Saturday, 22 April 2023

मनुष्य के मनोभावों को व्यक्त करती “इस बार तुम्हारे शहर में” की कविताएँ डॉ.शैलेश मरजी कदम

 मनुष्य के मनोभावों को व्यक्त करती “इस बार तुम्हारे शहर में” की कविताएँ

डॉ.शैलेश मरजी कदम , सहायक प्रोफेसर , मराठी विभाग ,  साहित्य विद्यापीठ ,

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा – 442001 ,

मो-9423643576,  ईमेंल-kadamshailesh05@gmail.com


डॉ.  मनीष कुमार मिश्रा जी द्वारा लिखित और 2018 में शब्दसृष्टी नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित कविता संग्रह “इस बार तुम्हारे शहर में” के लिए महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई द्वारा दिया जाने वाला संत नामदेव काव्य पुरस्कार वर्ष 2020-2021 इस कवितासंग्रह को मुंबई में सम्मानपूर्वक दिया गया । इस कवितासंग्रह में कुल 60 कविताएँ हैं  और अंतिम कविता का शीर्षक ही “इस बार तुम्हारे शहर में”  है । कविता संग्रह की 60 कविताओं से गुजरने के बाद कोई भी संवेदनशील व्यक्ती प्रेम की अनुभूती लेता है । प्रेम को जीता है। प्रेम को समजता है। प्रेम की अवधारणा को गहराई में जाकर अपने भीतर उतारने की कोशिश करता है । प्रेम व्यक्ति के सुख और दुःख का किस प्रकार साक्षी हो सकता है इसका अनुभव डॉ. मनीष कुमार मिश्र की इन कविताओं में किया जा सकता है । स्त्री भले वह प्रेमिका हो या मित्र हो या पत्नी हो; अपने अस्तित्व से मनुष्य को किस प्रकार हर पल भावनात्मक रूप से जोड़ें रखती है इसका समस्त कविताएँ अनुभव कराती हैं । वास्तिवक प्रेम में दुनिया की तमाम बुराईयों से दूर रहा जा सकता हैं इसका अनुभव इस कवितासंग्रह के प्रत्येक कविता के माध्यम से पाठक को होता ही है । कविता संग्रह प्रेमी -प्रेमिका के भावात्मक, व्यवहारात्मक और मनोवैज्ञानिक रिश्तों को सहज, सरल और सामान्य जीवन की भाषा में आधुनिक जीवन के प्रतीकों, बिंबों के साथ रखती है । प्रेम के साथ जीवन जीने का अनुभव क्या होता है और प्रेम के बगैर जीवन जीने का अनुभव क्या होता है यह वास्तविक रूप में इस कवितासंग्रह के प्रत्येक कविता में दिखाई देता है । कविने प्रेम में आनेवाले प्रत्येक सूक्ष्म से सूक्ष्म अनुभवों को अपनी कविता में कैद किया है । कविने “तृषिता” कविता में रूठना और मनाने का जो वर्णन किया है वह जीवन में संवाद कितना जरुरी है यह दर्शता है । प्रेमिका के रूठने के बाद की चंचल मनोदशा और मनाने के बाद का सुखकारक आनंद इस कविता में व्यक्त हुआ है । जैसे- 

“मैंने कहा- 

तुम जब भी रूठती हो 

मैं मना हि लेता हूँ 

चाहे जैसे भी  । ” ( पृष्ठ संख्या -21)

“सवालों से बंधी” कविता में कवि बताता है कि जो प्रेम निश्चल, पूर्ण समर्पण का होता है वह तुटने के बाद भी बार-बार याद आता है । इसलिये कवि लिखता है कि,  

“अब जब भी 

वैसा ही विश्वास खोजता हूँ तो 

वह लड़की बहुत याद आती है 

मुद्दतों बाद , आज भी ... ।”( पृष्ठ संख्या -25)


“तुम्हारे ही पास” कविता के माध्यम से मनुष्य का जीवन एक यात्रा और यह यात्रा निरंतर चलती रहती हैं यह बताने का प्रयास किया गया है । कविने प्रेमिका से बार-बार दूर जाने और पुन: पुन: उसके पास लौंटने के बहाने से दोनों के बीच के भावात्मक आकर्षण को बताने के साथ प्रेमिका प्यार की उष्मा में किस तरफ पिघलती है यह भी बताया है । जैसे -

