Saturday, 1 August 2009

मेरी सोच

मै ये सोच के उसके डर से उठा था ;

वो रोक लेगी , मना लेगी मुझको ;

आगे बड़कर ,दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको ;

आखों ने आस लिए उसको देखा था ;

किसी आभास के लिए , मै हलका सा पलटा था ;

ना उसने रोका , न मनाया ;

न दामन पकड़कर मुझको बिठाया ;

ना आवाज दी ,न मुझको बुलाया ;

न आखों ने उसकी कोई ढाढस बंधाया ;

मै रुकते कदमो से ,झिझकते भावों से ;

शायद अब भी रोक ले, इन धारानावों से ;

धीरे धीरे बाहर निकल आया ;बहुत दूर चला आया /

1 comment:

  1. thanks manish ji,
    sorry,m not coming kalyan due to organiser's attitude.some other time.

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