Saturday, 8 August 2009

आज तुझे फिर जीने का दिल चाहा है /

आज तुझे फिर जीने का जी चाहा है ;

आज फिर यादों ने दिल ललचाया है ;

बारिश की फुहारों में तन भीगा है ;

तेरी यादों में मन भीगा है ;

भाव मचले हैं कितनी तमन्नाओं के साथ ;

याद आ रहे हैं गुजरे वाकयात /

क्या खूब घटा छाई थी ;

भीगी जुल्फों ने मासुकी फैलाई थी ;

बारिश की बौछारों ने , बहती बहारों ने ,

हमारे तन की आतुरता बडाई थी ;

मन पे मदहोशी छाई थी ;

मखमली बदन के बड़ते अहसास ;

मेरे शरारती हाथों के बड़ते प्रयास ;

लरजते होठों का तपते होठों से गहराता विस्वास ;

बेकाबू जजबातों का ,दो बदनों के बिच मचाया वो उत्पात ;

बारिश का मौसम और वो तूफानी रात ;

आज तुझे फिर जीने का जी चाहा है ;

आज फिर यादों ने दिल मचलाया है /

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