Monday, 19 April 2010

बोध कथा २६ : सहनशीलता

भगवान् बुद्ध को बिहार के एक बड़े ही पिछड़े और बेहद खुंखार लोगो के बीच धर्म प्रचार के काम को आगे बढ़ाने के लिएअपने किसी शिष्य को  भेजना था ,लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रहा था क़ि इतनी भयानक जगह वे किसे भेजें . अंत में उन्होंने निर्णय लिया क़ि वे अपने शिष्यों क़ी परीक्षा लेंगे और जो  सफल होगा उसे ही वे इस कार्य के लिए चुनेगे .
                 दूसरे दिन उन्होंने अपने सभी शिष्यों को बारी-बारी से अपने पास बुलाया और उनके धैर्य क़ी परीक्षा लेने लगे. वे उन्हें उस भयानक जगह के बारे में बताते और शिष्यों के उत्तर जानते .सभी शिष्य अपनी सुरक्षा उपायों को लेकर प्रश्न करते . आखिर में भगवान् ने अपने सबसे प्रिये शिष्य को बुलाया .
              भगवान् ने कहा ,'' वत्स ,मैं तुम्हे जंहा भेज रहा हूँ ,वे लोग बड़े खुंखार है .वे तुम्हारे साथ अभद्र व्यवहार कर सकते हैं .क्या तुम वहां जाना पसंद करोगे ?'' शिष्य ने कहा ,'' प्रभू, वे मुझे मारेंगे तो नहीं ना ! मै चला जाऊँगा .'' इस पर भगवान् बोले,'' हो सकता है वे तुम्हे मारें भी '' इसपर शिष्य बोला ,''प्रभू ,वे मुझे जान से तो नहीं मारेंगे ! मैं जा सकता हूँ .'' इस बात के जवाब में भगवान् फिर बोले,'' हो सकता है वत्स क़ी वे तुम्हे जान से भी मार दें .'' इसपर दो पल सोचकर शिष्य बोला,''प्रभू, अगर वे मुझे जान से मार देंगे तो आगे मुझे कोई और कस्ट नहीं दे पायेंगे .फिर आप क़ी आज्ञा का पालन करते हुवे मरना मेरे लिए गर्व क़ी बात होगी,मैं अवश्य जाऊँगा .''
                 भगवान् समझ गए क़ी इसके अंदर धैर्य है .यह मुसीबतों का सामना कर सकता है .और उन्होंने उस शिष्य को आज्ञां दे दी .इस कहानी से हमे बोध होता है क़ि हमे धैर्य नहीं खोना चाहिए.किसी ने लिखा भी है क़ि 
          ''  धारण धैर्य किये रहो,जब भी आये वक्त कठिन 
         यही राह दिखलायेगा,घना हो चाहे जितना विपिन''
 

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