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भगवान् ने कहा ,'' वत्स ,मैं तुम्हे जंहा भेज रहा हूँ ,वे लोग बड़े खुंखार है .वे तुम्हारे साथ अभद्र व्यवहार कर सकते हैं .क्या तुम वहां जाना पसंद करोगे ?'' शिष्य ने कहा ,'' प्रभू, वे मुझे मारेंगे तो नहीं ना ! मै चला जाऊँगा .'' इस पर भगवान् बोले,'' हो सकता है वे तुम्हे मारें भी '' इसपर शिष्य बोला ,''प्रभू ,वे मुझे जान से तो नहीं मारेंगे ! मैं जा सकता हूँ .'' इस बात के जवाब में भगवान् फिर बोले,'' हो सकता है वत्स क़ी वे तुम्हे जान से भी मार दें .'' इसपर दो पल सोचकर शिष्य बोला,''प्रभू, अगर वे मुझे जान से मार देंगे तो आगे मुझे कोई और कस्ट नहीं दे पायेंगे .फिर आप क़ी आज्ञा का पालन करते हुवे मरना मेरे लिए गर्व क़ी बात होगी,मैं अवश्य जाऊँगा .''
भगवान् समझ गए क़ी इसके अंदर धैर्य है .यह मुसीबतों का सामना कर सकता है .और उन्होंने उस शिष्य को आज्ञां दे दी .इस कहानी से हमे बोध होता है क़ि हमे धैर्य नहीं खोना चाहिए.किसी ने लिखा भी है क़ि
'' धारण धैर्य किये रहो,जब भी आये वक्त कठिन
यही राह दिखलायेगा,घना हो चाहे जितना विपिन''
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