“और वही वादा कि 

अब कभी नही जाऊंगा

यह जानते हुए भी कि 

जाऊंगा 

और यह भी मानते हुए कि

 मना लूंगा तुम्हे फिर से

 तुम्हारी नाराजगी के बाद 

अपनी वापसी के साथ

 लेकिन 

ये तुम्हारी नाराजगी भी 

ठहरती कहाँ है 

चली जाती है 

दरसल पिघल जाती है

 प्यार की उष्मा में 

और बह जाता है 

सब क्लेश और क्रोध ।” (पृष्ठ संख्या -29-30) 

“कि तुम जरूर रहना” कविता में कवि ने किसी के न रहने पर खासकर स्त्री के न होने पर जीवन में जो रिक्तता आती है उसे हु-ब-हु व्यक्त किया है । अकेलेपन में उसकी यादे ही जीवन का सहारा बनती है । अपने प्रिय के बगैर भी सकारात्मक जीवन कैसे जीना है यह इस कविता में इस प्रकार व्यक्त किया है । जैसे-  “अपने अंदर ही

 कुछ तोडना, कुछ जोडना 

डूबती हुई शाम को दूर तक अकेले ही टहलना

मेंरी यादों के साथ 

कभी कोई कविता करना ।

चाय के प्यालों में वक्त को उडेलते रहना 

जितना हो सके,  सिगरेट और शराब कम पीना

 मैं नहीं रहूंगी पर तुम रहना ।”  (पृष्ठ संख्या -34)

इस कविता के माध्यम से प्रेमिका आपने प्रेमी को मेंरे बिगर भी तुम्हे जीना है, खुशहाल जीना है, कभी हमने जो चाय के साथ जो वक्त गुजारा था वैसा ही वक्त गुजरना । गम में रहने पर भी सिगारेट और शराब पीकर जीवन बरबाद नहीं करना है । आगे कवि लिखता है कि, 

“और देखना

 मेंरे ना रहने पर भी

 जब तक तुम रहोगे 

तो रहेगी 

मेंरे न होने पर भी होने कि निशानी

 इसीलिए कहती हूँ

 कि तुम जरूर रहना ।”  (पृष्ठ- 35) 

यहाँ कवि कहना चाहता है कि किसी भी मनुष्य के प्रेम के दिनों की निशानियाँ एक के न होने पर भी दूसरे को जीवन जीने के लिए प्रेरणादायी होती है । केवल वह प्रेम नैतीक और मनोभावात्मक  होना अनिवार्य है ।  

“तुम आ रही हो तो” कविता के माध्यम से कवि ने प्रेमिका के एक अंतराल के बाद आने से प्रेमी के मन में जो उत्साह, आनंद निर्माण होता है उसे अती सूक्ष्मता से पकडने की पूर्ण कोशिश इस कविता में की है । प्रेमिका के एक अंतराल के बाद आने से प्रेमी की दुनिया किस तरह बदलती है इसका जीवंत दर्शन है यह कविता । प्रेमिका के आने से किस प्रकार से प्रेमी के मन में एक सकारात्मक ऊर्जा  का निर्माण होता है इसका एक जिवंत उदाहरण है यह कविता । प्रेमिका के दूर रहने से प्रेमी को जैसे हर्ष उल्हास से भरे दिवाली, बैसाखी और होली भी बेरंगी लगती है । कवि लिखते है कि ,

“अब जब तुम आ रही हो तो देखो

दिवाली भी आ रही है 

बैसाखी और होली भी  

वो सब जो मानों 

तुम्हारे इंतजार में 

कहीं रूठ के चले गये थे । ” (पृष्ठ संख्या - 42) 

