डॉ. रमेश पोखरियाल'निशंक' का स्वामी विवेकानंद चिन्तन
डॉ. रवि कुमार गोंड़
सहायक प्रोफेसर
हिंदी विभाग, हंसराज कॉलेज,
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
मोबा. 7807111737
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डॉ. निशंक जी का अध्यात्म से काफी लगाव रहा है | वह एक दार्शनिक आचार्य हैं | उन पर स्वामी विवेकानंद, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, मैथिलीशरण गुप्त, अटल बिहारी बाजपेयी, डॉ. कलाम आदि का प्रभाव बड़ा गहरा है | गीता महाकाव्य का उन्होंने बड़े ही सूक्ष्म ढंग से अवलोकन किया है | स्वामी विवेकानंद जी से प्रभावित हो करके उन्होंने सन् 2013 में 'संसार कायरों के लिए नहीं' नाम से एक पुस्तक लिखी थी | यह पुस्तक राजकमल प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हुई | स्वामी विवेकानंद के आदर्श, विचारों तथा संदेशों को इस पुस्तक में देखा जा सकता है | अमरनाथ डोगरा अपनी पुस्तक 'स्वामी विवेकानंद का सामाजिक-आर्थिक चिंतन' में स्वामी विवेकानंद जी के पत्रा. 1, 83-84 का जिक्र किया है "ऊंचे पद वालों या धनिकों का भरोसा न करना | उनमें जीवनी शक्ति नहीं है- वे तो जीते हुए भी मुर्दे के समान हैं | भरोसा तुम लोगों पर है; गरीब, पद-मर्यादा रहित किंतु विश्वास है तुम्हीं लोगों पर | ईश्वर का भरोसा रखो | किसी चालबाजी की आवश्यकता नहीं; उससे कुछ भी नहीं होता | दुखियों का दर्द समझो और ईश्वर के पास सहायता की प्रार्थना करो-चाहता अवश्य मिलेगी | ....मैं इस देश में भूख या जाड़े से भले ही मर जाऊं, परंतु मेरे नव युवकों, मैं गरीब, भूखों और उत्पीड़ितों के लिए सहानुभूति और प्राण प्रण प्रयत्न को थाती के तौर पर तुम्हें अर्पण करता हूँ |...... अपना सारा जीवन इन 30 करोड़ लोगों के उद्धार के लिए अर्पण कर देने का व्रत लो, जो दिनोंदिन डूबते जा रहे हैं |"
डॉ. निशंक जीलिखते हैं कि-"स्वामी जी जानते थे कि जब भी कोई अच्छा काम शुरू किया जाए तो पहले लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। फिर वे उसका विरोध करते हैं और आखिर में उस काम के लिए अपनी मंजूरी दे देते हैं।
जब वे सितंबर 1893 में वेदांत के सिद्धांत को पूरी दुनिया में फैलाने के लिए शिकागो जाना चाहते थे तो अनेक संकट सामने आए। वे बड़े कष्ट सहने के बाद किसी तरह वहां पहुंचे। वहां वे सनातन धर्म के बारे में लोगों को जानकारी देना चाहते थे ताकि दूसरे देशों के लोग भी भारत की महान सभ्यता व संस्कृति के बारे में जान सकें।"
'संसार कार्यों के लिए नहीं' पुस्तक में डॉ. निशंक जी ने स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षाओं का सूक्ष्म अवलोकन किया है | उनके व्यावहारिक वेदांत का कुशलता पूर्वक वर्णन किया है | स्वामी विवेकानंद जी की कर्मठता और निर्णय लेने की कला का भी अनुशीलन डॉ. निशंक जी ने सूक्ष्म ढंग से इस पुस्तक में किया है | 'सफलता के सोपान' पुस्तक में लिखा गया है कि "हम क्यों न लक्ष्य की ओर अग्रसर होने का प्रयत्न करें ! असफलताओं से ही ज्ञान का उदय होता है | अनंत काल हमारे सम्मुख है - फिर हम हताश क्यों हों ! दीवार को देखो | क्या वह कभी मिथ्या भाषण करती है? पर उसकी उन्नति भी कभी नहीं होती - वह दीवार की दीवार ही रहती है | मनुष्य मिथ्या भाषण करता है, किंतु उसमें देवता बनने की भी क्षमता है | इसलिए हमें सदैव क्रियाशील-प्रयत्नशील बने रहना चाहिए |" डॉ. निशंक जी स्वामी विवेकानंद जी से प्रेरित हो करके अपनी पुस्तक में यह बताने का प्रयास किया गया है कि चाहे