Sunday, 30 August 2009

आखें खोलो भोर हुयी है ;

आखें खोलो भोर हुयी है ;:
दिन निकला है शोर हुयी है ;:
लोंगों को जल्दी है देर हुयी है :
आखें खोलो भोर हुयी है ,

सपने अच्छे ,दिल भी सच्चा ,
फिर भी देरी क्यूँ हो बच्चा ,
आखें खोलो देर हुयी है /
सपने तन्हाई में देखो;
ख्वाब जुदाई में देखो ;
आखें खोलो कोई है बैठा देर हुयी है ,
अब तो जागो भोर हुयी है /

आखों पे है माया का परदा ,
झूठे सायों का परदा ,
स्वार्थी भावों का परदा ,
दिल को खोलो , मन को मोडो ,
देर हुयी है ,
आखें खोलो भोर हुयी है /

जजबात अभी जो खोएं हैं ,
गैरों के पीछे जो मन को बोवे हैं ,
माँ ,बाप की तकलीफों पे सोयें हैं ;
उठ जाग ,मृगमरीचिका के पीछे न भाग ;
घर लौट देर हुयी है;
जाग मन के मन्दिर में भोर हुयी है ;
आखें खोलो भोर हुयी है /

No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..

International conference on Raj Kapoor at Tashkent

  लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र ( भारतीय दूतावास, ताशकंद, उज्बेकिस्तान ) एवं ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़ ( ताशकं...