उसके साथ घूमता है, उसे खुली किताब के रूप में एकान्त में देखता है पर उसके दिमाग में कामिनी का गंभीर समझदार सम्मानपूर्ण चेहरा है, जिसमें प्रेम भीतरी तह से निकलता है। वासना उसका हल्का संस्पर्श है। वह अनूप से प्यार करती है और अनूप भी उसे प्यार करता है। अनूप को शब्द धोखा देते हैं और अधिकार जताने में उसका स्वभाव आडे आता है। मधु और कामिनी के बीच अनूप का विकास कथा का कार्यक्रम है।``16
'कँटीली राह के फूल` उपन्यास के संबंध में कमला प्रसाद जी का उपर्युक्त विवेचन एकदम सटीक है। इस उपन्यास के माध्यम से अमरकांत ने उस व्यक्ति की मानसिक दशाओं का सुंदर चित्रण प्रस्तुत किया है जो अपने सोचे हुए को कभी भी वास्तविक जीवन में करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। अनूप के विचारों एवम् व्यवहार से यही बात सामने आती है। उसका अपना मानसिक द्वंद्व ही उसे परेशान किया रहता है।
अमरकांत एक सलग और जागरूक लेखक माने जाते है। कथा कहने का उनका अपना तरीका है। वे एक भारतीय व्यक्ति की भावनाओं, संस्कारों, भावुकता और संकोच से अच्छी तरह परचित हैं। समाज का पिछड़ापन, अंधविश्वास, पाखंड और अन्य सामाजिक बुराईयाँ उन्हें सालती हैं। पर इन सब से परेशान होकर वे कोई आदर्श स्थित की कल्पना के साथ समाधान खोजने का प्रयास नहीं करते। बल्कि यथार्थ की ठोस जीवन पर ही उनका व्यवहारिक हल अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं।
उनकी यही विशेषता उनके इस उपन्यास 'कँटीली राह के फूूल` में दिखायी पड़ती हैं।
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