 इस कविता संग्रह “चुड़ैल” कविता किसी भी दो व्यक्तियों के प्रेमभरे रिश्तों को बखूबी  बयाँ करती है । वैसे चुड़ैल तो एक नकारात्मक शब्द है लेकिन कोई जब प्रेम में चुड़ैल कहता है तो उसका अर्थ बदल जाता है । वास्तविक रूप में कवि चुडेल शब्द के माध्यम से प्रेमी का को सुंदर कहना चाहता है । उनके बीच के रिश्तों को बताना चाहता है की एक के बगैर दूसरा कैसे रह ही  नहीं  सकता दोनों की प्रत्येक सांस जैसे एक दूसरे के लिए ही निकलती हो । कवि को प्रेमिका का खयाल भी जादू जैसा लगता है । कवि ने लिखा है कि,  “और इनसब के साथ

 करता हूँ  तुम्हें चुड़ैल भी  

क्योंकि एक जादू सा 

असर करता है 

तुम्हारा खयाल भी ।” (पृष्ठ संख्या- 46)

“जब कोई किसी को याद करता है”  इस कविता के माध्यम से जब कोई अपने प्रिय को याद करता है तो तब उसके याद का दायरा कितना विशाल होता है इसका अतिउत्तम उदाहरण है यह कविता । याद करने के बहाने से मनुष्य अपने प्रिय  के  लिये उत्पन्न मनोभावात्मक संवेदनाओं के माध्यम से सबकुछ बयाँ करता है । कोई अपनों को किस हाद तक याद करता है इसका बेहद और उत्कृष्ट नमुना है यह कविता । कवि ने लिखा है 

“अगर सच में ऐसा होता तो 

अब तक सारे तारे टूटकर 

जमीन पर आ गए होते 

आखिर इतना तो याद

 मैंने तुम्हें किया ही है ।” (पृष्ठ संख्या-50)

“तुन मिलती तो बताता” इस कविता संग्रह की एक लंबी कविता है और कवि ने प्रेमिका के सौंदर्य का अप्रतिम वर्णन इस कविता में किया है । सौंदर्य की उच्चतम परिभाषा गढ़ी है । प्रियतम से दूर होने की पीड़ा क्या होती है और उस पीड़ा को झेलना कितना मुश्किल होता है आदि बातों को कल्पनाविस्तार के माध्यम से वास्तविकता के धरातल पर व्यक्त किया है ।  प्रियतम की एक मुलाकात और एक बात कितनी कींमती होती है इसके अनेक उदाहरण जनमानस के प्रतीको और बीम्बों के साथ इस कविता में व्यक्त किया गये है । जैसे-  “कोई भी रंग  

कोई भी तस्वीर 

तेरे मुकाबले में 

टिक ही नहीं पाते  ।” (पृष्ठ संख्या- 54) 

“मोबाईल” नामक छोटीशी कविता प्रेमी के अपनी प्रेमिका के प्रति लगाव, बेहद प्यार और मोहब्बत के भाव को व्यक्त करती है । प्रेमिका को उसके अनुपस्थिति में प्रेमी के मन में प्रेमिका किस प्रकार हमेंशा बनी रहती है इसका सुंदर वर्णन है यह कविता ।

 जैसे-  “तुम्हारे बारे में सोचते हुए

 आदतन, बार-बार 

मोबाईल को जेब से निकाल कर 

देख लिया करता था 

यह सोच करके कि

कहीं युम्हारा कोई ‘काल’ मैं ‘मिस’ ना कर दूँ ।  (पृष्ठ संख्या- 61)

 “वो मोसम”  कविता प्यार के रिश्तों को गंभीरता से व्यक्त करती है । प्यार कोई जबरदस्ती की भावना नहीं है न ही वह कोई अनुबंध है। न ही कोई लेन- देन का सौदा । प्रेम इन सब से परे किसी परिभाषा में न बैठने वाली एक भावना है । प्रेम क्या है ? यह समझने के परे है । कवि कविता जब प्रेमिका से कहता है कि इतने दिनों बाद आ रहा हूँ क्या लाऊ तुम्हारे लिये तब प्रेमिका जो जवाब देती है वह प्रेम की सभी परिभाषा से अलग जवाब लगता है । जैसे-  

“इतने दिनों बाद आ रहा हूँ 

बोलो 

तुम्हारे लिए क्या लाऊं ? 

