कल रक्षा बंधन का त्यौहार है ,
पर मेरा मन उदास है ।
इसलिए नही की -मुझे राखी कोई नही बांधेगी
बल्कि इस लिए की -यह रिश्ता फ़िर कंही न कंही ,
देश दुनिया के किसी कोने मे ,शर्मिंदा होगा ।
कोई बहिन कल भी शिकार होगी ,
किसी राखी बंधे भाई के द्वारा ही -बलात्कार और न जाने किस किस की ।
कोई बहिन कल भी किसी कोठे पे नंगी होगी ,
किसी राखी बंधे भाई के ही हांथो ।
कल भी किसी शराब घर मे कोई बहिन ,
जिस्म की नुमाईस कर जो पाएगी ,
उसी से किसी भाई के लिए राखी खरीदेगी ,
किसी से रक्षा का वचन लेगी ।
यह सब सोचता हूँ तो खुश हो जाता हूँ ,
यह सोच कर की चलो मैं इन ढकोसलों से बच गया,
क्योंकि मेरी कोई बहिन नही है ।
और जो हैं ,उनकी रक्षा मैं अकेले नही कर सकता ।
नैतिकता जोर मारती है लेकिन -----असमर्थ हूँ ।
ऐसा सम्भव तभी होगा जब ,
संस्कार बचेंगे ,जब हम सीखेगे
रचना ,प्रेम और त्याग ।
जब नियम ,संयम और समर्पण को हम जान पायेंगे ।
अन्यथा होता रहेगा यही ,
एक बहिन से राखी बंधवाकर ,
दूसरी बहिन की कपड़े उतारते रहेंगे हम .
पर मेरा मन उदास है ।
इसलिए नही की -मुझे राखी कोई नही बांधेगी
बल्कि इस लिए की -यह रिश्ता फ़िर कंही न कंही ,
देश दुनिया के किसी कोने मे ,शर्मिंदा होगा ।
कोई बहिन कल भी शिकार होगी ,
किसी राखी बंधे भाई के द्वारा ही -बलात्कार और न जाने किस किस की ।
कोई बहिन कल भी किसी कोठे पे नंगी होगी ,
किसी राखी बंधे भाई के ही हांथो ।
कल भी किसी शराब घर मे कोई बहिन ,
जिस्म की नुमाईस कर जो पाएगी ,
उसी से किसी भाई के लिए राखी खरीदेगी ,
किसी से रक्षा का वचन लेगी ।
यह सब सोचता हूँ तो खुश हो जाता हूँ ,
यह सोच कर की चलो मैं इन ढकोसलों से बच गया,
क्योंकि मेरी कोई बहिन नही है ।
और जो हैं ,उनकी रक्षा मैं अकेले नही कर सकता ।
नैतिकता जोर मारती है लेकिन -----असमर्थ हूँ ।
ऐसा सम्भव तभी होगा जब ,
संस्कार बचेंगे ,जब हम सीखेगे
रचना ,प्रेम और त्याग ।
जब नियम ,संयम और समर्पण को हम जान पायेंगे ।
अन्यथा होता रहेगा यही ,
एक बहिन से राखी बंधवाकर ,
दूसरी बहिन की कपड़े उतारते रहेंगे हम .
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