'मौत का नगर` सांप्रदायिक दंगों में जलते हुए एक शहर की कहानी है। राम इसी शहर में रहता है। कर्फ्यू की वजह से वह कई दिनों से घर में ही था। बाहर हालात भी इस तर के नहीं थे कि कोई अपने घर से निकलने की हिम्मत करे। लेकिन बिना कुछ कमाये घर नहीं चलाया जा सकता था। जान का डर तो था पर अपनों को भूखा भी तो नहीं रखा जा सकता था। इत: राम जिस दुकान पर काम करता था वहाँ जाने के लिए घर से बाहर निकलता है।
पूरे शहर का माहौल उसे बदला-बदला नजर आ रहा था। सड़कंे सुनसान थी। कुछ लोगों को साथ लेकर वह अपनी दुकान की तरफ बढ़ता जा रहा था। हर आदमी एक दूसरे को आशंका भरी दृष्टि से देख रहा था। राम की हालत तब और खराब हो जाती है जब वह यह देखता है कि वह जिस रिक्शे में बैठा है उसमें पहले से ही एक व्यक्ति है और वह एक मुसलमान है। राम डर जाता है, पर वह यह देखकर संतुष्ट होता है कि दूसरा व्यक्ति भी डरा हुआ है।
राम किसी तरह अपनी तँय जगह पहुँच जाता है। पर यह सोचकर उसे वापस डर लगने लगता है कि उसे शाम को वापस भी लौटना।
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