बोध कथा २४ : सब ठीक है ?
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बहुत पुरानी बात है. उत्तरी भारत के एक गुरुकुल में निरंजन नामक ऋषि रहते थे. उनके आश्रम में पूरे भारत से विद्यार्थी शिक्षा लेने के लिए आते थे.उन्हें अपने सभी शिष्य प्रिय थे,लेकिन शशांक पर उनका विशेष स्नेह था.वे शशांक पर ही सबसे अधिक भरोसा भी करते थे.
एक बार क़ि बात है,निरंजन ऋषि किसी काम से एक लम्बी यात्रा के लिए निकले.उनके साथ कई शिष्य भी थे.सभी के हाँथ में कोई ना कोई वस्तु थी.शिष्यों में शशांक भी था. उसके हाँथ में एक थैला देते हुए निरंजन ऋषि बोले,'' बेटा,इसमें बहुत ही मूल्यवान आभूषण हैं.इसे संभाल कर ले चलना .''
गुरु क़ि बात शशांक ने मान तो ली,लेकिन अब उसके मन में सदा एक शंका बनी रहती थी.उसे लगता क़ि कोई उसका थैला छीन ना ले. गुरु जी भी बीच-बीच में पूछ लेते ,'' सब ठीक है ना ?'' और शशांक भी ''हाँ '' में जवाब दे देता . ल्र्किन वह समझ रहा था क़ि अब सब ठीक नहीं है . वह अंदर-ही -अंदर बहुत परेशान हो गया .
थोडा आगे जाने पर उसे एक कुआं दिखाई दिया . जाने उसके दिमाक में क्या आया ,उसने वह थैला उस कूवें में ड़ाल दिया. वह ऐसा कर के बहुत प्रसन्नचित्त लग रहा था .और वह तेजी से आगे बढ़ने लगा .
थोडा आगे जाने पर गुरूजी ने फिर पूछा ,'' सब ठीक है ना ?''
इस बार शशांक ने खुश हो कर कहा ,'' हाँ गुरूजी ,अब सब ठीक है .''
धन के संचय में लगे लोगों का हाल भी शशांक क़ि ही तरह होता है. वे धन जमा कर सिर्फ उसके लिए चिंतित होते रहते हैं. हमे धन का उपभोग करना चाहिए अन्यथा वह हमारी परेशानी का कारण बन जाता है .
किसी ने लिखा भी है क़ि ----------------------
'' धन आवे तो भोग करो ,धर्म -कर्म का काम करो
केवल धन के संचय में,वक्त ना तुम बर्बाद करो ''
Friday, 16 April 2010
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