बोध कथा २२ : टोपीवाला
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आप लोगों ने उस टोपीवाले क़ी कहानी तो सुनी ही होगी जो दोपहर को एक पेड़ के नीचे आराम करते हुवे सो जाता है और जब उसकी आँख खुलती है तो वह देखता है क़ि उस पेड़ के सभी बंदर उसकी टोपियाँ लेकर पेड़ पर चढ़ गएँ हैं .अंत में वह टोपी वाला अपनी अक्ल का इस्तमाल करते हुवे अपनी टोपी को निकाल कर अपनी संदूख में फेकता है .उसकी देखा -देखी सारे बंदर भी अपनी टोपी संदूख में फेक देते हैं.इसतरह टोपीवाला अपनी बुद्धिमानी के चलते अपनी सारी टोपियाँ वापस पा जाता है और खुशी-खुशी अपने घर वापस चला जाता है. अब इस कहानी के आगे का भाग आप यंहा पढ़ सकते हैं.-------------------------------------------------------------------
घर वापस आकर टोपीवाला सारी बात अपनी बीबी और छोटे बच्चे रामू को बतलाता है. रामू से वह यह भी कहता है क़ि ,''बेटा ,कभी तुम भी यदि ऐसी ही मुसीबत में पड़ जाओ तो यही तरीका अपनाना .'' रामू ने हाँ में अपना सर हिला दिया. कई दिन बीत गए . अब रामू भी अपने पिताजी के साथ टोपियाँ बेचने के लिए जाने लगा . धीरे -धीरे वह भी इस व्यवसाय में निपुण हो गया . पिताजी अब बूढ़े हो चले थे और टोपियाँ ले कर घूमने क़ी हिम्मत अब उनमे नहीं रह गई थी . इसलिए अब रामू ही यह व्यवसाय करने लगा .
एक बार जब रामू टोपियाँ बेच ने के लिए जा रहा था , तभी तेज धूप के बीच उसने एक पेड़ के नीचे रुक कर रोटी खाने क़ी सोची . पास ही एक पेड़ क़ी छाया में वह बैठ गया और रोटी खाने लगा . रोटी खाने के बाद उसने सोचा क़ी थोड़ी देर आराम कर लिया जाय, फिर आगे चलेंगे . धीरे -धीरे उसकी आँख लग गई .
अचानक जब उसकी आँख खुली तो वह देखता है क़ि उसकी सारी टोपियाँ बक्से में से गायब हैं. पेड़ के ऊपर से शोर -शराबे क़ी आवाज सुनकर जब उसने ऊपर देखा तो वह भौचक्का रह गया . उस पेड़ पर बहुत सारे बंदर थे . उन बंदरो ने उसकी सारी टोपी निकाल ली थी .रामू बहुत परेशान हुआ . उसे समझ में नहीं आ रहा था क़ि वह क्या करे ?. तभी उसे अपने पिताजी क़ी बात याद आई . और उसने भी वही युक्ति लगाते हुवे अपनी टोपी निकाल कर संदूख में फेंक दी . उसे पूरा विश्वाश था क़ि उसकी देखा-देखी बंदर भी ऐसा करेंगे . लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ . बंदरों ने एक भी टोपी नहीं फेकी . वह सर पकड कर बैठ गया . उसे समझ में नहीं आ रहा था क़ि ऐसा कैसे हो गया ? आखिर बंदरों ने इस बार टोपी क्यों नहीं फेकी ?
इतने में बंदरों का सरदार नीचे उतरा और बोला ,''रामू ,अगर तेरे पिताजी ने तुझे सिखाया है तो हमारे बाप ने भी हमे सिखाया है .हमेशा एक ही तरीके से काम नहीं चलता . हमे समय के साथ बदलना चाहिए.लकीर का फकीर कब तक बना रहेगा ? .''
किसी ने लिखा भी है क़ि--------------------
'' समय -दशा सब देखकर ,निर्णय अपना लेना सीखो
सिखी -सिखाई बातों से,हटकर के कुछ करना सीखो ''
(इस कहानी के साथ जो तस्वीर है उस पर मेरा कोई कॉपी राइट नहीं है.यह तस्वीर http://pustak.org:4300/bs/kidsimages/The-capseller-and-the-monkeys-page.ज्प्ग इस लिंक से प्राप्त क़ि गई है . )
Sunday, 11 April 2010
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BHAI MANISH,
ReplyDeleteAAP KI KAHANIYAN BADI HI ROCHAK AUR SANDESH DENE WALI HAIN