 उसने कहा 

 वो मौसम

 जो हमारा हो

 हमारे लिए हो 

और हमारे साथ रहे 

हमेशा  ।” (पृष्ठ संख्या- 65) 

“कैमरा” कविता के माध्यम से जीवन एक की वास्तविक सच्चाई को कवि ने उद्घाटित किया है । हम अपनों के साथ जो समय बीताते है उसे किसी भी कींमत पर दूबारा नहीं जिया जा सकता । “कैमरा”  में उस आनंदमय क्षणों  को कैद कर सकते है, बार-बार  कैमरा में देख सकते है किंतु उस आनंदमय क्षणों  को पुन: दोबारा जी नहीं सकते । जैसे कवि ने  लिखा है  

“ लेकिन

 हम भूल गये थे कि कैमरा

 यादों को कैद कर सकता है 

लौटा नहीं सकता ।” (पृष्ठ संख्या- 67)  

“विजिटिंग कार्ड्स” कविता महानगरीय जीवन की विवशता को व्यक्त करती है।  महानगरो में मनुष्य के बीच के मानवी रिश्तों के खत्म होते अनुभव को इस कविता में बखुबी विश्लेषित किया है । 

जैसे-  “सैकड़ों विजिटिंग कार्ड्स में से 

एक भी ऐसा न मिला 

जिससे मिल आता बिना किसी काम 

बस ऐसे ही ।” (पृष्ठ संख्या- 71)

 दुनिया प्रेम करने वालों को पागल कहती है । प्रेम में पागल होना एक मनोदशा है । प्रेम में पागल होने का मतलब ये होता है कि प्रेमी- प्रेमिका का के लिए और प्रेमिका-प्रेमी के लिए अपने जी जान से ज्यादा चाहती है । अपने खून के रिश्तोदारों को भूल जाती है । उसके सामने प्रेम केवल एक रिश्ता होता है “उसने कहा” कविता में प्रेम में पागल बनने की मनोदशा का वास्तविक वर्णन मिलता है । जैसे- 

“मै तुम्हे पागल समजता हूँ 

दरअसल तुम हो पागल 

मेंरे प्यार में पागल हो 

और मै जितना समझता हूँ 

उससे कंही अधिक पागल हो ।” (पृष्ठ  संख्या- 84)

“तुम जितना झुठलाती हो”  कविता में कवि ने प्रेम में झूठ बोलने के अर्थ को परिभाषित किया है । प्रेम में दिया गया हर सवाल का झूठा जवाब सच्चा होता है । झूठ बोलना संवाद प्रक्रिया को आगे ले जाने की क्रिया है । प्रेम का रिश्ता विश्वास पर टिका होता है । इसकी पुष्ठि में कवि लिखता है कि   “दरअसल 

प्यार और विश्वास में 

सवाल जरुरी नहीं होते 

और न ही उनके जवाब ।” (पृष्ठ संख्या- 95)  

कवि वाराणसी के बनारस हिन्दू विश्विद्यालय में अपने अनुसंधान के दौरान रहे है और उन्हीं दिनों के अनुभव को व्यक्त करती “बनारस के घाट” “लंकेटिंग” और “मणिकर्णिका” यह तीनों इस कविता संग्रह की बहुत ही महत्त्वपूर्ण कविताएँ  हैं । “बनारस के घाट” में कवि घाट के नैसर्गिक स्वभाव को व्यक्त करते हुए मनुष्य स्वभाव के साथ उसे जोडणे का प्रयास करते है । जैसे- “ ये बनारस के घाट 

चेतना के द्वार हैं 

 हम सभी के लिए 

हम सबके हैं ।” (पृष्ठ संख्या- 98) 

“लंकेटिंग” कविता का बनारस हिन्दू विश्विद्यालय और उसके बाहर का लंका भौगोलिक क्षेत्र आपने आप में कितना चहल-पहल करने वाला क्षेत्र है यह बताती है । हजारों  घटना को एक साथ अंजाम देने वाले लंका का वर्णन कवि ने अद्भुत रूप से किया है । लंका में ज्ञान-अज्ञान, राजनीत, षडयंत्र और इससे परे कई विषय है जो केवल वहा जाकर अनुभव करने होंगे इसीलिये कवि लिखते है कि,  

“लंकेटिंग 

ज्ञान का नहीं 

अनुभूति का विषय है 

तो आइये कभी लंका- बी.एच. यू.