जीवन में जटिल से जटिल कठिनाईयाँ क्यों न आएं उसका सामना धैर्य और संयम से करना चाहिए | समाज में जीने के लिए उसे जीवन के नियोजन का हल ढूंढना चाहिए | मन, कर्म और वचन से उसे दृढ़ प्रतिज्ञ होना चाहिए | डॉ. निशंक जी लिखते हैं कि - "स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ। वे एक महान देशभक्त, विचारक, लेखक, वक्ता व संत थे। उन्होंने शिकागो की विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया और वेदांत दर्शन को विदेशों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस जी के शिष्य थे। उन्होंने ही रामकृष्ण मिशन की स्थापना भी की। स्वामी जी ने अपना पूरा जीवन गुरुदेव के दिए हुए लक्ष्य के लिए अर्पित कर दिया। वे एक संन्यासी के रूप में देश-विदेश में भ्रमण करते रहे और भारत की चहुंमुखी उन्नित के लिए प्रयत्नशील रहे। वे एक ऐसे समाज की कल्पना करते थे, जिसमें छोटे-बड़े या जांति-पांति का कोई भेद न हो। स्वामी विवेकानंद चाहते थे कि देश का युवा वर्ग देश सेवा के लिए आगे आए। धर्म व अध्यात्म को सच्चे अर्थो में अपनाए । स्वामी जी स्वयं को गरीबों का सेवक कहते थे और गरीबों की सेवा का कोई भी अवसर हाथ से जाने नहीं देते थे। उनका मानना था कि देश के भूखे, दरिद्र और कुपोषण के शिकार लोग ही वास्तव में देवी-देवता हैं इसलिए उनकी ही सेवा की जानी चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने केवल विदेशों में वेदांत दर्शन का डंका बजाया बल्कि विदेशियों को भी भारत में आकर देशवासियों की सेवा करने की प्रेरणा दी। यहां हम उनकी शिष्या भगिनी निवेदिता को कैसे भूल सकते हैं। जिन्होंने भारतीय स्त्रियों की शिक्षा के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया। यह सब उनके गुरु विवेकानंद जी की प्रेरणा का ही फल था। स्वामी जी धार्मिक कुरीतियों व अंधविश्वासों के विरुद्ध थे। उन्होंने सदा दरिद्रनारायण की सेवा को ही सबसे बड़ी पूजा माना। देश के नवयुवकों के लिए उनका संदेश था- 'उठो, जागो व दूसरों को जगाओ। अपने मनुष्य जीवन को सफल कर लो। लक्ष्य प्राप्ति से पहले कहीं रुको नहीं।
4 जुलाई 1902 को वे महासमाधि में लीन हो गए। भले ही उनका पार्थिव देह हमारे बीच नहीं रही किंतु आज भी आज भी स्वामी जी के वे ओजपूर्ण व्याख्यान हमारे लिए किसी प्रेरणास्त्रोत से कम नहीं हैं।"
डॉ. निशंक जी के जीवन में स्वामी विवेकानंद जी का काफी प्रभाव है । वह स्वामी जी के अध्यात्मिक चिंतन में समाज की प्रगति को देखते हैं। वह जीवन की सत्यता को समझने का प्रयत्न करते हैं। डॉ. निशंक जी दार्शनिक एवं आध्यात्मिक चिंतन के अध्येता हैं । वह स्वामी विवेकानंद जी के संदर्भ में लिखते हैं की - "उन्होंने संसार को दिखा दिया कि भारत भी विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता रखता है। अपने महान गुणों के कारण वे शिकागो की धर्मसभा में भारतीय दर्शन का डंका बजाने में सफल रहे। उस सभा में उन्हें एक गुलाम देश का प्रतिनिधि माना गया, इसलिए उन्हें मंच पर सबसे आखिर में निमंत्रित किया गया, लेकिन उनकी वक्तव्य शैली इतनी ओजपूर्ण थी कि सभी श्रोता वाह-वाह कर उठे । स्वामी विवेकानंदजी के शब्दों ने उन पर जादू सा कर दिया। उन्होंने कुछ ही पलों में सभा को अपने सम्मोहन में बांध लिया। अपने पहले ही भाषण द्वारा स्वामीजी ने श्रोताओं के दिलों में अपनी जगह बना ली थी।"
