Friday 30 April 2010

निकलती नहीं खुसबू तेरी सांसों की मन से ,

निकलती नहीं खुसबू तेरी सांसों की मन से ,

खिलती नहीं आखें बिना तेरे तन के ;

डूबा रहता हूँ सपनों में मिलन की घड़ियों का ;

पर तू मिलता नहीं कभी बिना उलझाव और अनबन के ;

कभी तो कहा कर प्यार बिना अहसान के ;

कभी तो मान अपना अधूरापन बिना मेरी प्यास के ;

खुद का मान तुझे मेरी मोहब्बत से प्यारा है ;

ऐ जिंदगी मैंने किसपे अपनी मोहब्बत को वारा है /

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