और खुद को 

समृद्ध होने का अवसर दे ।” (पृष्ठ संख्या-102) 

“मणिकर्णिका”  इस कविता संग्रह की बहुत महत्वपूर्ण कविता है । जीवन जीना और मृत्यू के बाद मोक्ष प्राप्त करने की यात्रा इस कविता के केंद्र में है । मृत्यू भी एक उत्सव है उसकी उत्सवता में जीवनयापन साधन भी मौजूद है ।  दर्शन, धर्म और अध्यात्म पर सूक्ष्मता से प्रकाश डालती या कविता मनुष्य के जीवन चक्र को व्यक्त करने के साथ मनुष्य के भिन्नभिन्न मनोभाव और व्यापारों को व्यक्त करती दिखाई देती है ।

“यह पीला स्वेटर” इस कविता संग्रह की लंबी कविता है । स्वेटर के माध्यम से अपने प्रियजनों द्वारा दि गयी वस्तू उनके अनुपस्थिति में  उनके उपस्थिति का अहसास करती है और यह अहसास आनंददायक होता है । दरसल कवि स्वेटर के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त करता है । आपने प्रिय के अनुपस्थिति में भी संवाद कायम रखता है । जैसे-  “लेकिन न जाने क्यों 

इसके जैसा 

या कि  

बेहतर इससे 

अब तक मिला ही नहीं ।” (पृष्ठ संख्या-110)

“औरत” कविता स्त्री के अनेक मनोभावों को व्यक्त करती है ।  परिवार और  समाज के बीच होकर भी औरत अकेलापन महसूस करती है । उसका दर्द, घुटन और अकेलापन केवल उसे ही निभाना होता है । जैसे – 

“समझ रहा हूँ कि

ऐसा बहुत कुछ है  

जिनका सामना 

तुम अकेले ही कर रही हो ।

चेहरा अलग हो सकता है लेकिन 

तकलीफें एक सी हैं 

घुटन, दर्द और एकाकीपन  

सब एक सा तो है ।” (पृष्ठ संख्या-116)

 

 “लड्डू” कविता के माध्यम से कवि ने माँ के प्रति प्रेम और स्नेह का भाव व्यक्त किया है । माँ का प्रेम दुनिया में सबसे अलग और जिसे किसी भी परिभाषा में नहीं बाँध सकते ऐसा होता है यह बताया गया है ।  जैसे- 

“लड्डू तो माँ है

 बचपन है 

मासूम दिनों की याद है

 रिश्तों की मिठास है ।” (पृष्ठ संख्या-117)

“इस बार तुम्हारे शहर में” इस कविता संग्रह की आखरी और सबसे लंबी कविता है । एक प्रेमी या प्रेमिका एक दूसरे से प्यार करते हुए एक शहर में अपने प्यार को पालते-पोसते है और इसी क्रम में शहर के हर गली-मोहल्ले से गुजरते है । हर मौसम में शहर के हर कोने में अपना अस्तित्व बनाते है । प्रेमिका जिस शहर में रहती है वो शहर की हर बात दोनों को एक आनंद और रोमांच का अनुभव कराती है । दोनों को शहर का हर मौसम प्यारा लगता है । कवि ने प्रेमिका के शहर में होने और न होने के अंतर को बहुत बखुबी व्यक्त किया है । शहर में अपनों का होना मन को कितना भाता है उसके साथ का हर पल कितना प्यारा लगता है । पर उसके न होने से सब कुछ वीराना और बेहद दुखद अनुभव होता है । जैसे-  

“इस बार तुम्हारे शहर में 

जब तुम न मिली तो  

रुसवाई मिली 

महीना यह भी तो मई का ही था 

पर तुम्हारे साथ वाली वो

 बेमौसम बारिश न मिली ।” (पृष्ठ संख्या-127)

 


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