'विवेकानंद : राष्ट्र को आह्वान' पुस्तक में स्वामी विवेकानंद जी की सार्थक पंक्तियां उद्धृत हैं "यह संसार कायरों के लिए नहीं है | पलायन की चेष्टा मत करो | सफलता अथवा असफलता की चिंता मत करो |पूर्ण निष्काम संकल्प में अपने को लय कर दो और कर्तव्य करते चलो | समझ लो कि सिद्धि पाने के लिए जन्मी बुद्धि अपने आप को दृढ़ संकल्प में लय करके सतत कर्मरत रहती है | ........जीवन संग्राम के मध्य डटे रहो | सुप्तावस्था में अथवा एक गुफा के भीतर तो कोई भी शांत रह सकता है | कर्म के आवर्त और उन्मादम के बीच दृढ़ रहो और केंद्र तक पहुँचो | और यदि तुम केंद्र पा गए तो फिर तुम्हें कोई विचलित नहीं कर सकता |" डॉ. निशंक जी स्वामी विवेकानंद जी के दार्शनिक चिंतनों के माध्यम से युवाओं को जगाने का कार्य करते नजर आते हैं | उन्होंने जीवन मूल्यों की महत्ता और उसकी गुणवत्ता से सबको परिचित करवाने का कार्य किया है | युवाओं के अंदर आत्मविश्वास जगाने का कार्य किया है | कर्म और रहस्य पुस्तक में स्वामी विवेकानंद जी के दार्शनिक विचारों पर प्रकाश डाला गया है "हमारे भीतर एक दिव्य तत्व है, जो ना तो चर्चों के मतवादों से पराजित किया जा सकता है, न भर्तस्ना से | जहाँ कहीं भी सभ्यता है, वहीँ मुट्ठी भर यूनानियों का प्रभाव प्रकट है | कुछ ना कुछ भूलें तो सर्वदा होंगी ही | उस पर खेद मत करो | महान अंतर्दृष्टि प्राप्त करो | यह ना सोचो: 'जो हो गया, हो गया | कितना अच्छा होता, यदि यह और सुंदर ढंग से संपन्न हुआ होता |' यदि मनुष्य स्वयं ब्रह्म न होता तो, मानव जाति अब तक प्रार्थनाओं और प्रायश्चितों के मारे पागल हो गई होती |"
डॉ. निशंक जी लिखते हैं कि - "स्वामी विवेकानंद भले ही रामकृष्ण परमहंस जी के शिष्य थे। परंतु वे अपना एक अलग व्यक्तित्व भी रखते थे। वे कभी सच्ची बात कहने से पीछे नहीं हटते थे। कई बार उनकी बातें सुनने वालों को अजीब भी लगती थीं पर उन बातों में गहरा सार छिपा होता था।
स्वामी जी बहुत बलशाली थे। उन्हें कुश्ती, मुक्केबाजी, तैराकी व घुड़दौड़ आदि का अच्छा शौक था। उन्हें घोड़े पर सवारी करनी अच्छी लगती थी। वे
यही मानते थे एक बलशाली शरीर में ही बलशाली दिमाग का वास हो सकता है इसलिए हमें अपने शरीर की स्वास्थ्य रक्षा करनी चाहिए।"
इस प्रकार से हम देखते हैं कि डॉ. निशंक जी के लेखकीय चिंतन में स्वामी विवेकानंद के सभी ध्येय सूत्र वाक्यों को देखा जा सकता है, जो समाज को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं और साथ ही साथ एक नई राह दिखाती हैं |
संदर्भ :
1. अमरनाथ डोगरा - स्वामी विवेकानंद का सामाजिक-आर्थिक चिंतन, सूरज प्रकाशन दिल्ली, संस्करण-2018
2. स्वामी विवेकानंद - सफलता के सोपान, रामकृष्ण मठ नागपुर, संस्करण-2018
3. विवेकानंद : राष्ट्र को आह्वान, रामकृष्ण मठ प्रकाशन नागपुर, संस्करण-2018
4. स्वामी विवेकानंद और उसका रहस्य, रामकृष्ण मठ प्रकाशन नागपुर, संस्करण-2018
5. डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' - संसार कायरों के लिए नहीं, राजकमल प्रकाशन दिल्ली, संस्करण-2013
5. डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' - शिकागो में स्वामी विवेकानंद, डायमंड बुक्स, नई दिल्ली, 2013
6. डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' - आगे बढ़ो स्वामी विवेकानंद, डायमंड बुक्स, नई दिल्ली, 2012
7. डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' - कर्मयोगी स्वामी विवेकानंद, डायमंड बुक्स, नई दिल्ली, 2013
8. डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' - सकारात्मक सोच स्वामी विवेकानंद, डायमंड बुक्स, नई दिल्ली, 2012
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